क्रिमिनल केस में आरोपी कब हो सकता है सरकारी गवाह?

Update: 2024-11-20 10:33 GMT

किसी क्रिमिनल केस में अभियोजन अनेक आरोपियों में से किसी एक आरोपी को अभियोजन के विटनेस के रूप में खड़ा कर सकता है एवं ऐसे आरोपी को अपने स्टेटमैंट के आधार पर क्षमादान दिए जाने जैसी व्यवस्था भी उपलब्ध है। कभी-कभी गंभीर प्रकृति के अपराधों के मामले में अभियोजन पक्ष को यथेष्ट साक्ष्य नहीं मिल पाते हैं जिस कारण दोषी होते हुए भी अभियुक्तों को दोषमुक्ति का मिल पाने का अवसर मिल जाता है। अभियोजन पक्ष प्रकरण की सभी वास्तविक बातों को कोर्ट के सामने लाने हेतु अभियुक्तों में से किसी एक अभियुक्त को सरकारी गवाह बना देता है। यह अभियुक्त मामले के सभी वास्तविक तथ्यों को कोर्ट के सामने रख देता है तथा यह अपराध करने वाले अन्य लोगों से भेद कर जाता है।

ऐसी परिस्थिति में कोर्ट के पास में यह अधिकार है कि इस प्रकार के सरकारी गवाह को क्षमादान प्राप्त प्रदान कर सकता है।

BNSS धारा 343

BNSS की धारा 343 के अंतर्गत सह अपराधी को क्षमादान दिए जाने का प्रावधान किया गया है। इस धारा में अपराधी को क्षमादान किए जाने संबंधी व्यवस्थित प्रावधान उपलब्ध है। किसी मामले में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संबंध रखने वाले या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उस प्रकरण में जुड़े हुए व्यक्ति से साक्ष्य प्राप्त करने के उद्देश्य से कोर्ट उसे क्षमादान की शर्त पर मामले की सभी वास्तविक परिस्थितियों का स्पष्ट और सत्य प्रकटन करने का कहता है। सह अपराधी मामले की वास्तविकता का प्रकटन कोर्ट के समक्ष कर देता है तो कोर्ट द्वारा उसे क्षमादान दिया जा सकता है।

गंभीर प्रकृति के मामलों में अभियुक्तों को दंड देने के उद्देश्य से BNSS में धारा 343 के अंतर्गत अभियुक्त को क्षमादान का प्रावधान रखा गया है। संयुक्त रूप से किए गए अपराध में कोई ऐसा अभियुक्त जिसका मामले से सीधा संपर्क हो उसे क्षमादान देकर अन्य अभियुक्तों को दंडित किया जा सकता है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत सह अपराधी सक्षम साक्षी होता है।

क्षमादान दिए जाने के लिए कौन सा मजिस्ट्रेट सक्षम होता है-

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 343 के अंतर्गत उन मजिस्ट्रेट का उल्लेख किया गया है जो क्षमादान दिए जाने के संबंध में सशक्त होते हैं।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट

कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग जहां मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तथा महानगर मजिस्ट्रेट का संबंध है वहां अपराध के अन्वेषण, जांच या विचारण के किसी भी चरण में से अभियुक्त को क्षमादान कर सकता है लेकिन प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट केवल जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में सह अपराधी को समाधान कर सकता है। अन्वेषण के प्रक्रम में किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग को क्षमादान दिए जाने की शक्ति प्राप्त नहीं है।

सह अपराधी को इस शर्त पर समाधान किया जा सकता है कि वह अपराध की वास्तविक घटना या उससे संबंधित व्यक्तियों के बारे में कोर्ट को यथेष्ट तथा सही सही जानकारी देगा, यह शर्त पूर्ण होना चाहिए, क्षमादान उसी परिस्थिति में दिया जाता है जब व्यक्ति सह अपराधी होता है।

BNSS की धारा 343 उन अपराधों का भी उल्लेख करती है जिनमे क्षमादान दिया जा सकता है। वह अपराध निम्न है-

वह अपराध जो सेशन कोर्ट द्वारा विचारणीय है।

ऐसे अपराध जो 7 वर्ष तक यह इससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है।

मेसी नैंसी जैन बनाम महाराष्ट्र राज्य 1985 के मामले में कहा गया है कि धारा 306 (CRPC) के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी उपरोक्त वर्णित अपराध से संबंधित है उसे इस शर्त पर क्षमादान किया जा सकता है कि वह अपराध एवं घटना से संबंधित सभी परिस्थितियों को जो कि उसे ज्ञात है सही-सही बता देगा।

के सरस्वती बनाम विशेष पुलिस प्रतिस्थापन सीबीआई के मामले में कहा गया है कि क्षमादान संबंधी मजिस्ट्रेट की अधिकारिता में हाई कोर्ट द्वारा किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

BNSS की धारा 343 के अंतर्गत यदि सुनवायी करने वाला मजिस्ट्रेट सक्षम नहीं है और मामला सेशन कोर्ट द्वारा विचारणीय है तो संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट है तो ऐसे मामले को सेशन कोर्ट के सुपुर्द कर देगा।

मजिस्ट्रेट द्वारा क्षमादान संबंधी शक्ति का प्रयोग विरोधी पक्षकार के आवेदन पर ना किया जाकर विधि के प्रति स्थापित सिद्धांतों के आधार पर किया जाना चाहिए। इस प्रकार से क्षमादान की शक्ति का प्रयोग आवेदनों के आधार पर नहीं किया जाता है। अभियोजन पक्ष उस सरकारी गवाह को पेश करता है जिसे क्षमादान दिलवाया जाना है।

सरकारी गवाह जिसे इस आधार पर समाधान किया गया हो कि वह मामले से संबंधित सभी तथ्य सरकार अभियोजकों को सही-सही बता देगा अभियुक्त नहीं रह जाता है बल्कि उसकी स्थिति साक्षी की तरह हो जाती है। कोर्ट द्वारा सरकारी गवाह को क्षमादान करने का उद्देश्य अभियुक्त का एक साक्षी के रूप में साक्ष्य लेना होता है।

बंगारू लक्ष्मण बनाम राज्य सुप्रीम कोर्ट के वाद में आरोपी के विरुद्ध षड्यंत्र का तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 52 के अधीन आरोप था उसके सह अपराधी द्वारा अपराध की घटना का पूरा ब्यौरा खुलासा किए जाने के फलस्वरूप उसे विशेष कोर्ट ने क्षमा दान कर दिया।

अपीलार्थी द्वारा इस क्षमादान का इस आधार पर विरोध किया गया कि मजिस्ट्रेट जिसमे विशेष न्यायाधीश भी सम्मिलित है के द्वारा अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पत्र फाइल किए जाने के पूर्व ही उसे क्षमादान किया जाना था तथा धारा 343 के उल्लंघन में होने के कारण उक्त आदेश अपास्त किए जाने योग्य है।

इस दलील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने विनिश्चय किया कि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल किए जाने के पूर्व यदि मजिस्ट्रेट या विशेष न्यायाधीश का समाधान हो जाए कि सह अभियुक्त अपराध के बारे में पूरी जानकारी दे रहा है और वह क्षमादान किए जाने योग्य है तो वह ऐसा कर सकता है।

BNSS की धारा 343 के अंतर्गत इस बारे में कोई विरोध नहीं है तथा स्पष्ट उल्लेख है। इस संबंध में मजिस्ट्रेट कोर्ट का निर्णय उसके न्यायिक विवेक पर आधारित होने के कारण विधि माननीय तथा धारा 343 के प्रावधानों के अनुरूप होगा। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त निर्णय का समर्थन करते हुए अभिकथन किया कि मजिस्ट्रेट द्वारा इस चरण में क्षमादान की शक्ति प्रदान करने का मूल उद्देश्य है कि अभियुक्तों के प्रति किसी तरह का अन्याय ना हो तथा विचारण कार्यवाही त्वरित निपटायी जा सकें।

रेणुका बाई बनाम महाराष्ट्र राज्य के एक मुकदमे में सह अपराधी जिसे धारा 343 के अंतर्गत क्षमादान दिया गया था ने अभियुक्त के साथ में मिथ्या साक्ष्य देने का अपराध किया था। कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि क्षमादान किए गए से अपराधी ने कोर्ट को अपराध के बारे में सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराई थी तथा हाई कोर्ट ने अपनी अंतर्निहित शक्ति को प्रयुक्त करते हुए उसके विरुद्ध कार्यवाही संस्थित की जिसे सुप्रीम कोर्ट ने न्यायोचित ठहराया।

एसएस चौधरी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में कहा गया है कि यदि कोई साक्षी स्वेच्छा से स्वयं को फंसाने वाले कथन करता है जिससे उसका आत्म अभिशंसन होता हो और ऐसा साक्ष्य देता है तो वह धारा 306(CRPC) के अधीन क्षमादान के योग्य नहीं होगा। कोर्ट अपने विवेक अनुसार उसके विरुद्ध कार्यवाही कर सकता है।

भेदी साक्षी द्वारा दी गयी साक्ष्य की विश्वसनीयता दो बातों पर निर्भर करती है।

विश्वास करने का उचित कारण हो कि वह विश्वास करने योग्य साक्षी है तथा वह कोई असत्य जानकारी नहीं दे रहा है।

उसके द्वारा दी गयी साक्ष्य की पर्याप्त रूप से संपुष्टि होनी चाहिए।

धारा 344 BNSS के अंतर्गत क्षमादान का निर्देश देने की शक्ति का प्रावधान दिया गया है। मामले की सुपुर्दगी के पश्चात किसी भी समय निर्णय दिए जाने के पहले कोर्ट सह अपराधी को क्षमादान दे सकता है यदि उसे यह प्रतीत हो जाता है कि उसके द्वारा दी गयी सभी जानकारियां सही और स्पष्ट है।

BNSS की धारा 345 क्षमादान की शर्तों का पालन नहीं करने वाले व्यक्ति पर विचारण चलाने संबंधी प्रक्रिया का उल्लेख करती है। इससे संबंधित सभी व्यवस्था इस धारा के अंतर्गत दी गयी है। इस धारा में वर्णित उपबंधों के अनुसार वह व्यक्ति जिसे धारा 343 एवं 344 के अधीन शमादान प्रदान की गयी है उस अपराध के विचारण का पात्र हो सकता है जिसके बारे में उसे क्षमादान दिया गया है। किसी अन्य अपराध के लिए भी जिस के संबंध में उसका दोषी होना प्रतीत होता है उसे विचारण हेतु बुलाया जा सकता है बशर्ते कि पब्लिक प्रोसिक्यूटर यह प्रमाणित कर दें कि उसने उस बात को या किसी अन्य बात को जानबूझकर छिपाकर या साथ देकर क्षमादान की शर्त का उल्लंघन किया है।

यदि कोर्ट को लगता है कि सह अपराधी ने सही और स्पष्ट जानकारी नहीं दी है तो कोर्ट उसके समाधान के अधिकार का हरण कर लेता है तथा उस पर विचारण की कार्यवाही करता है।

इस प्रकार के सरकारी गवाह द्वारा यदि अपने दिए गए कथन से पलटा जाता है तो उसके विरुद्ध मिथ्या कथन देने के लिए अभियोजन का आवेदन खुले कोर्ट में राज्य की ओर से दिया जा सकता है।

इस लेख के अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण विषय यह है कि अभियोजन पक्ष द्वारा ही सरकारी गवाह को प्रस्तुत किया जाता है। किसी सह अपराधी द्वारा स्वयं को सरकारी गवाह होने के लिए कोई आवेदन नहीं दिया जाता है यदि वह ऐसा आवेदन देगा तो मजिस्ट्रेट के विवेक पर है कि वह उसका आवेदन स्वीकार करें अन्यथा ऐसा आवेदन संस्वीकृति माना जाएगा। सामान्यतः अभियोजन पक्ष अपनी ओर से इस प्रकार से अपराधी को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करता है।

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