क्रिमिनल केस की सुनवाई के लिए कौन-सी कोर्ट होगी?

Update: 2024-11-14 06:03 GMT

क्रिमिनल केस की शुरुआत FIR से होती है। उसके बाद पुलिस जब अपनी फाइनल रिपोर्ट अदालत में पेश कर देती है तब चार्ज फ्रेम होते हैं, चार्ज के बाद यह तय होता है कि किसी क्रिमिनल केस में ट्रायल किस अदालत द्वारा चलाया जाएगा। विचारण किस कोर्ट द्वारा किया जाएगा यह महत्वपूर्ण और बुनियादी प्रश्न है क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर आगे की प्रक्रिया को तय करता है तथा जब इस प्रश्न का उत्तर मिलता है जब यह तय कर लिया जाता है कि विचारण किस कोर्ट द्वारा किया जाएगा।

BNSS की धारा 197 जांच और विचारण के मामूली स्थान का वर्णन करती है। इस धारा के अनुसार किसी अपराध में जांच अथवा विचारण के लिए उस कोर्ट को अधिकारिता होगी जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया है। इस धारा में वर्णित उपबंधों के अनुसार कोई भी मजिस्ट्रेट किसी ऐसे मामले में विचारण के लिए अधिकृत नहीं है जो उसकी स्थानीय अधिकारिता से परे घटित हुआ है।

शाम आलम खान बनाम भारत संघ 1982 के एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निर्णय दिया है कि यदि अभियुक्त ने दिल्ली संघ क्षेत्र में कोई अपराध किया है तो उस अपराध के लिए उसका गाजियाबाद के कोर्ट में विचारण नहीं किया जा सकता।

अनेक मामले इस तरह के होते है जिनके संबंध में मामूली स्थान का निर्धारण कर पाना थोड़ा कठिन होता है। धारा 197 विचारण का मामूली स्थान बता रही है परंतु अनेक ऐसे मामले है जिनका विचारण केवल इस आधार पर नहीं किया जा सकता के जहां अपराध हुआ है वही विचारण कर दिया जाए।

कभी-कभी अपराध अनेक क्षेत्रों में किए जाते है या फिर ऐसे अपराध होते है जो चालू रहते है और अलग-अलग स्थान में क्षेत्रों में होते रहते है। इस प्रकार के अपराधों के विचारण के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 178 अत्यंत महत्वपूर्ण है।

धारा 198 में पूर्ववर्ती धारा 197 के कतिपय वादों का उल्लेख है अर्थात जब धारा 197 के आधार पर विचारण के कोर्ट का निर्धारण नहीं हो पाता है तो धारा 198 से काम लिया जाता है।

इस धारा में महत्वपूर्ण उपबंध दिया है कि किन परिस्थितियों में विचारण कोर्ट अपराध के स्थानीय सीमा के बाहर भी हो सकता है। वह परिस्थितिया निम्नलिखित है।

जब अपराध कारित किए जाने का स्थान क्षेत्र अनिश्चित हो।

जब अपराध का कुछ हिस्सा स्थानीय क्षेत्र तथा कुछ हिस्सा दूसरे क्षेत्र में किया गया हो। जब अपराध निरंतर चालू रहने वाले स्वरूप का हो तथा एक से अधिक स्थान में क्षेत्रों में चालू रहता है जैसे कि अपहरण।

जब अपराध का निर्माण विभिन्न स्थान क्षेत्रों में किए गए अनेक कार्यों से होता है।

एम पी राज्य बनाम केपी घियारा के केस में आपराधिक न्यास भंग का अपराध किया गया था। संपत्ति अ नामक स्थान पर प्राप्त की गयी थी तथा अभियुक्तों द्वारा उसका बेईमानी से दुर्विनियोग ब नामक स्थान पर किया गया था।

इस दशा में निर्णय दिया गया कि मामले की जांच या विचारण का कार्य किसी भी ऐसे कोर्ट द्वारा किया जा सकता है जिसे अ और ब नामक स्थान पर स्थानीय अधिकारिता प्राप्त है।

महिला अपराध से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मामला श्रीमती सुजाता मुखर्जी बनाम प्रशांत कुमार मुखर्जी के मामले में अपीलार्थी सुजाता मुखर्जी को दहेज की मांग के लिए उसको ससुराल रायगढ़ में सास, ससुर और पति ने प्रताड़ित किया। जब वह रायपुर अपने मायके में आ गयी। तब उसका पति उसके घर आया और उस पर प्रहार किया।

इस प्रकार भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए तथा 506बी तथा 323 के अंतर्गत अपराध दोनों स्थानों अर्थात रायगढ़ तथा रायपुर होते रहे। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया है कि दोनों स्थानों में से किसी भी स्थान के मजिस्ट्रेट को इन अपराधों के विचारण की अधिकारिता है।

कभी-कभी अपराध कही गयी बातों द्वारा भी किए जाते है। जैसे कि किसी व्यक्ति को विचारण के माध्यम से किसी अपराध को करने के लिए उकसाया जा रहा है तो यह कही गयी बातों द्वारा अपराध है।

मान लीजिए कि कोई व्यक्ति टेलीफोन के माध्यम से किसी व्यक्ति को हत्या करने के लिए उकसा रहा है। यह टेलीफोन के माध्यम से कही गयी बातों द्वारा अपराध है। ऐसी परिस्थिति में दुष्प्रेरण के अपराध का विचारण किस कोर्ट द्वारा किया जाएगा?

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 199 इस संबंध में विस्तृत चर्चा करती है।

इस धारा के अनुसार जब कोई कार्य किसी कही गयी बात द्वारा और उस कही गयी बात के निकले हुए परिणाम के कारण अपराध है तब ऐसे अपराध की जांच या विचारण ऐसे कोर्ट द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसी बात कही गयी है या ऐसा परिणाम निकला है।

सम्राज्ञी बनाम शिवदयाल मल का एक मामला है। इसमें निर्णय दिया गया है कि जहां कोई व्यक्ति अपने द्वारा कही गयी बातों से अपराध करता है, उस अपराध करवाने हेतु कोलकाता से गोरखपुर पत्र भेजता है और उस पत्र को एजेंट गोरखपुर में प्राप्त कर लेता है। दुष्प्रेरण का अपराध पूर्ण हो जाएगा अतः अपराध का विचारण कोलकाता या गोरखपुर में किया जा सकेगा।

रेखा बाई बनाम दत्तात्रेय के केस में मुंबई हाई कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि मानहानि के अपराध के लिए विचारण उस स्थान के कोर्ट में किया जा सकेगा जहां मानहानि जनक पत्र लिखकर उसे पत्र पेटी में डाला गया था यह जहां पत्र प्राप्त हुआ और पढ़ा गया था।

अनेक अपराध ऐसे होते है जो ईमेल, टेलीफोन या पत्र के माध्यम से होते है। ऐसे अपराधों का विचारण BNSS की धारा 202 के माध्यम से उन स्थानों पर किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसे पत्र या संदेश भेजे गए है या फिर ऐसे पत्र या संदेश प्राप्त किए गए है।

छल और धोखाधड़ी के मामले में विचारण ऐसे कोर्ट में किया जाता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर छल व धोखाधड़ी में किसी संपत्ति का परिधान किया गया। जैसे कि कोई व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति से कोई धनराशि जो नोटों में है छल द्वारा प्राप्त कर लेता है, ऐसी परिस्थिति में जिस स्थान पर नोटों को प्राप्त किया गया है वह स्थान पर विचारण किया जाएगा।

कई अपराध यात्रा के दौरान घट जाते है। जैसे किसी जलयान में या फिर किसी हवाई जहाज में कोई अपराध घट गया। यहां प्रश्न उठता है कि अब ऐसी परिस्थिति में अपराध का विचारण किस कोर्ट की अधिकारिता में होगा। धारा 203 के अंतर्गत विचारण उसी स्थान पर किया जाएगा जिस स्थान पर से यात्रा के दौरान गुजरा जा रहा था या फिर जहां से वाहन चला था।

कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो अनेक होते है परंतु अपराधों से मिलकर कोई एक ही अपराध बनता है। इन अनेकों अपराधों का एक ही विचारण किया जाता है। एक ही आरोप तय किए जाते है ऐसे अपराधों का विचारण उस कोर्ट द्वारा किया जा सकता है जो कोर्ट इन अपराधों में से किसी भी एक अपराध का विचारण करने के लिए सक्षम है।

भारतीय न्याय संहिता भारत से बाहर अपराध करने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होती है। ऐसी परिस्थिति में BNSS की धारा 208 भारत से बाहर किए गए अपराधों के विचारण के संबंध में कोर्ट का निर्धारण करती है। इस धारा के अनुसार जब कोई अपराध भारत से बाहर भारत के किसी नागरिक द्वारा किया जाता है अब चाहे वह अपराध खुले समुंद्र या किसी अन्य जगह पर हो।

ऐसे अपराधों का विचार है उस कोर्ट द्वारा किया जाता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर वह व्यक्ति पकड़ाया गया है या पाया गया है।

एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 208 के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए अभिकथन किया है कि कोई व्यक्ति जिसने भारत के बाहर किसी देश में अपराध किया हो और फरार हो गया हो। यह आपत्ति उठा कर दांडिक कार्यवाही से स्वयं को बचा नहीं सकेगा कि भारत के कोर्ट को उसके अपराध के विचारण की अधिकारिता नहीं है।

यदि ऐसा व्यक्ति भारत में कहीं भी पाया जाता है तो उसके विरुद्ध विचारण कार्यवाही उस ही स्थान पर होगी जहां वह पाया जाता है या फिर जहाँ पीड़ित व्यक्ति उसके विरुद्ध कार्यवाही चलाना चाहता है लेकिन भारत के बाहर किए गए अपराध के विचारण के लिए केंद्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होती है। किसी भी पूर्व मंजूरी के अभाव में इस प्रकार का कोई विचारण नहीं चलाया जा सकता है।

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