हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) न केवल एक वैध हिंदू विवाह (Valid Hindu Marriage) की शर्तों (Conditions) को निर्धारित करता है, बल्कि यह विवाह के अनुष्ठान (Rituals) और उसके पंजीकरण (Registration) से संबंधित प्रक्रियाओं (Procedures) को भी स्पष्ट करता है।
धारा 7 (Section 7) इस बात पर प्रकाश डालती है कि हिंदू विवाह कैसे संपन्न (Solemnized) किए जा सकते हैं, जबकि धारा 8 (Section 8) विवाह के पंजीकरण की प्रक्रिया और उसके महत्व का विवरण देती है, हालांकि यह इसकी वैधता (Validity) के लिए अनिवार्य (Compulsory) नहीं है।
7. हिंदू विवाह के समारोह (Ceremonies for a Hindu marriage)
(1) एक हिंदू विवाह को किसी भी पक्ष के प्रथागत अनुष्ठानों और समारोहों (Customary Rites and Ceremonies) के अनुसार solemnize किया जा सकता है। (A Hindu marriage may be solemnized in accordance with the customary rites and ceremonies of either party thereto.)
यह उप-धारा (Sub-section) हिंदू विवाहों के संपन्न होने में लचीलेपन (Flexibility) को दर्शाती है। यह स्वीकार करती है कि हिंदू धर्म के भीतर विवाह समारोहों (Marriage Ceremonies) की एक विशाल विविधता (Vast Diversity) है, जो क्षेत्र (Region), समुदाय (Community) और जाति (Caste) के अनुसार भिन्न होती है।
अधिनियम किसी एक विशिष्ट अनुष्ठान (Specific Ritual) को अनिवार्य नहीं करता है, बल्कि यह किसी भी पक्ष के प्रचलित और प्रथागत रीति-रिवाजों (Prevailing and Customary Practices) का पालन करने की अनुमति देता है। इसमें कन्यादान (Kanyadaan), सिंदूर लगाना (Applying Sindoor), मंगलसूत्र पहनना (Wearing Mangal Sutra), या अन्य स्थानीय अनुष्ठान शामिल हो सकते हैं।
उदाहरण: दक्षिण भारत में कुछ विवाहों में वर-वधू को एक दूसरे के ऊपर जीरा और गुड़ रखने की प्रथा होती है, जबकि उत्तर भारत में अग्नि के चारों ओर फेरे (Circumambulating the Fire) अधिक प्रमुख होते हैं। अधिनियम इन सभी विविधताओं को स्वीकार करता है।
महत्वपूर्ण केस लॉ (Landmark Case Law): भुराओ शंकर लोकहंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य (Bhaurao Shankar Lokhande v. State of Maharashtra), 1965: सुप्रीम कोर्ट ने इस ऐतिहासिक निर्णय (Historic Verdict) में इस बात पर जोर दिया कि एक वैध हिंदू विवाह के लिए, आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों (Essential Religious Rites) का पालन करना अनिवार्य है।
यदि विवाह किसी रीति-रिवाज के अनुसार संपन्न होता है, तो उस रीति-रिवाज के आवश्यक अनुष्ठानों को पूरा किया जाना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि केवल यह विश्वास कर लेना कि विवाह हो गया है, या केवल सामाजिक स्वीकृति से विवाह वैध नहीं हो जाता; बल्कि, यह दिखाना होगा कि प्रथागत आवश्यक संस्कार (Customary Essential Sacraments) वास्तव में किए गए थे।
(2) जहाँ ऐसे अनुष्ठानों और समारोहों में सप्तपदी (Saptapadi) (अर्थात्, पवित्र अग्नि के सामने दूल्हे और दुल्हन द्वारा संयुक्त रूप से सात फेरे लेना) शामिल है, विवाह सातवां फेरा लेने पर पूर्ण (Complete) और बाध्यकारी (Binding) हो जाता है। (Where such rites and ceremonies include the Saptapadi (that is, the taking of seven steps by the bridegroom and the bride jointly before the sacred fire), the marriage becomes complete and binding when the seventh step is taken.)
यह उप-धारा विशेष रूप से सप्तपदी (Saptapadi) के महत्व पर प्रकाश डालती है। यदि सप्तपदी विवाह समारोह का हिस्सा है (और यह अधिकांश हिंदू विवाहों में होता है), तो विवाह को कानूनी रूप से पूर्ण और बाध्यकारी तभी माना जाता है जब दूल्हा और दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि (Sacred Fire) के सामने सातवां फेरा (Seventh Step) लिया जाता है। यह वह महत्वपूर्ण क्षण (Crucial Moment) है जिस पर विवाह संपन्न माना जाता है।
उदाहरण: यदि किसी विवाह समारोह में सप्तपदी की रस्म हो रही है, लेकिन किसी कारणवश सात फेरे पूरे होने से पहले ही समारोह रुक जाता है, तो कानून की नजर में वह विवाह संपन्न नहीं माना जाएगा, भले ही अन्य रस्में पूरी हो गई हों।
8. हिंदू विवाहों का पंजीकरण (Registration of Hindu marriages)
(1) हिंदू विवाहों के प्रमाण (Proof) की सुविधा (Facilitating) के उद्देश्य से, राज्य सरकार (State Government) ऐसे नियम (Rules) बना सकती है जिनमें यह प्रावधान हो कि ऐसे किसी भी विवाह के पक्ष अपने विवाह से संबंधित विवरणों (Particulars) को निर्धारित तरीके (Prescribed Manner) और शर्तों (Conditions) के अधीन एक हिंदू विवाह रजिस्टर (Hindu Marriage Register) में दर्ज करा सकते हैं जो इस उद्देश्य के लिए रखा गया है। (For the purpose of facilitating the proof of Hindu marriages, the State Government may make rules providing that the parties to any such marriage may have the particulars relating to their marriage entered in such manner and subject to such conditions as may be prescribed in a Hindu Marriage Register kept for the purpose.)
यह उप-धारा बताती है कि राज्य सरकारें ऐच्छिक (Optional) पंजीकरण के लिए नियम बना सकती हैं। इसका प्राथमिक उद्देश्य विवाह का दस्तावेजी प्रमाण (Documentary Evidence) प्रदान करना है, जिससे भविष्य में पति-पत्नी (Spouses) या बच्चों (Children) को विरासत (Inheritance), नागरिकता (Citizenship), पासपोर्ट (Passport) या अन्य कानूनी उद्देश्यों (Legal Purposes) के लिए विवाह साबित करने में आसानी हो। यह पति-पत्नी के अधिकारों की रक्षा (Protection of Rights) के लिए एक महत्वपूर्ण सुविधा है।
उदाहरण: एक नवविवाहित जोड़ा अपने विवाह को हिंदू विवाह रजिस्टर में पंजीकृत कराना चाहता है ताकि उन्हें बाद में वीजा (Visa) आवेदन के लिए विवाह प्रमाण पत्र (Marriage Certificate) प्राप्त हो सके।
(2) उप-धारा (1) में किसी भी बात के होते हुए भी (Notwithstanding anything contained in sub-section (1)), यदि राज्य सरकार की राय (Opinion) में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन (Necessary or Expedient) है, तो वह यह प्रावधान कर सकती है कि उप-धारा (1) में संदर्भित विवरणों का दर्ज करना राज्य में या उसके किसी भी हिस्से में, चाहे सभी मामलों में या ऐसे मामलों में जैसा कि निर्दिष्ट (Specified) किया जाए, अनिवार्य (Compulsory) होगा, और जहाँ ऐसा कोई निर्देश (Direction) जारी किया गया है, वहाँ इस संबंध में बनाए गए किसी भी नियम का उल्लंघन (Contravening) करने वाला कोई भी व्यक्ति जुर्माने (Fine) से दंडनीय (Punishable) होगा जो पच्चीस रुपये तक बढ़ सकता है।
(Notwithstanding anything contained in sub-section (1), the State Government may, if it is of opinion that it is necessary or expedient so to do, provide that the entering of the particulars referred to in sub-section (1) shall be compulsory in the State or in any part thereof, whether in all cases or in such cases as may be specified, and where any such direction has been issued, any person contravening any rule made in this behalf shall be punishable with fine which may extend to twenty-five rupees.)
यह उप-धारा राज्य सरकारों को शक्ति (Power) देती है कि वे अपने विवेक (Discretion) पर विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बना सकें। यह सुनिश्चित करने के लिए है कि विवाहों का बेहतर रिकॉर्ड (Better Records) रखा जाए और धोखाधड़ी (Fraud) या शोषण (Exploitation) को रोका जा सके।
वर्तमान में, कई भारतीय राज्यों ने विवाह पंजीकरण को अनिवार्य कर दिया है, विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद। हालांकि, गैर-अनुपालन (Non-compliance) के लिए जुर्माने की राशि अपेक्षाकृत कम (Rs. 25) है, जो अधिनियम के समय की थी और अब नाममात्र की है।
उदाहरण: राजस्थान सरकार ने अधिसूचना (Notification) जारी करके राज्य में सभी हिंदू विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है। यदि कोई जोड़ा विवाह के बाद अपने विवाह को पंजीकृत नहीं कराता है, तो राज्य के नियमों के अनुसार उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है।
(3) इस धारा के तहत बनाए गए सभी नियम, जैसे ही वे बनाए जाते हैं, राज्य विधानमंडल (State Legislature) के समक्ष रखे जाएंगे। (All rules made under this section shall be laid before the State Legislature, as soon as may be, after they are made.)
यह उप-धारा विधायी निरीक्षण (Legislative Oversight) सुनिश्चित करती है। राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कोई भी नियम, जिन्हें लागू किया जाता है, उन्हें राज्य विधानमंडल के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिससे उन पर चर्चा और अनुमोदन (Discussion and Approval) की अनुमति मिल सके।
(4) हिंदू विवाह रजिस्टर (Hindu Marriage Register) सभी उचित समय (Reasonable Times) पर निरीक्षण (Inspection) के लिए खुला रहेगा, और उसमें निहित बयानों (Statements) के प्रमाण (Evidence) के रूप में स्वीकार्य (Admissible) होगा और आवेदन (Application) पर रजिस्ट्रार (Registrar) द्वारा निर्धारित शुल्क (Prescribed Fee) के भुगतान पर प्रमाणित उद्धरण (Certified Extracts) दिए जाएंगे। (The Hindu Marriage Register shall at all reasonable times be open for inspection, and shall be admissible as evidence of the statements therein contained and certified extracts therefrom shall, on application, be given by the Registrar on payment to him of the prescribed fee.)
यह उप-धारा पंजीकरण के साक्ष्य मूल्य (Evidentiary Value) पर जोर देती है। रजिस्टर में दर्ज की गई जानकारी को कानूनी रूप से वैध प्रमाण माना जाता है। इससे विवाह से संबंधित किसी भी विवाद (Disputes) को सुलझाने में मदद मिलती है, क्योंकि पंजीकृत रिकॉर्ड एक आधिकारिक संदर्भ (Official Reference) प्रदान करता है।
(5) इस धारा में किसी भी बात के होते हुए भी, किसी भी हिंदू विवाह की वैधता (Validity) किसी भी तरह से प्रविष्टि न करने से (Omission to make the entry) प्रभावित नहीं होगी। (Notwithstanding anything contained in this section, the validity of any Hindu marriage shall in no way be affected by the omission to make the entry.)
यह उप-धारा एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु (Extremely Important Point) है। यह स्पष्ट रूप से बताती है कि भले ही राज्य सरकार पंजीकरण को अनिवार्य कर दे, विवाह को पंजीकृत न करने से उस विवाह की कानूनी वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। एक विवाह वैध तभी होता है यदि उसने धारा 5 की शर्तों और धारा 7 के समारोहों को पूरा किया है। पंजीकरण केवल प्रमाण के उद्देश्य से है, न कि विवाह को वैध बनाने के लिए।
उदाहरण: मान लीजिए एक जोड़ा अपने सभी पारंपरिक विवाह अनुष्ठान पूरे करता है, जिसमें सप्तपदी भी शामिल है, लेकिन वे किसी कारणवश अपने विवाह को सरकारी रजिस्टर में दर्ज नहीं कराते हैं। उनका विवाह कानूनी रूप से तब भी वैध माना जाएगा, भले ही वे पंजीकरण न कराएं।
संबंधित महत्वपूर्ण मामले (Related Landmark Cases)
धारा 7 और 8 की व्याख्या से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय हैं जिन्होंने विवाह समारोहों और पंजीकरण के महत्व को स्पष्ट किया है:
1. सीमा बनाम अश्विनी कुमार (Seema v. Ashwani Kumar), 2006:
o मामला: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सभी धर्मों (All Religions) के विवाहों के अनिवार्य पंजीकरण (Compulsory Registration) का निर्देश दिया, जिसमें हिंदू विवाह भी शामिल हैं। न्यायालय ने यह निर्देश महिलाओं के शोषण (Exploitation of Women) को रोकने, धोखाधड़ी वाले विवाहों (Fraudulent Marriages) पर अंकुश लगाने और बच्चों के हितों (Interests of Children) की रक्षा के लिए दिया था। न्यायालय ने राज्यों को विवाह पंजीकरण के लिए नियम बनाने का निर्देश दिया।
o महत्व: हालांकि यह निर्णय धारा 8(5) के इस प्रावधान को नहीं बदलता कि गैर-पंजीकरण से विवाह की वैधता प्रभावित नहीं होती, यह सामाजिक और कानूनी उद्देश्यों के लिए पंजीकरण के सार्वजनिक नीतिगत महत्व (Public Policy Importance) को रेखांकित करता है। इसने भारत में विवाह पंजीकरण के प्रयासों को बहुत गति दी।
2. भुराओ शंकर लोकहंडे बनाम महाराष्ट्र राज्य (Bhaurao Shankar Lokhande v. State of Maharashtra), 1965 (धारा 7 के लिए प्रासंगिक):
o मामला: इस मामले में, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि विवाह समारोहों में सप्तपदी शामिल है, तो सातवें फेरे के बिना विवाह वैध नहीं होता है।
o महत्व: यह निर्णय विवाह को संपन्न करने के लिए वास्तविक अनुष्ठानों (Actual Rituals) के प्रदर्शन के महत्व पर जोर देता है और केवल "विवाह के इरादे" (Intention of Marriage) को पर्याप्त नहीं मानता है।