Hindu Marriage Act किन लोगों पर लागू होता है?

Update: 2025-07-12 03:38 GMT

कोई भी अधिनियम केवल किसी देश के अधिवासी लोगों पर अधिनियमित होता है लेकिन इस एक्ट की धारा 1 के अनुसार हिंदू विवाह अधिनियम भारत राज्यों में अधिवासी समस्त हिंदुओं तथा भारत के बाहर रह रहे भारत के अधिवासी हिंदुओं के संबंध में भी लागू होता है।

गौर गोपाल राय बनाम शिप्रा राय एआईआर 1978 कोलकाता 163 के मामले में यह कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार यदि कोई व्यक्ति स्थाई रूप से दूसरे देश में रहने लगे तो उसे इस देश की विधि व्यक्तिगत संबंधों में लागू नहीं की जाएगी किंतु उस व्यक्ति के अधिवास के देश की विधि ही लागू होगी।

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 उन सभी पर भी लागू होता है जो भारत से बाहर रह रहे हैं किंतु उनकी नागरिकता भारत की है।

यह अधिनियम किन लोगों पर लागू होगा इस संबंध में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2 में उल्लेख किया गया है। इस धारा के अनुसार सबसे पहला प्रश्न यह है कि यदि अधिनियम हिंदुओं पर लागू होगा तो हिंदू कौन है!

भारत के विद्वानों के मतानुसार हिंदू धर्म एक सहिष्णु धर्म है तथा यह धर्म किसी एक संस्थापक द्वारा संचालित नहीं किया गया, किसी एक व्यक्ति का इस धर्म पर कभी प्रभाव नहीं रहा। किसी एक ईश्वर की पूजा नहीं करता है यह किसी एक दार्शनिक संकल्पना में विश्वास नहीं रखता है। यह तो पूरी सहिष्णुता के साथ व्यापक रूप से जीवन यापन का ढंग है।

इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए अधिनियम की धारा -2 का विस्तार किया गया और इस धारा के अनुसार वर्तमान अधिनियम सभी हिंदुओं पर लागू होता है। हिंदू धर्म के अंतर्गत जिन व्यक्तियों को शामिल किया जाएगा उन व्यक्तियों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है वह निम्न है-

वीरशैव, लिंगायत, ब्रह्मा, प्रार्थना और आर्य समाज के अनुयायी-

बौद्ध, जैन, सिख धर्म के व्यक्ति-

यह अधिनियम किसी ऐसे व्यक्ति पर लागू नहीं होगा जो धर्म से मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी है। यदि कोई व्यक्ति मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी नहीं है ऐसी सूरत में यह अधिनियम उस पर लागू होगा। इस धारा का अर्थ यह है कि यह अधिनियम केवल मुसलमान, ईसाई, पारसी, यहूदी पर ही लागू नहीं होगा इसके अलावा यह अधिनियम प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होगा जो हिंदू आस्थाओं से जुड़ा हुआ है। भारत के आदिवासियों पर भी यह धर्म लागू होता है परंतु कुछ मामलों में धारा 29 के अंतर्गत आदिवासियों को अपनी रूढ़ियों एवं प्रथाओं के अधीन कुछ मान्यताएं विशेष दी गई हैं।

कमलेश कुमार बनाम कन्नापुरम ग्राम पंचायत 1998 (1) सिविल लॉ जर्नल 409 केरल के मामले में यह तथ्य थे कि भारतीय मूल के निवासी एक बौद्ध धर्म के व्यक्ति ने जो जापानी कंपनी में कार्यरत था जापानी औरत के साथ जापान में रह रहा था। उसके साथ विवाह संस्कार संपन्न हुआ और विवाह नैयर समुदाय के अनुरूप संपन्न कराया। इस मामले में यह अभिनिश्चित किया गया कि पत्नी धारा 2(2) के अंतर्गत आवेदन करने हेतु एक हिंदू मानी जा सकती है।

यह अधिनियम आर्य समाज पर भी लागू होता है यदि कोई व्यक्ति आर्य समाज के रीति-रिवाजों के अंतर्गत विवाह करता है तो भी हिंदू विवाह अधिनियम 1955 उस पर अधिनियमित होगा।

राजगोपाल बनाम अरुमुगम एआईआर 1969 सुप्रीम कोर्ट (101) इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई ईसाई लड़की धर्म परिवर्तन करके हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किसी हिंदू पुरुष से विवाह करती है और स्थानीय हिंदू समुदाय उसे हिंदू मान लेता है तो लड़की हिंदू धर्म में परिवर्तित मानी जाएगी भले ही उसकी कोई औपचारिक शुद्धि नहीं हुई हो। हिंदू धर्म धर्मपरिवर्तन के माध्यम से धर्म में आए लोगों की कोई औपचारिक शुद्धि की व्यवस्था नहीं करता है तथा इसके लिए कोई औपचारिक शुद्धि की कोई आवश्यकता भी नहीं है। इस प्रकार के प्रकरण में हिंदू विवाह अधिनियम ही लागू होगा।

प्रिंसिपल गुंटुर मेडिकल कॉलेज बनाम मोहन राव एआईआर 1976 सुप्रीम कोर्ट 1904 के प्रकरण में यह अभिनिश्चित हुआ कि यह अधिनियम ऐसे मामलों में भी लागू होता है जिसमें किसी व्यक्ति का जन्म उसके माता-पिता द्वारा अपना धर्म परिवर्तन करने के पश्चात होता है तथा वह बाद में पुनः हिन्दू धर्म अपना लेता है।

जो व्यक्ति हिंदू धर्म छोड़कर अन्य धर्म अंगीकार कर लेता है उस व्यक्ति पर हिंदू विधि लागू नहीं होती है क्योंकि तब वह उस धर्म से संबंधित पर्सनल लॉ के शासन में आ जाता है।

नीता कृति देसाई बनाम बीनो सैमुअल जॉर्ज एआईआर 1998 मुंबई 74 के प्रकरण में पति जो जन्मतः ईसाई था उसने धोखा देकर अपनी पत्नी से विवाह किया। यह वादा किया कि वह हिंदू धर्म को स्वीकार कर लेगा। विवाह उपरांत उसने ऐसा नहीं किया। ऐसी स्थिति में जब दोनों पक्षकार हिंदू नहीं थे तो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2 इस मामले में लागू नहीं होगी और विवाह शून्य घोषित नहीं होगा।

सूरजमणि स्टेला कुज़र बनाम दुर्गाचरण हंसधा एआईआर 2001 सुप्रीम कोर्ट 998 के प्रकरण में कोर्ट द्वारा अभिनिश्चित किया गया कि जब अनुसूचित आदिम जाति के सदस्यों के बीच विवाह होता है तो उनका विवाह उनके मध्य प्रभावी रूढ़ि तथा प्रथा द्वारा शासित होता है न कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 द्वारा। इसी प्रकार जब उन पक्षकारों में से किसी के द्विविवाह किया जाता है तो उनके विवाह को शून्य घोषित करने के लिए किसी प्रभावी रूढ़ि या प्रथा का अभिवचन ही नहीं रूढ़ि के अस्तित्व को भी सिद्ध करना होगा जिसके अनुसार दूसरा विवाह शून्य है। यदि आदिवासी की प्रथा और रूढ़ि में दूसरा विवाह मान्य है तो हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत उसे मान्यता दी जाएगी।

यह अधिनियम भारत के आदिवासी हिंदुओं पर लागू होता है परंतु इस अधिनियम के अंतर्गत उन आदिवासियों को रूढ़ियों और प्रथाओं के अधीन कुछ मान्यताएं दी गई है। उन्हें यह रूढ़िए और प्रथाएं सिद्ध करना होती है।

यदि कोई विवाह विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अधीन हुआ है तो ऐसी परिस्थिति में विशेष विवाह अधिनियम लागू होता है परंतु यदि विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत हुए किसी विवाह से कोई संतान उत्पन्न होती है और वह संतान हिंदू होती है तो उस संतान पर हिंदू विवाह अधिनियम 1955 लागू होगा। यह हिंदुओं की धर्मज और अधर्मज दोनों प्रकार की संतानों पर लागू होता है।

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