सुप्रीम कोर्ट के निर्णय State of Gujarat v. Dr. P.A. Bhatt (2023) में यह अहम मुद्दा उठाया गया कि क्या Indian Systems of Medicine (जैसे Ayurveda) के डॉक्टर, MBBS (Allopathy) डॉक्टरों के समान वेतन (Equal Pay) के हकदार हैं? यह मामला Service Law और संविधान के Equality सिद्धांत (Equality under Constitution) के बीच के संबंध को उजागर करता है, खासकर Article 14 और Article 16 के संदर्भ में।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि क्या केवल पदनाम "Medical Officer" होने के कारण दोनों को समान वेतन मिलना चाहिए या उनके शैक्षणिक योग्यता (Educational Qualification) और प्रशिक्षण (Training) के आधार पर वेतन भिन्नता (Pay Differentiation) न्यायोचित है।
समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धांत (Equal Pay for Equal Work: Not an Absolute Principle)
Article 14 (समानता का अधिकार - Right to Equality) और Article 16 (सार्वजनिक सेवा में अवसर की समानता - Equality of Opportunity in Public Employment) भारतीय संविधान की मूल आत्मा हैं।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि Equal Pay for Equal Work एक Absolute या पूर्णतः लागू होने वाला सिद्धांत नहीं है। इसका अर्थ यह नहीं है कि हर वह व्यक्ति जो समान कार्य करता है, उसे बिल्कुल समान वेतन ही मिलना चाहिए, जब तक कि उनके बीच कोई Valid Classification (वैध वर्गीकरण) न हो।
कोर्ट ने यह माना कि MBBS और BAMS डिग्रीधारी डॉक्टरों के बीच न केवल शैक्षणिक योग्यता (Educational Background) बल्कि Clinical Training, Diagnosis की क्षमता और रोगों के Treatment के तरीके में भी काफी अंतर होता है। इसलिए सिर्फ पदनाम एक जैसा होने से काम भी समान मान लेना गलत होगा। इस आधार पर समान वेतन की मांग संविधान के सिद्धांतों के विरुद्ध होगी।
शैक्षणिक योग्यता पर आधारित वर्गीकरण वैध है (Classification Based on Educational Qualification is Valid)
कोर्ट ने अपने पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई वर्गीकरण (Classification) शैक्षणिक योग्यता या विशेषज्ञता (Specialization) के आधार पर किया जाता है, तो वह Article 14 और 16 का उल्लंघन नहीं करता।
उदाहरण के लिए Union of India v. Parameswaran Match Works और State of Madhya Pradesh v. G.C. Mandawar जैसे मामलों में यह माना गया था कि यदि कोई विभाजन तार्किक (Rational) और उद्देश्यपूर्ण हो, तो वह न्यायोचित होता है।
इस केस में भी कोर्ट ने कहा कि BAMS और MBBS डॉक्टरों की शैक्षणिक और तकनीकी योग्यता में स्पष्ट अंतर है। इसके अलावा State of Punjab v. Jagjit Singh (2017) केस में भी कोर्ट ने कहा था कि Equal Pay का सिद्धांत सावधानी से लागू किया जाना चाहिए, खासकर तब जब कर्मचारी समान जिम्मेदारियां (Responsibilities), समान योग्यता (Qualification) और समान कार्य स्थितियों (Work Conditions) में कार्य करते हों।
Tikku Committee की सिफारिशों का महत्व (Relevance of the Tikku Committee Recommendations)
यह मामला Tikku Pay Commission की सिफारिशों (Recommendations) की व्याख्या से भी जुड़ा था। दरअसल, दो अलग-अलग Tikku Committee थीं—एक MBBS डॉक्टरों के लिए और दूसरी Indian Medicine Practitioners के लिए। दोनों की सिफारिशें अपने-अपने क्षेत्र और आवश्यकताओं के अनुसार थीं।
गुजरात हाईकोर्ट ने दोनों को एक ही स्तर पर रखते हुए वेतन में समानता देने की बात की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार यदि एक वर्ग (MBBS) के लिए सिफारिशें लागू करती है, तो वह बाध्य नहीं है कि उसी रूप में दूसरे वर्ग (BAMS) के लिए भी लागू करे, क्योंकि दोनों की Nature of Work अलग है।
सेवा शर्तें और कार्य की प्रकृति में सामंजस्य (Service Conditions Must Align with Nature of Work)
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन, पदोन्नति (Promotion) और सेवा शर्तें (Service Conditions) उनके काम की प्रकृति (Nature of Work), प्रशिक्षण (Training), और आवश्यकताओं के अनुसार तय की जाती हैं।
T. R. Kothandaraman v. Tamil Nadu Water Supply and Drainage Board केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भिन्न शैक्षणिक योग्यता (Different Educational Qualification) और भिन्न जिम्मेदारियों (Different Responsibilities) वाले कर्मचारियों को अलग वेतनमान देना संविधान का उल्लंघन नहीं है।
इसलिए यदि सरकार उच्च योग्यता (Higher Qualification) वाले Professionals को आकर्षित (Attract) करने के लिए बेहतर वेतन (Better Pay) देती है, तो वह नीति संविधान के खिलाफ नहीं है।
एक ही Cadre में सम्मिलन से समान वेतन का अधिकार नहीं बनता (No Automatic Parity Based on Absorption into Same Cadre)
एक मुख्य दलील यह थी कि चूंकि BAMS और MBBS दोनों को एक ही पद “Medical Officer” में सम्मिलित किया गया है, इसलिए उन्हें समान वेतन मिलना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि केवल एक जैसे पदनाम या Cadre में होना समान वेतन का आधार नहीं हो सकता, जब तक कि उनके बीच कार्य, योग्यता और जिम्मेदारी समान न हो।
MBBS और BAMS डॉक्टरों के बीच का अंतर एक तार्किक वर्गीकरण (Intelligible Differentia) है, और यदि सरकार इस वर्गीकरण के आधार पर वेतन में अंतर करती है, तो वह संविधान के तहत मान्य है।
Contempt Petition और प्रशासनिक स्पष्टीकरण (Contempt Petitions and Administrative Clarifications)
इस केस में Gujarat Government द्वारा Tikku Committee की सिफारिशें लागू करने के बाद दिए गए स्पष्टीकरणों और आदेशों को लेकर कुछ Contempt Petitions भी दायर हुई थीं। लेकिन कोर्ट ने कहा कि जब सिफारिशें स्पष्ट रूप से केवल MBBS डॉक्टरों के लिए थीं और राज्य का उद्देश्य भी Allopathy Doctors को प्रोत्साहित करना था, तब उस फैसले पर कोई असंवैधानिकता (Unconstitutionality) नहीं है।
State of Gujarat v. Dr. P.A. Bhatt में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह दर्शाता है कि संविधान के तहत समानता (Equality) का अर्थ समान व्यवहार (Same Treatment) नहीं बल्कि न्यायसंगत व्यवहार (Fair Treatment) है। समान वेतन की अवधारणा महत्वपूर्ण जरूर है, लेकिन उसे अंधाधुंध लागू नहीं किया जा सकता। कार्य की प्रकृति, शैक्षणिक योग्यता, और जिम्मेदारी के आधार पर वेतन में भिन्नता न्यायोचित हो सकती है।
इस फैसले से यह संदेश जाता है कि सार्वजनिक सेवा (Public Employment) में वेतन संरचना (Pay Structure) केवल समान पदनाम पर आधारित नहीं हो सकती, बल्कि यह विशेषज्ञता (Expertise) और कार्य दायरे (Scope of Work) को भी ध्यान में रखती है। यह निर्णय न केवल स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी समानता और न्याय के बीच संतुलन का मार्गदर्शन करता है।