गवाहों पर सवाल और उनकी साख को चुनौती देने के प्रावधान: BSA 2023 की धारा 157 और 158 का विश्लेषण

Update: 2024-09-07 12:54 GMT

परिचय भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023, जो 1 जुलाई 2024 से प्रभाव में आया है, गवाहों की साख और उनके द्वारा दिए गए साक्ष्यों को चुनौती देने से जुड़े कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को शामिल करता है। इस लेख में हम धारा 157 और 158 के तहत गवाहों से पूछे जाने वाले प्रश्नों और उनकी साख (Credit) को चुनौती देने के प्रावधानों का सरल भाषा में विश्लेषण करेंगे। इसके साथ ही, परीक्षा (Examination) और प्रतिपरीक्षा (Cross-examination) की प्रक्रिया को भी संक्षेप में समझेंगे, ताकि पाठकों को व्यापक संदर्भ मिल सके।

धारा 157: पक्ष द्वारा अपने गवाह से पूछे गए प्रश्न धारा 157 के तहत, न्यायालय को यह अधिकार है कि वह अपने विवेक से गवाह को बुलाने वाले पक्ष को ऐसे प्रश्न पूछने की अनुमति दे सकता है, जो सामान्यतः प्रतिपक्ष द्वारा प्रतिपरीक्षा के दौरान पूछे जाते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि यदि गवाह विरोधी (Hostile) हो जाता है या उसका बयान पक्ष के हित में नहीं होता है, तो उस पक्ष को भी अपने ही गवाह से प्रतिपरीक्षा जैसे सवाल पूछने का अवसर मिले।

• प्रावधान का उद्देश्य: इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी पक्ष को उसके गवाह द्वारा दिए गए बयान के आधार पर नुकसान न हो और उसे गवाह के बयान की सत्यता को जांचने का अवसर मिले।

• उदाहरण: मान लीजिए, एक गवाह A, जो किसी पक्ष द्वारा बुलाया गया है, मुकदमे के दौरान उस पक्ष के विरुद्ध बयान देता है। न्यायालय उस पक्ष को यह अनुमति दे सकता है कि वह अपने ही गवाह से ऐसे सवाल पूछ सके, जैसे कि वह प्रतिपक्ष द्वारा प्रतिपरीक्षा में पूछे जाते हैं।

धारा 158: गवाह की साख को चुनौती देना धारा 158 के तहत, किसी गवाह की साख को चुनौती देने के प्रावधान दिए गए हैं। इस धारा के तहत, प्रतिपक्ष या न्यायालय की अनुमति से वह पक्ष जिसने गवाह को बुलाया है, गवाह की साख को चुनौती दे सकता है।

गवाह की साख को चुनौती देने के तीन मुख्य तरीके हैं:

1. गवाह के बारे में यह साबित करना कि वह विश्वसनीय (Unworthy of Credit) नहीं है।

2. यह साबित करना कि गवाह ने रिश्वत ली है या किसी अन्य तरीके से भ्रष्टाचार किया है।

3. यह दिखाना कि गवाह के पहले के बयान उसके मौजूदा बयान से मेल नहीं खाते।

• स्पष्टीकरण: जब एक गवाह किसी अन्य गवाह को अविश्वसनीय बताता है, तो उसे मुख्य-परीक्षा (Examination-in-chief) में इसका कारण बताने की अनुमति नहीं होती। हालांकि, प्रतिपरीक्षा में उससे उसके कारण पूछे जा सकते हैं, लेकिन उसके उत्तरों का खंडन (Contradiction) नहीं किया जा सकता, भले ही वे उत्तर झूठे हों।

उदाहरण:

• एक मुकदमे में A, B के खिलाफ सामान की कीमत के लिए दावा करता है। C कहता है कि उसने B को सामान दिया था। यह दिखाने के लिए सबूत पेश किए जाते हैं कि C ने पहले कहा था कि उसने B को सामान नहीं दिया था। यह सबूत स्वीकार्य है।

• A पर B की हत्या का आरोप है। C कहता है कि B ने मरने से पहले कहा था कि A ने उसे वह घाव दिया था, जिससे वह मरा। यह दिखाने के लिए सबूत पेश किए जाते हैं कि C ने पहले कहा था कि B ने मरते समय ऐसा कुछ नहीं कहा था। यह सबूत स्वीकार्य है।

परीक्षा और प्रतिपरीक्षा (Examination and Cross-examination) मूल रूप से, परीक्षा और प्रतिपरीक्षा वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा गवाह के बयानों की सत्यता को जांचा जाता है। मुख्य परीक्षा में, गवाह अपने पक्ष के वकील के सवालों का उत्तर देता है। इसके बाद प्रतिपक्ष द्वारा प्रतिपरीक्षा की जाती है, जिसमें गवाह के दिए गए बयानों की वैधता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाते हैं।

संदर्भ: परीक्षा और प्रतिपरीक्षा की प्रक्रियाओं को विस्तार से समझने के लिए आप Live Law Hindi के पिछले पोस्टों को देख सकते हैं।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के तहत गवाहों की साख और उनके बयानों की जांच के लिए धारा 157 और 158 महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। इन प्रावधानों के तहत, गवाह की विश्वसनीयता को चुनौती देने और उसकी साख पर सवाल उठाने के स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि न्यायालय में साक्ष्य पेश करने की प्रक्रिया निष्पक्ष और न्यायसंगत हो।

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