क्या अनुसूचित जनजाति की महिला सदस्यों को समान उत्तराधिकार अधिकार मिलने चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट ने कमला नेटी बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी एवं अन्य (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर फैसला दिया, जिसमें अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe - ST) की महिलाओं को उत्तराधिकार (Inheritance) के अधिकार देने का सवाल उठाया गया। अदालत ने यह माना कि वर्तमान कानून के अनुसार, अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act - HSA) के तहत संपत्ति में अधिकार नहीं मिल सकता।
हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि इस कानून में बदलाव की जरूरत है और यह काम विधायिका (Legislature) को करना चाहिए। यह मामला उन बड़े सवालों को उठाता है, जो पारंपरिक जनजातीय कानूनों, संवैधानिक समानता और वैधानिक उत्तराधिकार अधिकारों (Statutory Inheritance Rights) के बीच संतुलन स्थापित करने से जुड़े हैं।
कानूनी मुद्दा: अनुसूचित जनजाति पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) की लागू होने की सीमा
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) हिंदुओं में संपत्ति के उत्तराधिकार (Succession) और विरासत (Inheritance) को नियंत्रित करता है, लेकिन इसकी धारा 2(2) (Section 2(2)) अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes - STs) को इससे बाहर रखती है।
इसका मतलब यह है कि जनजातीय समुदायों में उत्तराधिकार के विवाद पारंपरिक कानूनों के अनुसार तय किए जाते हैं, जो अक्सर पुरुष प्रधान (Patriarchal) होते हैं और महिलाओं को संपत्ति के समान अधिकार नहीं देते।
कमला नेटी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब तक विधायिका (Legislature) इस अधिनियम में संशोधन नहीं करती, तब तक अनुसूचित जनजाति की महिलाएं उत्तराधिकार का दावा नहीं कर सकतीं। अदालत ने यह भी दोहराया कि न्यायालय कानून की व्याख्या कर सकता है, लेकिन वह कानून बना नहीं सकता।
न्यायिक दृष्टांत (Judicial Precedents) और जनजातीय महिलाओं के अधिकार
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मधु किश्वर बनाम बिहार राज्य (Madhu Kishwar v. State of Bihar, 1996) के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें अदालत ने अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को संपत्ति के अधिकार देने पर विचार किया था। उस मामले में, अदालत ने यह माना था कि महिलाओं को संपत्ति में कुछ सीमित अधिकार मिल सकते हैं, लेकिन उसने जनजातीय उत्तराधिकार कानूनों को असंवैधानिक (Unconstitutional) घोषित करने से इनकार कर दिया था।
इसी तरह, लबीश्वर मांझी बनाम प्राण मांझी (Labishwar Manjhi v. Pran Manjhi, 2000) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर अनुसूचित जनजाति के लोग हिंदू रीति-रिवाजों (Hindu Customs) को अपनाते हैं, तभी उन पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू हो सकता है। अगर कोई ऐसा प्रमाण नहीं होता, तो पारंपरिक जनजातीय कानून ही मान्य होंगे।
बी. प्रेमानंद बनाम मोहन कोईकाल (B. Premananda v. Mohan Koikal, 2011) मामले में अदालत ने यह दोहराया कि कानूनी प्रावधान (Legal Provisions) हमेशा नैतिकता (Equity) से ऊपर होते हैं।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अदालतें केवल कानून की व्याख्या कर सकती हैं, लेकिन वह नए कानून नहीं बना सकतीं। यही दृष्टिकोण कमला नेटी मामले में भी अपनाया गया, जहां अदालत ने कहा कि महिलाओं के लिए समान अधिकार आवश्यक हैं, लेकिन इस बदलाव के लिए विधायिका को कदम उठाना होगा।
संवैधानिक मुद्दे: लैंगिक समानता (Gender Equality) और संपत्ति का अधिकार (Right to Property)
अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति के अधिकार नहीं मिलने से संवैधानिक सवाल खड़े होते हैं। संविधान का अनुच्छेद 14 (Article 14) सभी नागरिकों को समानता (Equality) की गारंटी देता है, जबकि अनुच्छेद 21 (Article 21) जीवन और आजीविका (Livelihood) के अधिकार की सुरक्षा करता है।
कमला नेटी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि संविधान लागू होने के 70 साल बाद भी जनजातीय महिलाओं को संपत्ति में अधिकार नहीं मिला है, जबकि गैर-जनजातीय हिंदू महिलाओं को 2005 के संशोधन (Amendment) के बाद समान अधिकार प्राप्त हो गए हैं। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि जब तक संसद (Parliament) इस अधिनियम में बदलाव नहीं करती, तब तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता।
विधायी सुधार की आवश्यकता (Need for Legislative Reform)
सुप्रीम कोर्ट ने कमला नेटी मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए यह सुझाव दिया कि इस विषय पर कानून में बदलाव की सख्त जरूरत है। अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से बाहर रखने का कारण यह दिया जाता है कि उनकी परंपराओं को बनाए रखना जरूरी है।
लेकिन वास्तविकता यह है कि कई जनजातीय परंपराएं महिलाओं को संपत्ति से वंचित (Deprived) करती हैं और उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर बना देती हैं।
मधु किश्वर मामले में अदालत ने सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार (Central Government) हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को अनुसूचित जनजातियों पर लागू करने के लिए एक अधिसूचना (Notification) जारी कर सकती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के कई बार आग्रह करने के बावजूद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अगर संसद इस कानून में संशोधन करती है, तो इससे अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को गैर-
कमला नेटी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता।
हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि यह स्थिति अनुचित है और इसे बदलने की जरूरत है। लेकिन चूंकि अदालत कानून नहीं बना सकती, इसलिए इस बदलाव के लिए विधायिका को ही पहल करनी होगी।
यह मामला उन गहरे सवालों को उठाता है, जो पारंपरिक कानूनों और संवैधानिक समानता (Constitutional Equality) के बीच संतुलन बनाने से जुड़े हैं।
इस असमानता को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 2(2) को संशोधित करना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, अनुसूचित जनजाति की महिलाएं संपत्ति के अधिकार से वंचित रहेंगी और यह ऐतिहासिक अन्याय (Historical Injustice) जारी रहेगा।