निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 5 : चेक क्या होता है

Update: 2021-09-08 03:30 GMT

परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act, 1881) जिन तीन प्रमुख इंस्ट्रूमेंट्स का उल्लेख करता है उनमे चेक सबसे महत्वपूर्ण इंस्ट्रूमेंट्स है। इस अधिनियम जो नए संशोधन किए गए हैं वह भी चेक के नियमन से ही संबंधित है।

इस आलेख के अंतर्गत चेक की परिभाषा और उसका परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है और उससे संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

इंग्लिश लॉ के अनुसार परिभाषा - विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 (आंग्ल) की धारा 73 में चेक को कुछ इन शब्दों में परिभाषित किया है:-

"एक चेक विनिमय पत्र है जो किसी बैंकर पर लिखा जाता है और माँग पर देय होता है।"

चेक की इस परिभाषा के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि चेक, विनिमय पत्र का संकीर्ण वर्ग है, चेक की विस्तृत परिभाषा दोनों परिभाषाओं अर्थात् विनिमय पत्र एवं चेक के समामेलन से प्राप्त किया जा सकता है।

सभी चेक विनिमय पत्र होते हैं, लेकिन सभी विनिमय पत्र चेक नहीं होते-

चेक की परिभाषा से यह स्पष्ट है कि एक चैक विनिमय पत्र की ही जाति है परिभाषा के अनुसार एक विनिमय पत्र जो अर्थात् चेक का ऊपरवाल सदैव एक बैंक होता है।

(क) किसी विनिर्दिष्ट बैंकर पर लिखा गया होता है होता है, और

(ख) यह सदैव माँग पर देय होता है, चेक है।

इस प्रकार कोई भी विनिमय पत्र जो उक्त दोनों शर्तों को पूरा करता है, चेक होगा। इसलिए यह कहा गया है कि सभी चेक विनिमयपत्र होते हैं, पर सभी विनिमय पत्र चेक नहीं होते। वे बिल जो उक्त दो शर्तों को पूरा करते हैं, चेक होते हैं।

एक डिमाण्ड ड्राफ्ट जो किसी बैंक की एक शाखा से दूसरी शाखा पर लिखा गया ड्राफ्ट, डिमाण्ड ड्राफ्ट होता है, जो चेक नहीं होता है। पर ऐसा बैंक ड्राफ्ट धारा 131-क के प्रभाव से केवल चेकों के रेखांकन के प्रयोजन से बैंक ड्राफ्ट/डिमाण्ड ड्राफ्ट को चेक के रूप में मान्य बनाया गया है।

चेक के आवश्यक लक्षण- चूँकि चेक एक विनिमय पत्र होता है, अतः चेक की विशेषताओं को धारा 5 एवं 6 के संयुक्त अध्ययन से स्पष्ट किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में धारा 6 को धारा 5 के साथ अध्ययन किया जाना चाहिए।

धारा 5-

(1) इसे लेखबद्ध होना चाहिए।

(2) भुगतान करने का आदेश।

(3) अशर्त भुगतान का आदेश।

(4) केवल मुद्रा।

(5) पक्षकारों का निश्चित होना।

(6) चेक को लेखीवाल द्वारा हस्ताक्षरित होना।

धारा 6-

(7) किसी बैंकर का लेखीवाल होना।

(8) माँग पर सदैव देय होना।

चेक के पक्षकार विनिमय पत्र के समान चेक के तीन पक्षकार है :-

(i) लेखीवाल जो चेक लिखता है।

(ii) ऊपरवाल (बैंक) जिसे भुगतान करने का आदेश दिया जाता है। चेक का ऊपरवाल सदैव कोई बैंक होता है। यही चेक और विनिमय पत्र में मूलतः अन्तर होता है, जबकि विनिमय पत्र का ऊपरवाल कोई भी व्यक्ति, बैंक को सम्मिलित करते हुए हो सकता है।

(ii) पाने वाला (आदाता) जिसे चेक के अन्दर भुगतान प्राप्त होता है।

चेक एवं विनिमय पत्र में अन्तर-

प्रकृतित: चेक एवं विनिमय पत्र समान होते हैं, क्योंकि एक चैक विनिमय पत्र होता है, यद्यपि कि इन दोनों में मौलिक अन्तर होता है जिसे निम्नलिखित शीर्षकों में स्पष्ट किया जा सकता है:-

(1) ऊपरवाल के सम्बन्ध में एक चेक सदैव किसी बैंक पर लिखा जाता है, जबकि एक विनिमय पत्र बैंक को सम्मिलित करते हुए किसी भी व्यक्ति पर लिखा जा सकता है।

(2) माँग पर देय- एक चेक सदैव माँग पर देय होता है, जबकि एक विनिमयपत्र माँग एवं इसके अन्यथा अर्थात् एक निश्चित अवधि के पश्चात् भी देय बनाया जा सकता है।

(3) वाहक की माँग पर एक चेक वाहक की माँग पर देय जारी किया जा सकता है, जबकि एक विनिमय पत्र वाहक को माँग पर देय नहीं बनाया जा सकता है। वाहक को माँग पर देय विनिमयपत्र रिजर्व बैंक एवं सरकार द्वारा जारी किया जा सकेगा।

(4) प्रतिग्रहण - विनिमय पत्र में संदाय के पूर्व प्रतिग्रहण अपेक्षित होता है, जबकि चेक पर भुगतान के पूर्व बैंक की स्वीकृति अपेक्षित नहीं होती है।

(5) निधि पर लिखा जाना- एक चेक सदैव ग्राहक (लेखीवाल) के खाते में उपलब्ध निधि पर लिखा जाता है, परन्तु एक विनिमय पत्र में ऐसी निधि आवश्यक नहीं होती है।

(6) परिपक्वता - एक चेक लिखने की तिथि से ही भुगतान के लिए परिपक्व हो जाता है, जबकि विनिमय पत्र एवं वचनपत्र परिपक्वता नियम से ही भुगतान के लिये परिपक्व होते है।

(7) अनुग्रह दिवस- एक विनिमय पत्र पर ऊपरवाल को प्रतिग्रहण के लिए 3 दिन का समय देना अपेक्षित है, जबकि चेक में ऐसा नहीं है।

(8) रेखांकन- चेक का रेखांकन होता है, परन्तु बैंक ड्राफ्ट को छोड़कर विनिमय पत्र के रेखांकन का प्रावधान नहीं है।

( 9 ) स्टैम्पिंग – विनिमय पत्र का स्टाम्पित होना आवश्यक है, जबकि बैंक का नहीं।

(10) टिप्पण एवं प्रसाक्ष्य- चेकों का टिप्पण एवं प्रसाक्ष्य नहीं होता, जबकि विनिमय पत्र का अनादर के पश्चात् इसका टिप्पण एवं प्रसाक्ष्य किया जाना चाहिए।

(11) संदाय का प्रत्यादिष्ट करना- एक चेक को जारी करने के पश्चात् उसके संदाय को प्रत्यादिष्ट (रोका) किया जा सकेगा, जबकि विनिमय पत्र का प्रतिग्रहण के पश्चात् संदाय को प्रत्यादिष्ट नहीं किया जा सकेगा।

(12) वाहक को माँग पर देय बनाना- एक चेक वाहक को माँग पर देय बनाया जा सकता है, परन्तु विनिमय पत्र को वाहक की माँग पर देय नहीं बनाया जा सकता है।

(13) सांविधिक संरक्षण-घेक की दशा में इसके भुगतान एवं वसूली के सम्बन्ध में बैंकों को संरक्षण दिया गया है, जबकि ऐसा संरक्षण विनिमय पत्र की दशा में नहीं है।

(14) संवर्गों में जारी करना - विनिमय पत्र संवर्गों में (sets) में जारी किया जा सकता है, परन्तु चेक नहीं।

(15) टंकित प्रारूप-चेक सदैव टंकित प्रारूप में होता है, जबकि विनिमय पत्र का टंकित होना आवश्यक नहीं है। यह हस्तलिखित भी हो सकता है।

(16) संविदात्मक सम्बन्ध- चेक की दशा में बैंक एवं आदाता के बीच संविदात्मक सम्बन्ध नहीं होता है, परन्तु आदाता एवं ऊपरवाल के बीच संविदात्मक सम्बन्ध होता है।

(17) दाण्डिक अपराध- चेक का अनादर दाण्डिक अपराध होता है (धारा 138) पर विनिमय पत्र का अनादर दाण्डिक अपराध नहीं होता है।

(18) लेखीवाल की मृत्यु-चेक के लेखक की मृत्यु या विकृत मस्तिष्क होने पर बैंक चेक के भुगतान को रोक देगा। जबकि विनिमय पत्र की दशा में लेखक के उत्तराधिकारी भुगतान के लिए आबद्ध होते हैं।

(19) संक्षेपित चेक चेक की दशा में संक्षेपित या कम्प्यूटराइज्ड चेक का प्रावधान है, परन्तु विनिमय पत्र में ऐसा नहीं है।

(20) डिजिटल हस्ताक्षर-चेक की दशा में डिजिटल हस्ताक्षर होता है, जबकि विनिमय पत्र में नहीं।

(21) वैधता अवधि-एक चेक जारी करने की तिथि से 3 माह तक विधिमान्य होता है। जबकि विनिमय पत्र में ऐसी कोई विधिमान्यता की अवधि नहीं होती है।

( 22 ) निरन्तर उपस्थापना चेक को भुगतान के लिए उसके अनादर के पश्चात् निरंतर उपस्थापित किया जा सकता है। जबकि विनिमय पत्र को केवल एक ही बार भुगतान के लिए उपस्थापित किया जा सकता है।

(23) पुनः वैध बनाना- एक चेक को लेखीवाल पुनः वैध बना सकता है, परन्तु विनिमय पत्र को नहीं।

(24) उत्तरवर्ती चेक- चेक को उत्तरवर्ती जारी किया जा सकता है, परन्तु विनिमय पत्र उत्तरवर्ती जारी नहीं किया जा सकता है।

चेक एवं वचनपत्र में अन्तर- चेक एवं वचनपत्र दोनों परक्राम्य लिखत होते हैं। अधिनियम की धारा इन दोनों को क्रमशः परिभाषित किया गया है।

इन दोनों में निम्नलिखित अन्तर है-

1. किसके द्वारा लिखना- चेक को एक ग्राहक अपने बैंक पर लिखता है, जबकि वचनपत्र ऋणी द्वारा लेनदार के लिए लिखा जाता है।

2. पक्षकार चेक की दशा में लेखीवाल, ऊपरवाल एवं आदाता तीन पक्षकार होते हैं, जबकि वचनपत्र में, लेखक एवं आदाता दो ही पक्षकार होते हैं।

3. प्रकृति- चेक में भुगतान करने का आदेश होता है, जबकि वचनपत्र में भुगतान करने का वचन होता है।

4. निश्चित प्रारूप- प्रत्येक बैंकों का विहित टंकित चेक होता है और अब तो सभी बैंकों के लिए CTB-2010 के अनुसार एक समान चेक होगा परन्तु नोट के लिए कोई विहित प्रारूप नहीं है।

5. परिपक्वता अधिनियम के अधीन धारा 22 से 25 तक के परिपक्वता सम्बन्धी प्रावधान वचनपत्र पर लागू होते हैं, जबकि चेक पर नहीं।

6. माँग पर देय- एक चेक सदैव माँग देय होता है और वाहक को माँग पर देय हो सकता है, परन्तु वचनपत्र वाहक को माँग पर देय नहीं बनाया जा सकता है।

7. टिप्पण एवं प्रसाक्ष्य – टिप्पण एवं प्रसाक्ष्य की सूचना चेक पर लागू नहीं होते, क्योंकि चेक के अनादर की टिप्पण एवं प्रसाक्ष्य अपेक्षित नहीं है जबकि वचनपत्र का टिप्पण एवं प्रसाक्ष्य अनादर की दशा में अपेक्षित है।

8. मृत्यु की दशा में संदाय चेक की दशा में बैंक लेखक की मृत्यु या विकृति की दशा की जानकारी होने पर संदाय रोक देता है, परन्तु वचनपत्र की दशा में मृतक के उत्तराधिकार भुगतान के लिए आबद्ध होते हैं।

9. रेखांकन चेक का रेखांकन अनुज्ञेय है, जबकि वचनपत्र का नहीं।

10. स्टॅम्पिंग चेक को स्टाम्पित होना अपेक्षित नहीं है, जबकि वचनपत्र का स्टाम्पित होना आवश्यक होता है।

11. दाण्डिक अपराध- चेक का अनादर दाण्डिक अपराध बनाया गया है, जबकि वचनपत्र का अनादर दाण्डिक अपराध नहीं होता।

12. सांविधिक संरक्षण- चेकों के संदाय के सम्बन्ध में बैंकों को सांविधिक संरक्षण प्रदान किया गया है, जबकि वचनपत्र के सम्बन्ध में ऐसा कोई नहीं।

13. डिस्काउंटिंग वचनपत्र को डिस्काउण्ट पर ऋण लिया जा सकता है, परन्तु चेक पर ऋण नहीं लिया जा सकता है।

14. विधिमान्यता अवधि - एक चेक की विधिमान्यता अवधि लिखे जाने की तिथि से 3 माह तक होती है। जबकि वचनपत्र में ऐसा नहीं है। वचनपत्र के सम्बन्ध में समय-सीमा अवधि 3 वर्ष की होती है।

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