Constitution में लोकसभा के प्रावधान

Update: 2024-12-16 03:10 GMT
Lok Sabha

Lok Sabha

भारत के संसद का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण अंग भारत की लोकसभा है।लोकसभा को जनता की सभा में कहा जाता है क्योंकि लोकसभा में जनता द्वारा आम चुनाव में चुने गए प्रतिनिधि होते हैं। इसके सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 है जिनमें से 530 सदस्य को राज्यों के मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव से निर्वाचित किया जाता है, 20 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं I

इसके अलावा राष्ट्रपति की राय में लोकसभा में एंग्लो इंडियन समाज में समाज को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है तो आर्टिकल 331 के अधीन एंग्लो इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को नामजद कर सकता है। राज्यों के प्रतिनिधियों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष मतदान द्वारा होता है अर्थात भारत के प्रत्येक नागरिक को 18 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद मतदान करने का अधिकार होता है।

भारत की लोकसभा सीटों का निर्धारण 20 जनवरी 1976 में किया गया जिसके अनुसार आंध्र प्रदेश राज्य के लिए 42 सीट है, असम राज्य के लिए 14, बिहार राज्य के लिए 54, गुजरात राज्य के लिए 26, हरियाणा राज्य के लिए 10, हिमाचल प्रदेश राज्य के लिए 4, जम्मू कश्मीर के लिए 6, कर्नाटक राज्य के लिए 28, केरल राज्य के लिए 20, मध्य प्रदेश राज्य के लिए 40, महाराष्ट्र राज्य के लिए 48, मणिपुर राज्य के लिए 2, मेघालय राज्य के लिए 2, नागालैंड राज्य के लिए 1, उड़ीसा राज्य के लिए 21, पंजाब राज्य 13, राजस्थान 25, तमिलनाडु 40, त्रिपुरा 2, उत्तर प्रदेश 85, पश्चिम बंगाल 49, अरुणाचल प्रदेश 2, मिजोरम 1, गोवा 1।

लोकसभा के सदस्यों के चुनाव के प्रयोजन के लिए प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक राज्य प्रदेशिक निर्वाचन क्षेत्र को विभाजित किया जाता है जो कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या तथा उसके लिए नियत किए गए सदस्यों की संख्या का अनुपात समस्त राज्य में एक हो। प्रत्येक राज्य के लिए लोकसभा के स्थानों की संख्या की बात ऐसी लिखी से की जाएगी कि उस संख्या के राज्य की जनसंख्या का अनुपात समस्त राज्यों के लिए एक ही हो।

इस प्रकार संविधान लोकसभा के निर्वाचन में प्रतिनिधित्व की एकरूपता दो प्रकार से स्थापित करने का उपबंध करता है। विभिन्न राज्यों से और एक राज्य के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोकसभा में राज्यों के स्थानों का आवंटन में प्रत्येक राज्य का प्रदेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन समायोजित किया जाएगा। जैसा कि संसद विधि द्वारा निर्धारित करें किंतु ऐसे समायोजन का वर्तमान लोकसभा में प्रतिनिधित्व कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

लोकसभा यदि पहले से ही विघटित न कर दी जाए तो अपने प्रथम अधिवेशन की तारीख से 5 वर्ष तक चालू रहेगी। राष्ट्रपति के पहले भी उसे विघटन कर सकता है परंतु उक्त अवधि को जब आप आपात घोषणा प्रबंधन में है। संसद विधि द्वारा 1 वर्ष के लिए बढ़ा सकती है इस प्रकार बढ़ाई गई है उन्हीं की इसी अवधि में आपात उद्घोषणा के समाप्त हो जाने के पश्चात 6 महीने से अधिक न होगी।

कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया का आर्टिकल 84 संसद के सदस्यों के लिए किसी व्यक्ति को अर्हता देता है जिन का होना आवश्यक है। जैसे ऐसे सदस्य हैं भारत के नागरिक होना चाहिए, राज्यसभा के सदस्य के लिए कम से कम 35 वर्ष वर्ष की आयु का तथा लोकसभा के सदस्य के लिए कम से कम 25 वर्ष की आयु का होना आवश्यक है। निर्वाचन आयोग द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तृतीय अनुसूची में प्रयोजन के लिए दिए हुए प्रपत्र के अनुसार शपथ ले लिया हो।

ऐसी अन्य योग्यताएं रखता हो जो इस संबंध में संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के द्वारा विहित की जाए। उदाहरण के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार व्यक्ति का नाम किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से मतदाता के रूप में पंजीकृत होना चाहिए।

कोई भी ऐसा व्यक्ति जो स्वास्थ्य चित्त नहीं है और दिवालिया है या भारत का नागरिक नहीं है यह विदेशी राज्य की नागरिकता स्वच्छता से अर्जित कर चुका है वह संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा लोकसभा का सदस्य होने से निर्योग्य घोषित कर दिया जाएगा।

जया बच्चन बनाम भारत संघ एआईआर 2006 सुप्रीम कोर्ट 2119 के मामले में समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य जया बच्चन को राज्यसभा सदस्यता से इस आधार पर निरयोग्य घोषित कर दिया कि वह उत्तर प्रदेश फिल्म निगम की अध्यक्ष के रूप में लाभ का पद धारण करती थी। उनके विरुद्ध कांग्रेस पार्टी के एक सदस्य ने राष्ट्रपति को इसके लिए आवेदन दिया था। राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग के विचार में भेज दिया था। चुनाव आयोग ने इस आरोप को सख्त पाया और राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेज दी।

राष्ट्रपति ने आयोग की सिफारिश पर उन्हें संसद की सदस्यता के निरयोग्य घोषित कर दिया। जया बच्चन ने इस विनिश्चय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील फाइल की। उनका तर्क था कि अगर सरकार ने उन्हें उपर्युक्त पद पर मिलने वाली सभी सुविधाएं प्रदान नहीं की थी किंतु उन्होंने इसका उपयोग नहीं किया था किंतु सुप्रीम कोर्ट ने उनके तर्क को अस्वीकार कर दिया और यह अभिनिर्धारित किया कि उनका पद लाभ का पद था कि वह पद स्थाई था और उसको धारण करने वाला उससे युक्तियुक्त रूप से कुछ लाभ पा सकता था। वास्तविक लाभ पाना आवश्यक नहीं इसके पश्चात मामला और आगे बढ़ा और अनेक सांसदों ने विरोध इस प्रकार के आवेदन उनको निर्योग्य करने के लिए राष्ट्रपति को दिए।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संसद की सदस्यता के लिए कुछ और अर्हता दी गई हैं, जो इस प्रकार है जैसे किसी चुनाव में भ्रष्टाचार किसी अपराध में दोषसिद्धि के फलस्वरूप दो या दो से अधिक वर्षों का कारावास के दंड हो गया हो, चुनाव के खर्चे का हिसाब पेश करने में विफलता, माल की आपूर्ति की संविदा में हित या अन्य सरकार के प्रति किसी कार्य का संपादन या सेवा किसी निगम में जिसमें सरकार 25% से अंश रखती हो लाभ का पद धारण करना, भ्रष्टाचार या सरकार के प्रति वफादारी के आधार पर सरकारी सेवा से बर्खास्तगी के कारण।

कोई भी व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता है, यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य निर्वाचित हो जाता है तो संसद विधि द्वारा यह बंधित करेगी तो उसका किस सदन का स्थान खाली किया जाएगा। इसी प्रकार कोई भी व्यक्ति संसद तथा किसी राज्य के विधान मंडल दोनों का एक साथ सदस्य नहीं हो सकता, यदि ऐसा व्यक्ति दोनों का सदस्य निर्वाचित हो जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति पर जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियम लिखित को संसद में उसका स्थान खाली हो जाएगा।

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