BNSS, 2023 के तहत पुलिस अधिकारियों द्वारा तलाशी और जब्ती: धारा 185 और 103 का सरल विश्लेषण
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने 1 जुलाई 2024 से आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया है। इस संहिता की धारा 185 और 103 पुलिस अधिकारियों द्वारा तलाशी और जब्ती (Search and Seizure) की प्रक्रिया से संबंधित हैं। ये धाराएँ स्पष्ट रूप से बताती हैं कि किन परिस्थितियों में पुलिस अधिकारी तलाशी कर सकते हैं और इसमें पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए कौन-कौन सी प्रक्रियाएँ अपनानी चाहिए। इस लेख में हम इन धाराओं को सरल भाषा में समझाएँगे ताकि कोई भी व्यक्ति इनका सही अर्थ समझ सके।
धारा 185: पुलिस अधिकारी को तलाशी करने का अधिकार
धारा 185 पुलिस अधिकारियों को जाँच (Investigation) के दौरान तलाशी करने की शक्ति देती है जब उन्हें यह विश्वास हो कि किसी अपराध से संबंधित महत्वपूर्ण वस्तु या सबूत किसी विशेष स्थान पर मौजूद हो सकते हैं। इस धारा में तलाशी के लिए शर्तें और प्रक्रिया दी गई है, जिन्हें पुलिस अधिकारी को पालन करना होता है।
अधिकारी का विश्वास और तलाशी का कारण
धारा 185(1) के अनुसार, यदि किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी (Officer in Charge) या किसी जाँच अधिकारी को यह विश्वास होता है कि किसी अपराध से संबंधित कोई महत्वपूर्ण वस्तु किसी स्थान पर मिल सकती है, तो वह तलाशी कर सकता है। लेकिन यह तलाशी तब ही की जा सकती है जब यह विश्वास हो कि बिना देरी के उस वस्तु को प्राप्त करना अन्यथा संभव नहीं है। अधिकारी को अपने विश्वास के कारणों को केस डायरी में लिखित रूप में दर्ज करना होगा और यह भी बताना होगा कि किस वस्तु की तलाशी की जा रही है।
उदाहरण के तौर पर, अगर एक पुलिस अधिकारी चोरी के मामले की जाँच कर रहा है और उसे यकीन है कि चोरी किए गए सामान एक घर में छिपाए गए हैं, जो उनके पुलिस स्टेशन की सीमा में आता है, तो वह अपनी केस डायरी में कारण दर्ज कर तलाशी कर सकता है।
तलाशी करने की प्रक्रिया
धारा 185(2) के तहत, अगर संभव हो तो पुलिस अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से तलाशी करनी चाहिए। इसका मतलब है कि प्रभारी अधिकारी को तलाशी के समय वहाँ मौजूद होना चाहिए। कानून पारदर्शिता की माँग करता है, इसलिए तलाशी को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिकॉर्ड किया जाना चाहिए, और यह रिकॉर्डिंग मोबाइल फोन के जरिए होनी चाहिए।
अगर अधिकारी व्यक्तिगत रूप से तलाशी नहीं कर सकता और उस समय वहाँ कोई और सक्षम व्यक्ति उपलब्ध नहीं है, तो धारा 185(3) के अनुसार अधिकारी तलाशी का कार्य अपने अधीनस्थ अधिकारी को सौंप सकता है। इसके लिए अधिकारी को लिखित रूप में कारण दर्ज करना होगा और अपने अधीनस्थ को उस स्थान और वस्तु के बारे में लिखित आदेश देना होगा, जहाँ तलाशी की जानी है। अधीनस्थ अधिकारी फिर उस स्थान पर जाकर तलाशी करेगा।
अन्य प्रावधानों का उपयोग
धारा 185(4) यह स्पष्ट करती है कि इस संहिता में तलाशी वारंट (Search Warrant) और सामान्य तलाशी संबंधी नियम, जैसे धारा 103 में दिए गए हैं, उन नियमों को धारा 185 के तहत की गई तलाशी पर भी लागू किया जाएगा। इससे सुनिश्चित होता है कि चाहे तलाशी वारंट के साथ हो या जाँच के दौरान, सभी तलाशी एक समान तरीके से की जाएँगी।
रिकॉर्ड भेजने की प्रक्रिया
धारा 185(5) में यह व्यवस्था की गई है कि उपधारा (1) या (3) के तहत बनाए गए किसी भी रिकॉर्ड की प्रतिलिपि नजदीकी मजिस्ट्रेट को 48 घंटे के भीतर भेजनी होगी। जिस स्थान पर तलाशी की गई है, उस स्थान के मालिक या निवासी को मजिस्ट्रेट से यह रिकॉर्ड निःशुल्क प्राप्त करने का अधिकार है।
धारा 103: तलाशी से संबंधित सामान्य प्रावधान
धारा 103 तलाशी की प्रक्रिया से संबंधित सामान्य नियम बताती है। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि तलाशी वैध और निष्पक्ष तरीके से की जाए।
तलाशी के लिए स्थान में प्रवेश
धारा 103(1) के अनुसार, अगर जिस स्थान पर तलाशी की जानी है, वह बंद है, तो उस स्थान के प्रभारी व्यक्ति को पुलिस अधिकारी को वारंट दिखाने पर प्रवेश की अनुमति देनी होगी। अगर अधिकारी को प्रवेश नहीं मिलता है, तो वह धारा 44(2) के तहत दरवाजा तोड़ने जैसी प्रक्रिया अपना सकता है।
उदाहरण के लिए, अगर पुलिस एक बंद गोदाम की तलाशी के लिए आती है, तो उस स्थान के प्रभारी व्यक्ति को दरवाजा खोलकर पुलिस को तलाशी की अनुमति देनी होगी। अगर प्रवेश संभव नहीं हो पाता, तो अधिकारी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन कर गोदाम का दरवाजा तोड़ सकता है।
व्यक्तियों की तलाशी
धारा 103(3) यह बताती है कि अगर पुलिस को किसी व्यक्ति के बारे में यह संदेह है कि उसने अपने शरीर पर कोई वस्तु छिपाई है, तो उस व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती है। अगर वह व्यक्ति महिला है, तो तलाशी दूसरी महिला द्वारा और पूरी मर्यादा के साथ की जानी चाहिए।
तलाशी के गवाह
तलाशी शुरू करने से पहले, धारा 103(4) के अनुसार, अधिकारी को क्षेत्र के दो या अधिक सम्माननीय निवासियों को बुलाना चाहिए ताकि वे तलाशी के गवाह बन सकें। अगर क्षेत्र में ऐसे लोग उपलब्ध नहीं हैं, तो अधिकारी दूसरे क्षेत्र से लोगों को बुला सकता है। तलाशी की प्रक्रिया इन्हीं गवाहों की उपस्थिति में की जाएगी, और सभी जब्त की गई वस्तुओं की सूची तैयार की जाएगी, जिसे गवाहों द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा।
धारा 103(5) के तहत तलाशी के समय जिस स्थान की तलाशी की जा रही है, वहाँ का मालिक या उसका प्रतिनिधि तलाशी के दौरान उपस्थित रह सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान बनाई गई सूची की एक प्रति उस व्यक्ति को भी दी जाएगी।
गवाहों की जिम्मेदारी
धारा 103(8) यह प्रावधान करती है कि अगर कोई व्यक्ति उचित कारण के बिना तलाशी के गवाह बनने से इनकार करता है, तो उसे भारतीय न्याय संहिता (Bhartiya Nyaya Sanhita) की धारा 222 के तहत दंडित किया जा सकता है। इस प्रावधान से यह सुनिश्चित किया जाता है कि गवाह आसानी से अपनी जिम्मेदारी से बच न सकें।
उदाहरण से स्पष्टता
मान लीजिए पुलिस अवैध हथियारों की तस्करी के एक मामले की जाँच कर रही है। अधिकारी को यह विश्वास है कि अवैध हथियार एक घर में छिपाए गए हैं, जो उनके पुलिस स्टेशन की सीमा में आता है। अधिकारी केस डायरी में अपनी धारणा के कारण दर्ज करता है और यह भी लिखता है कि वह अवैध हथियारों की तलाशी कर रहा है। फिर अधिकारी दो सम्माननीय गवाहों को लेकर उस घर पर तलाशी के लिए पहुँचता है।
अधिकारी तलाशी वारंट दिखाता है, और घर का प्रभारी व्यक्ति उन्हें अंदर जाने देता है। तलाशी के दौरान अधिकारी को एक अलमारी में छिपाए गए अवैध हथियार मिलते हैं। पूरी प्रक्रिया मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड की जाती है, और जब्त की गई वस्तुओं की एक सूची तैयार की जाती है, जिसे गवाहों द्वारा हस्ताक्षरित किया जाता है। इस सूची की एक प्रति घर के मालिक को दी जाती है, और 48 घंटे के भीतर अधिकारी यह रिकॉर्ड नजदीकी मजिस्ट्रेट को सौंप देता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 185 और 103 तलाशी और जब्ती की प्रक्रिया से संबंधित महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं। ये धाराएँ सुनिश्चित करती हैं कि तलाशी पारदर्शिता और सही प्रक्रियाओं के साथ की जाए, जिसमें उचित दस्तावेजीकरण और गवाहों की उपस्थिति शामिल है ताकि शक्ति का दुरुपयोग न हो। तलाशी की प्रक्रिया को ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से दस्तावेजित करने और स्वतंत्र गवाहों को शामिल करने की शर्तें यह सुनिश्चित करती हैं कि जाँच प्रक्रिया निष्पक्ष हो और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो सके।