मेंटेनेंस केस में क्या जटिलताएं हैं?

Update: 2024-10-21 04:51 GMT

मेंटेनेंस का केस यूं तो साधारण प्रकरण है और जल्दी से समाप्त भी हो जाता है लेकिन इस केस में कुछ ऐसा भी स्थितियां हैं जब अनेक जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं और यहाँ तक व्यक्ति को जेल भी जाना पड़ जाता है।

पत्नी बच्चे और माता पिता के भरण पोषण नहीं करने पर आश्रित संबंधित मजिस्ट्रेट को एक आवेदन देकर भरण पोषण प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान समय में माता पिता के मामले में भरण पोषण नहीं देने जैसी चीज कम देखने को मिलती है। लेकिन पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण से संबंधित मामले बहुत देखने को मिलते हैं। शादी होती है शादी के बाद पति पत्नी की आपस में बन नहीं पाती है और दोनों एक दूसरे को छोड़कर अलग अलग रहने लगते हैं। ऐसी स्थिति में उन दोनों का कोई बच्चा भी हो सकता है, तब पत्नी भरण पोषण प्राप्त करने के लिए अपने पति पर मुकदमा लगाती है।

एक भारतीय पत्नी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। इसी के साथ उसे घरेलू हिंसा अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत भी भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। वह तीन जगहों से भरण पोषण प्राप्त कर सकती है लेकिन कोर्ट सभी मामलों में एक साथ भरण पोषण लागू नहीं करता है, बल्कि यह देखा जाता है कि महिला को यथेष्ट भरण पोषण मिल रहा है या नहीं।

पति से अलग रहने वाली महिला के साथ बच्चा भी हो सकता है, तब वह बच्चे की ओर से भी भरण-पोषण की मांग करती है। सामान्य रूप से देखने में यह आता है कि एक कम आय वाले व्यक्ति पर कोर्ट सात से आठ हज़ार रुपए प्रति माह तक का भरण पोषण देने का आदेश देती है। इस राशि में पत्नी और बच्चे दोनों का भरण पोषण होता है।

महिला जिस दिन से भरण-पोषण की मांग करती है और अपना आवेदन संबंधित मजिस्ट्रेट को देती है उस दिवस से भरण पोषण प्रारंभ हो जाता है। जैसे कि धारा 144 के अधीन 1 जनवरी 2024 को मुकदमा लगाकर भरण पोषण की मांग की, तब अदालत 1 दिसंबर 2025 को यह निर्णय देती है कि पति को अपनी पत्नी को भरण-पोषण देना होगा क्योंकि उसकी पत्नी उससे युक्तियुक्त कारण से अलग रह रही है। ऐसी स्थिति में भले ही आदेश 1 दिसंबर 2025 को दिया गया हो लेकिन भरण पोषण का दायित्व 1 जनवरी 2024 से शुरू हो जाता है।

भरण पोषण में जेल

जब कोर्ट भरण पोषण देने का आदेश पति को दे देता है तब पति की ओर से भरण-पोषण की राशि जमा करने में आनाकानी की जाती है और ठीक तरह से भरण पोषण दिया नहीं जाता है। अगर अदालत ने ऐसा आदेश दे दिया है तब भरण पोषण का मीटर रोज चलने लगता है। अब किसी भी सूरत में पति ऐसे भरण पोषण से बच नहीं सकता है। उसके पास केवल उच्च कोर्ट में जाकर पुनरीक्षण लगाने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं होता है। अगर उच्च कोर्ट पुनरीक्षण को स्वीकार कर भरण पोषण के आदेश को निरस्त कर देता है, तब तो बात ठीक है। लेकिन ऐसा नहीं किया जाता है तो भरण-पोषण देना ही होता है।

ऐसे भरण पोषण का आदेश अंतरिम भरण पोषण होता है जो मुकदमे की शुरुआत में ही दे दिया जाता है। एक बात और ध्यान रखना चाहिए कि भरण पोषण की राशि पुरुष और महिला के स्टेटस को ध्यान में रखकर तय की जाती है। अगर कोई अमीर पुरुष है तब उसे अपनी पत्नी को अधिक भरण-पोषण देना होता है। भरण पोषण के मुकदमे के समय पक्षकारों को अपने-अपने शपथ पत्र प्रस्तुत करने होते हैं और यह बताना होता है कि वह कितना कमाते हैं और कितनी संपत्ति के मालिक हैं।

इसके आधार पर ही कोर्ट भरण पोषण की राशि का निर्धारण करता है। जब कोर्ट आदेश कर देता है तब पति चूक करता है जबकि ऐसी चूक नहीं की जाना चाहिए क्योंकि चूक करने से कोई हल नहीं है, उल्टा भरण पोषण की राशि और बढ़ती चली जाती है। इसलिए बेहतर यह होता है कि भरण-पोषण की राशि आदेश होते ही हाथों हाथ प्रदान कर दी जाए।

जब पति ऐसे भरण पोषण के आदेश के बाद भी पत्नी को भरण-पोषण नहीं देता है तब पत्नी भरण पोषण की वसूली के लिए एक मुकदमा लगा देती है, तब कोर्ट पहले एक नोटिस के माध्यम से पति को सूचित करता है कि वह भरण-पषण जमा करें। अगर पति ऐसे नोटिस पर भी भरण-पोषण नहीं देता है तब कोर्ट वसूली वारंट निकाल देती है। ऐसे वारंट के निकलने के बाद पुलिस पति को गिरफ्तार करके अदालत में पेश करती है। अदालत उस समय भी उससे भरण-पोषण की राशि देने का कहती है। अगर पति के पास देने के लिए रुपए नहीं होते हैं तब अदालत उसे जेल भेज सकती है।

ऐसी स्थिति में हर एक महीने के भरण-पोषण के लिए एक महीने की जेल हो सकती है। हाल ही में भारत के उच्चतम कोर्ट के समक्ष आए कुछ मुकदमों में उच्चतम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि हर एक महीने के भरण-पोषण के लिए एक महीने की जेल है।ऐसी जेल को काटने के बाद भी भरण पोषण की राशि समाप्त नहीं होती है। भरण पोषण देने का दायित्व वहीं का वहीं बना होता है, भले ही व्यक्ति जीवन भर जेल काटता रहे, फिर भी उसे भरण-पोषण की राशि तो देना ही होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह कहा है कि जेल भेजने का उद्देश्य भरण-पोषण की राशि दिलवाना है। इसका उद्देश्य यह नहीं है कि भरण पोषण नहीं देने के बदले जेल से उसका प्रतिकार कर दिया जाए। जैसे ही व्यक्ति भरण-पोषण की राशि अदा कर देता है और कोई भी राशि बकाया नहीं रहती है तब अदालत ऐसे व्यक्ति को रिहा करने के आदेश दिए देती है।

ऑक्शन लगा कर मेंटेनेंस दिया जाना

अदालत भरण पोषण के मामले में आजकल अधिक उन्नत हो गई है। जैसे कि भरण पोषण के मुकदमे के समय अदालत दोनों पक्षकारों से शपथ पत्र के माध्यम से उनकी संपत्तियों का और उनके उत्तराधिकारों का उल्लेख लेती है। जैसे अदालत पक्षकारों से यह पूछती है कि उनके पास क्या संपत्तियां है और उनके परिवार की कौन सी संपत्ति है जिसमें उन्हें उत्तराधिकार मिलना है। लोग इससे बचने के लिए झूठा ही अखबारों में जाहिर सूचना लगा देते हैं कि उन्होंने अपने बच्चे को संपत्ति से बेदखल कर दिया है जबकि उनका पुत्र उनके परिवार के साथ उस घर में ही रह रहा होता है। अदालत ऐसी किसी जाहिर सूचना को कोई महत्व नहीं देती है।

दूसरी बात यह है कि यदि जमीन या मकान का स्वामित्व पिता के नाम पर है तब किसी भी सूरत में उस संपत्ति में से उत्तराधिकार पिता के जीवित रहते हुए प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अगर उस व्यक्ति के पास कोई संपत्ति है जिस पर भरण पोषण देने का दायित्व है तब कोर्ट उस व्यक्ति की संपत्ति की नीलामी लगाकर महिला को भरण-पोषण दिलवा सकती है। क्योंकि ऐसे भरण पोषण की वसूली उधार रकम की वसूली की तरह होती है। जब कभी व्यक्ति उधार चुकता नहीं कर पाता है तब उसकी संपत्ति को बेच कर उसकी नीलामी लगाकर उधार देने वाले को रुपए दिलवाए जा सकते हैं।

ऐसा ही भरण पोषण के मामले में भी किया जा सकता है। कोर्ट किसी व्यक्ति को मिलने वाली तनख्वाह में से सीधे भरण पोषण की कटौती के आदेश भी दे सकती है। वह एक नियोक्ता पर भी यह दायित्व डाला जा सकता है कि वह अपने कर्मचारी को जो तनख्वाह दे रहा है उसमें से भरण पोषण की राशि पहले ही काट ले। आमतौर पर इतनी प्रक्रिया देखने को तो नहीं मिलती है क्योंकि जेल जाने पर व्यक्ति भरण पोषण की राशि कैसे भी अदा कर ही देता है और संपत्ति की नीलामी लगने तक की नौबत नहीं आती है।

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