मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्कूल फीस में कथित अवैध वृद्धि, जाली ISBN नंबर वाली पुस्तकों की बिक्री के मामले में अधिकारियों को जमानत देने से किया इनकार

Update: 2024-07-20 09:40 GMT

मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने और जाली ISBN नंबर वाली पुस्तकों की बिक्री के मामले में कई स्कूल प्रबंधन, प्रिंसिपल और पुस्तक विक्रेताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया के प्रोटेस्टेंट बिशप और एक कैथोलिक पादरी सहित कई अधिकारियों को जमानत देने से इनकार किया।

जस्टिस मनिंदर एस. भट्टी की एकल पीठ ने कहा कि स्कूलों की प्रबंधन समितियों के पदाधिकारियों को इस समय जमानत नहीं दी जा सकती।

पीठ ने रेव. अजय उमेश जेम्स, बिशप ऑफ जबलपुर और फादर अब्राहम थाजा थेदाथु सहित अन्य को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा,

"यह स्पष्ट किया जाता है कि केवल प्रिंसिपल के रूप में काम करने वाले आवेदकों द्वारा दायर आवेदनों को उनके संबंधित आदेशों में उल्लिखित कारणों से अनुमति दी गई। प्रबंध समिति के सदस्यों/पदाधिकारियों की हैसियत से दायर जमानत आवेदनों को ऊपर उल्लिखित कारणों से खारिज किया गया।”

मामले की पृष्ठभूमि

27.05.2024 को भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 409, 468, 471 और 120-बी के तहत अपराधों के लिए कई पादरियों सहित आरोपियों के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गईं। 24.05.2024 को जबलपुर जिला कलेक्टर द्वारा इस आशय का निर्देश दिए जाने के बाद पुलिस ने आपराधिक कार्रवाई शुरू की। कलेक्टर ने मेटा (पूर्व में फेसबुक) में एक पोस्ट भी अपलोड की जिसमें अभिभावकों को उनके बच्चों के स्कूलों के बारे में अपनी शिकायतें प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया।

उक्त पोस्ट में कलेक्टर ने अभिभावकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक नंबर (ISBN) को सत्यापित करना भी संभव बनाया। बाद में अवैध शुल्क वृद्धि और फर्जी ISBN नंबरों के विषय पर शिकायतें और जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गईं, जिसके लिए पुलिस ने जबलपुर में कई स्कूल प्रबंधन के पदाधिकारियों के साथ-साथ पुस्तक विक्रेताओं और प्रकाशकों को भी हिरासत में लिया। एफआईआर दर्ज होने के बाद कई आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।

दर्ज किए गए उक्त अपराधों/एफआईआर के विरुद्ध आरोपियों ने सीआरपीसी की धारा 439 और 438 के तहत जमानत याचिका दायर की। आरोपियों को जमानत देने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा कि एफआईआर और जांच रिपोर्ट प्रथम दृष्टया स्कूल प्रबंधन की फीस वृद्धि और जाली पुस्तकों की बिक्री के माध्यम से अवैध आर्थिक लाभ प्राप्त करने में संलिप्तता को दर्शाती है।

अदालत ने अनुमान लगाया,

“आरोप स्कूल के प्रबंधन के खिलाफ हैं। हालांकि कुछ आवेदक दावा कर रहे हैं कि वे प्रिंसिपल के रूप में काम कर रहे हैं, लेकिन रिकॉर्ड के अनुसार, वे प्रबंधन सोसायटी के सदस्य हैं और शैक्षणिक संस्थानों को चलाने वाली प्रबंधन समिति में हैं। इसलिए प्रथम दृष्टया वे स्कूल प्रबंधन के मामलों से जुड़े हुए हैं।”

कई स्कूलों द्वारा अवैध फीस वृद्धि के आरोपों के जवाब में, यहां तक ​​कि उनमें से कुछ द्वारा 50% की सीमा तक आवेदकों/आरोपियों ने प्रस्तुत किया कि मध्य प्रदेश निजी विद्यालय (फीस तथा संबंध विषयों का विनियमन) अधिनियम 2017 और उसके तहत 2020 के नियम इस मामले को नियंत्रित करते हैं। कोई दंडात्मक प्रावधान नहीं हैं जिन्हें लागू किया जा सकता है भले ही आरोपों को सही माना जाए।

यदि 2017 अधिनियम में शुल्क वृद्धि के लिए निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन है तो अतिरिक्त शुल्क की वापसी के लिए जिला स्तर पर समिति का गठन करके और निजी स्कूल प्रबंधन पर जुर्माना लगाने के लिए अधिनियम की धारा 10 (2) को लागू किया जा सकता था, यह आवेदकों के वकीलों द्वारा प्रस्तुत किया गया।

यह राशि सिविल मुकदमे द्वारा भी वसूल की जा सकती थी। एफआईआर का पंजीकरण 2017 अधिनियम के दायरे से बाहर है। वकीलों ने कहा कि 2017 के अधिनियम के तहत कोई अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता। एफआईआर में IPC की अन्य धाराओं पर भरोसा करना कानून के दायरे से बाहर है, क्योंकि इसमें कोई जालसाजी या धोखाधड़ी शामिल नहीं है।

आरोपियों में से एक भरतेश भारिल, वर्धमान विद्या विहार एजुकेशनल एकेडमी का सचिव है, जो ज्ञान गंगा इंटरनेशनल स्कूल, जबलपुर और देश भर में 90 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों को चलाने वाली रजिस्टर्ड सोसायटी है।

राज्य के वकील ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि फीस वृद्धि और स्कूल की किताबों की आपूर्ति की आड़ में अभिभावकों को लूटा गया। वकील ने विशेष रूप से कहा कि आरोपियों से डुप्लिकेट आईएसबीएन नंबर वाली किताबें जब्त की गई थीं। स्कूल प्रबंधन ने कथित तौर पर जोर दिया कि छात्र अपनी अध्ययन सामग्री विशिष्ट विक्रेताओं से खरीदें जो जाली आईएसबीएन नंबर वाली किताबें दे रहे थे।

राज्य के अनुसार जब्त की गई पुस्तकों में पाए गए ISBN नंबरों को ISBN की आधिकारिक वेबसाइट से सत्यापित नहीं किया जा सका। जांच आगे बढ़ रही है और प्रत्येक आरोपी की भूमिका और संलिप्तता की सीमा अभी तक निर्धारित नहीं की गई। इसलिए राज्य ने स्कूलों के अधिकारियों द्वारा पेश की गई जमानत याचिकाओं को खारिज करने के लिए दबाव डाला।

सभी एफआईआर में आरोप एक जैसे थे, इसलिए अदालत ने विभिन्न निजी स्कूल प्रबंधन के सदस्यों द्वारा दायर जमानत याचिकाओं को खारिज करना उचित समझा।

पुस्तक विक्रेताओं द्वारा दायर जमानत याचिकाओं में यह तर्क दिया गया कि स्कूल समय-समय पर प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष में पुस्तकों की सूची जारी करते हैं और नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करते हैं। किसी भी स्टूडेंट को किसी विशिष्ट स्टोर या बुकशॉप से ​​किताबें खरीदने के लिए मजबूर नहीं किया जाता, उनके लिए उपस्थित वकील ने प्रस्तुत किया।

यह कहा गया कि राजा राम मोहन राय राष्ट्रीय एजेंसी आईएसबीएन नंबर आवंटित करती है। वर्ष 2016 के बाद जारी किए गए ऐसे नंबर ऑनलाइन पोर्टल पर उपलब्ध हैं। इस तर्क के अलावा कि नमूना पुस्तकों में आईएसबीएन नंबर जाली थे, राज्य ने यह भी प्रस्तुत किया कि पुस्तकों पर सूचीबद्ध एमआरपी मुद्रण और हैंडलिंग शुल्क की तुलना में बहुत अधिक थे।

राज्य सरकार ने आगे तर्क दिया,

"पुस्तक विक्रेताओं और प्रकाशकों के साथ स्कूल प्रबंधन की भागीदारी का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पुस्तकों की कीमत वास्तविक लागत से लगभग 5-10 गुना अधिक है।"

एफआईआर का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने पुस्तक विक्रेताओं को जमानत पर रिहा करने से भी इनकार किया।

केस टाइटल- शाजी थॉमस बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य तथा संबंधित मामले

Tags:    

Similar News