अवैध हिरासत और हथकड़ी लगाना अनुच्छेद 21 का घोर उल्लंघन : एमपी हाईकोर्ट ने SHO से जुड़े मामले में सख़्त रुख अपनाया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने एक व्यक्ति को बिना किसी अपराध दर्ज किए और अदालत की अनुमति के बिना पुलिस थाने में अवैध रूप से बंद रखने तथा हथकड़ी लगाने के मामले को बेहद गंभीर बताते हुए कड़ी नाराज़गी जताई। अदालत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन करार दिया। साथ ही इंदौर के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वह यह स्पष्ट करें कि संबंधित थाना प्रभारी (SHO) के खिलाफ विभागीय और आपराधिक स्तर पर क्या कार्रवाई प्रस्तावित की जा रही है।
यह आदेश जस्टिस विजय कुमार शुक्ला और जस्टिस विनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिका आकाश तिवारी द्वारा दायर की गई, जिसमें आरोप है कि उनके बहनोई राजा दुबे को अवैध रूप से थाने में हिरासत में रखा गया और बिना किसी न्यायिक आदेश के हथकड़ी पहनाई गई।
मामले के अनुसार राजा दुबे को पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया, जबकि न तो उसके खिलाफ कोई FIR दर्ज की गई और न ही अदालत से हथकड़ी लगाने की अनुमति ली गई। 2 दिसंबर को हाईकोर्ट ने चंदन नगर थाना प्रभारी इन्द्रमणि पटेल को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने का निर्देश दिया था।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान SHO पटेल ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत होकर तथ्यों से इनकार नहीं किया। उन्होंने स्वीकार किया कि राजा दुबे को थाने में रोका गया था और उसे हथकड़ी भी लगाई गई। उन्होंने अपने बचाव में दलील दी कि यह कार्रवाई कथित रूप से दुबे के पिता द्वारा किए गए गंभीर अपराध के चलते की गई। उन्होंने बताया कि मुख्य आरोपी का पता नहीं चल पा रहा है और पीड़ित पक्ष के दबाव में आकर दुबे को थाने बुलाया गया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि दुबे को हथकड़ी इसलिए लगाई गई ताकि वह पुलिस स्टेशन से भाग न सके।
हालांकि हाईकोर्ट ने इन तर्कों को पूरी तरह खारिज कर दिया। खंडपीठ ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि SHO ने खुद स्वीकार किया कि हथकड़ी लगाने के लिए किसी सक्षम न्यायालय से कोई आदेश नहीं लिया गया। अदालत ने कहा कि बिना वैधानिक आधार के किसी नागरिक को हिरासत में रखना और हथकड़ी पहनाना कानून के बिल्कुल विपरीत है।
आदेश में खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि थाना प्रभारी इन्द्रमणि पटेल की यह कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त नागरिक के जीवन के मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन है और यह एक गंभीर अवैध कृत्य है, खासतौर पर तब जब मामले के तथ्य निर्विवाद हैं।
अदालत ने अब इंदौर के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वह शपथपत्र के माध्यम से यह बताएं कि इस मामले में संबंधित SHO के खिलाफ किस प्रकार की आपराधिक और विभागीय कार्रवाई प्रस्तावित की जा रही है।
मामले को आगे की सुनवाई के लिए 9 दिसंबर को सूचीबद्ध किया गया।