संक्षिप्त विचारण क्या होता है और किन मामलों में यह लागू होता है जानिए प्रावधान

Update: 2022-10-29 10:49 GMT

आपराधिक मामलों का त्वरित विचारण आवश्यक है। विचारण में अत्यधिक विलम्ब से प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का अतिक्रमण होता है। मामलों का उचित एवं त्वरित विचारण न्याय प्रशासन की एक अहम आवश्यकता एवं अपेक्षा है। यहां पर असमंजस की स्थिति का जन्म होता है क्योंकि एक तरफ उचित ट्रायल भी करना है और दूसरी तरफ मामलों को शीघ्र निपटाने की भी मांग है।

कानूनी प्रक्रिया विशद होती है, उचित न्याय के लिए इस प्रक्रिया से गुजरना होता है। जल्दी विचारण समाप्त कर देगा थोड़ा कठिन कार्य है लेकिन दंड प्रक्रिया संहिता छोटे आपराधिक मामलों को संक्षिप्त विचारण (Summary trial) के द्वारा पूर्ण करने के प्रावधान करती है। इस आलेख में दंड प्रक्रिया संहिता के इस ही प्रावधान पर चर्चा की जा रही है।

नाहर सिंह यादव बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि- आपराधिक विचारण से व्यक्ति न केवल वैयक्तिक स्वतंत्रता से वंचित हो जाता है, अपितु जीवन से भी वंचित हो जाता है अतः विचारण स्वतंत्र, निष्पक्ष, त्वरित एवं ऋतु होना चाहिये। त्वरित विचारण व्यक्ति का मूल अधिकार है अत्यधिक विलम्ब से लोगों की न्यायपालिका के प्रति आस्था में कमी आने लगती है।

संक्षिप्त विचारण इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है। संक्षिप्त विचारण में कार्यवाहियों को संक्षेप में लेखबद्ध किया जाता है। इसमें विस्तृत साक्ष्य लिया जाना एवं लम्बे निर्णय लिखा जाना आवश्यक नहीं है। दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 260 से 265 तक में संक्षिप्त विचारण के बारे में प्रावधान किया गया है।

संक्षिप्त विचारण की शक्तियाँ

संहिता की धारा 260 के अन्तर्गत संक्षिप्त विचारण की शक्तियाँ निम्नांकित को प्रदत्त की गई हैं-

(क) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट,

(ख) महानगर मजिस्ट्रेट,

(ग) उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त किया गया प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट -

संक्षिप्त विचारण वाले अपराध

संहिता की धारा 260 के अनुसार निम्नांकित मामलों का संक्षिप्त विचारण किया जा सकेगा-

(क) वे अपराध जो मृत्यु दण्ड, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय नहीं है।

(ख) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 379, धारा 380 या धारा 381 के अधीन चोरी के मामले, जिनमें चुराई हुई सम्पत्ति का मूल्य दो हजार रूपये से अधिक नहीं है।

(ग) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 411 के अधीन चोरी की सम्पत्ति प्राप्त करने के मामले, जिनमें सम्पत्ति का मूल्य दो हजार रूपये से अधिक नहीं है।

(घ) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 414 के अधीन चोरी की सम्पत्ति को छिपाने या उसके व्ययनित करने में सहायता करने के मामले, जिनमें सम्पत्ति का मूल्य दो हजार रूपये से अधिक नहीं है।

(ङ) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 454 एवं धारा 456 के अधीन अपराध ।

(च) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 504 के अधीन लोकशान्ति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से अपमान और धारा 506 के अधीन आपराधिक अभित्रास के मामले जो दो वर्ष की अवधि के कारावास से या जुर्माने से या दोनों से दण्डनीय है।

(छ) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी का दुष्प्रेरण ।

(ज) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी को करने का प्रयत्न, जब ऐसा प्रयत्न अपराध है।

(झ) ऐसे कार्य से होने वाला कोई अपराध, जिसकी बाबत पशु अतिचार अधिनियम, 1871 की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है। इस प्रकार उपरोक्त मामलों का संक्षिप्त विचारण किया जा सकता है, अन्य मामलों का नहीं।

जहाँ मजिस्ट्रेट यह पाता है कि मामले की प्रकृति को देखते हुए उसका संक्षिप्त विचारण किया जाना उचित नहीं है, वहाँ वह उसका इस संहिता के अधीन उपबंधित रीति से विचारण कर सकेगा।

इस व्यवस्था का मुख्य उख्य उद्देश्य मामलों का शीघ्र निस्तारण करना है। मात्र विलम्ब के आधार पर आर्थिक अपराधों में कार्यवाही को समाप्त कर दिया जाना इसका उद्देश्य नहीं है।

धारा 261 के अन्तर्गत द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा निम्नांकित अपराधों का संक्षिप्त विचारण किया जा-

(1) केवल जुर्माने से दण्डनीय अपराध,

(2) जुर्माने सहित या रहित छः माह तक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध,

(3) ऐसे अपराधों का दुष्प्रेरण एवं

(4) ऐसे अपराधों को करने का प्रयत्न।

संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया

संक्षिप्त विचारण हेतु दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 में समन मामलों के विचारण के लिए विहित प्रक्रिया का अनुसरण किया जायेगा।

संक्षिप्त विचारण में इसके लिए अपेक्षित औपचारिकताओं का पालन किया जाना आज्ञापक है। यह अपेक्षित है कि संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया एवं अभिलेख विधि द्वारा विहित संक्षिप्तता से परे न चले जायें।

दण्ड

संक्षिप्त विचारण के मामलों में 'तीन माह की अवधि से अधिक की अवधि के कारावास का दण्डादेश पारित नहीं किया जा सकेगा। यह प्रावधान धारा 262 में है।

संक्षिप्त विचारणों में अभिलेख

धारा 363 के अनुसार संक्षिप्त विचारण के मामलों में राज्य सरकार द्वारा विहित प्ररूप में निम्नांकित विशिष्टयों का उल्लेख किया जायेगा-

(क) मामले का क्रम संख्यांक

(ख) अपराध किये जाने की तारीख,

(ग) रिपोर्ट या परिवाद की तारीख,

(घ) परिवादी का नाम (यदि कोई हो)

(ङ) अभियुक्त का नाम, उसके माता-पिता का नाम और उसका निवास,

(च) परिवादित अपराध एवं साबित हुआ अपराध,

(छ) अभियुक्त का अभियोग एवं उसकी परीक्षा

(ज) निष्कर्ष,

(झ) दण्डादेश या अन्य अंतिम आदेश, तथा

(ञ) कार्यवाही समाप्त होने की तारीख

सभी विशिष्टियाँ अलग-अलग प्रविष्ट की जायेगी, सामूहिक रूप से एक साथ नहीं अभियुक्त के अभिवाक् एवं उसकी परीक्षा को अभिलिखित किया जाना आवश्यक है, अन्यथा विचारण दूषित माना जा सकेगा।

निर्णय

धारा 264 के अनुसार अन्त में मजिस्ट्रेट द्वारा निर्णय लिखा जायेगा।

निर्णय में

(i) साक्ष्य का सारांश,' एवं

(ii) निष्कर्ष के कारणों, का उल्लेख किया जायेगा।

निष्कर्ष के कारण साक्ष्य पर आधारित होंगे।

संक्षिप्त विचारण में मजिस्ट्रेट अपने पूर्ववर्ती मजिस्ट्रेट द्वारा लेखबद्ध की गई साक्ष्य पर निर्भर रहने के लिए आबद्ध नहीं है। उसे नये सिरे से विचारण करने की अधिकारिता है।

अभिलेख एवं निर्णय की भाषा

प्रत्येक अभिलेख एवं निर्णय

(i) न्यायालय की भाषा में लिखा जायेगा, तथा

(ii) उस पर मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे।

उच्च न्यायालय द्वारा प्राधिकृत किये जाने पर ऐसे अभिलेख एवं निर्णय उस अधिकारी द्वारा तैयार किये जा सकेंगे जिन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस प्रयोजनार्थ नियुक्त किया जाये।

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