एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 7: अफीम से संबंधित प्रकरण में धारा 42 एवं धारा 50 का उल्लंघन

Update: 2023-11-02 11:01 GMT

एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) की धारा 18 में अफ़ीम से संबंधित मामलों में दंड का प्रावधान किया गया है। यह कठोर दंड का प्रावधान करती है। इस अधिनियम का गलत उद्देश्य से उपयोग न हो इस हेतु धारा 42 एवं 50 के उपबंध किए गए हैं। पुलिस द्वारा प्रकरण बनाते समय इन प्रावधानों का पालन करना होता है। इस आलेख में धारा 42 एवं 50 के उल्लंघन से संबंधित प्रकरणों पर चर्चा की जा रही है।

स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बलवीर सिंह, 1994 क्रिमिनल लॉ जर्नल 241 सुप्रीम कोर्ट 1996 के मामले में अभियुक्त को स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी अधिनियम की धारा 8/18 के अंतर्गत दोषसिद्ध किया गया था। इससे व्यथित होकर अभियुक्त अपीलांट ने अपील प्रस्तुत की थी। अपीलांट के अधिवक्ता ने यह तर्क दिया कि विचारण न्यायालय ने न तो तथ्य के विवाधकों को और न विधि के विवाद्यकों का जो कि सुसंगत थे सही निर्णय पर पहुँचने के लिए सामग्री का मूल्यांकन किया है।

यह भी तर्क दिया गया कि अभियोजन ने इस मामले में जो कथा बताई थी वह पूरी तौर पर असंभाव थी और विश्वास अर्जित नहीं करती थी। इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया था कि मामले में तलाशी व जब्ती कार्यवाही को शासित करने वाले निर्देशात्मक व आदेशात्मक प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था इसके कारण अभियुक्त को सारवान प्रतिकूलता हुई थी।

इस संबंध में अपीलांट के अधिवक्ता ने यह भी स्पष्ट किया था कि न तो अधिनियम की धारा 42 (2) और न अधिनियम की धारा 60 के प्रावधानों का पालन किया गया था। समान तौर पर रासायनिक परीक्षक परीक्षणों को व अन्य तथ्यों को वर्णित करने में विफल रहा था जो कि उसने उसकी राय व्यक्त करने के लिए संग्रहित किए थे। अपीलांट-अभियुक्त ने तर्क के समर्थन में निम्न न्याय दृष्टांतों पर निर्भरता व्यक्त की गई थी-

नंदकिशोर के मामले में अपीलांट अभियुक्त के तर्कों को स्वीकार किया गया। अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान का पालन सन्देहास्पद होना पाया गया। अभियुक्त को प्रतिकूलता होना मानी गई । अभियुक्त दोषमुक्त कर दिया गया ।

अली मुस्तफा बनाम स्टेट ऑफ केरल, एआईआर, 1995 सुप्रीम कोर्ट 244 के मामले में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान की प्रकृति आदेशात्मक है। प्रश्नगत मामले में अधिनियम की धारा 50 के प्रावधानों का पालन किए जाने का बिन्दु विचारणीय था। अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान का पालन होना नहीं पाया गया था। अभियोजन साक्ष्य से यह प्रकट नहीं होता था कि अभियुक्त को उसके अधिकार के बाबत् यदि वह इच्छा करे तो उसकी तलाशी नजदीकी मजिस्ट्रेट अथवा राजपत्रित अधिकारी के समक्ष अधिनियम की धारा 50 में की जा सकती है सूचित किया था।

उच्चतम न्यायालय के न्याय दृष्टांत स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बलवीर सिंह एआईआर 1994 सु.को 1872:1994 क्रिलाज 3702 पर निर्भरता व्यक्त करते हुए यह स्पष्ट किया गया कि अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान आदेशात्मक हैं।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस प्रकरण में यह भी प्रतिपादित किया है कि जो व्यक्ति अभियुक्त की तलाशी लेना चाहता है उसके लिए आबद्धकारी है कि वह बिना अनुचित दिलंब के किसी विभाग के राजपत्रित अधिकारी जो कि अधिनियम की धारा 42 में वर्णित है अथवा नजदीकी मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाए जाने के बाबत अभियुक्त को उसके अधिकार को सूचित करे वर्तमान मामले में इस आदेशात्मक अपेक्षा का अपालन होना पाया गया था। अतः अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया गया। अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान आदेशात्मक हैं।

भूमा राम बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया, 1998 क्रि.ला ज. 1749 राजस्थान के मामले में अधिनियम की धारा 42 के प्रावधान आदेशात्मक माने गए। यदि इन प्रावधानों का पालन होना नहीं पाया जाए तो अभियुक्त दोषमुक्ति का आधार होगा।

यदि अधिनियम की धारा 42 (2) के प्रावधानों का पालन न किया गया हो तो इस आधार पर विचारण दूषित होना माना जाएगा।

निम्न न्याय दृष्टांतों पर निर्भरता व्यक्त की गई-

स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बलवीर सिंह, एआईआर 1994 सुप्रीम कोर्ट 1872

राजेंद्र कुमार बनाम अभिजीत दास गुप्ता, 1999 क्रिलॉज 4733 कलकत्ता के मामले में तलाशी आरंभ करने के पूर्व सूचना को अभिलिखित करने सम्बन्धी जो अपेक्षा अधिनियम की धारा 42 (1) में उपबंधित है। उसका स्वरुप आदेशात्मक होना माना गया। इसके अपालन की दशा में अपराध का संज्ञान व पश्चात्वर्ती कार्यवाही विधिमान्य नहीं होगी।

जहां एनडीपीएस की धारा 42 (1) के अंतर्गत सशक्त अधिकारी किसी व्यक्ति द्वारा उसे दी गई सूचना के आधार पर यदि स्थल की तलाशी करने की कार्यवाही करता है। तो उसकी उचित प्रक्रिया यह है कि ऐसी सूचना को आवश्यक तौर पर लिखित में लिखा जाना चाहिए ।

अधिनियम की धारा 42 व 50 के प्रावधानों की प्रकृति के सम्बन्ध में अभिमत दिया। मप्र हाईकोर्ट ने शांताबाई बनाम स्टेट ऑफ एमपी 1999 क्रिमिनल लॉ जर्नल 1945 मप्र के मामले में इसकी प्रकृति आदेशात्मक स्वरुप की मानी गई है।

वरदापुरेडी सिगम्मान्ना बनाम स्टेट ऑफ ऑप्र, 1999 क्रिलाज 2465 आंध्रप्रदेश में मामले में कहा गया है कि यदि सूर्यास्त एवं सूर्योदय के मध्य तलाशी कार्यवाही की गई हो और इसके लिए कोई कारण अभिलिखित न किया गया हो तो कार्यवाही दूषित होगी प्रश्नगत मामले में अधिनियम की धारा 42 (1) के अपालन के आधार पर कार्यवाही दूषित होना मानी गई।

अभियुक्त के विरुद्ध अधिनियम की धारा 8/18 व धारा 8/22 के अधीन आरोप था। अधिनियम की धारा 50 के पालन बाबत विचार किया गया। अधिनियम की धारा 50 के आदेशात्मक प्रावधानों का अपालन होना पाया गया। तलाशी की कार्यवाही अभियुक्त को सूचना दिए बिना की गयी थी। अभियुक्त को दोषमुक्त किया गया।

शांताबाई बनाम स्टेट ऑफ एमपी, 1999 क्रिलॉज 1945 मप्र के मामले में अधिनियम की धारा 42 व 50 के प्रावधानों की प्रकृति के सम्बन्ध में अभिमत दिया गया म.प्र. उच्च न्यायालय ने इसकी प्रकृति आदेशात्मक स्वरुप की मानी।

गुजुलारामू बनाम द स्टेट आंधप्रदेश 1999 क्रिलॉज 982 आंध्रप्रदेश के मामले में धारा 50 का अपालन होना पाया गया। परिणामतः अफीम जप्ती के मामले में दोषसिद्धि अपास्त कर दी गई।

तलाश करने वाले अधिकारी ने अधिनियम की धारा 50 के प्रावधानों का पालन नहीं किया था। इन परिस्थितियों में अभियुक्त को दोषमुक्त किया जाना उचित माना गया।

इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के निम्न न्याय दृष्टांत पर निर्भरता व्यक्त की गई-

स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बलवीर सिंह 1998 (2) सुप्रीम कोर्ट 724 (स्टेट ऑफ यूपी बनाम प्रमोद कुमार, 1999 क्रिलाज 4677 इलाहाबाद)

यदि अधिनियम की धारा 42 (1) व 42 (2) के आदेशात्मक प्रावधानों का अपालन हो तो विचारण दूषित माना जावेगा। इन प्रावधानों के अपालन की दशा में अभियुक्त को कोई प्रतिकूलता हुई थी, यह दर्शित करना आवश्यक नहीं होगा।

इस संबंध में निम्न न्याय दृष्टांतों पर निर्भरता व्यक्त की गई-

स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बल्देवसिंह, एआईआर 1999 सुप्रीम कोर्ट 2378

अब्दुल रसीद बनाम स्टेट ऑफ गुजरात, एआईआर 2000 सुप्रीम कोर्ट 821

नर्मदा प्रसाद बनाम स्टेट ऑफ एमपी 2001 (1) छत्तीसगढ़ लॉ जजमेंट्स 306 छतीसगढ़

रसीद बनाम स्टेट ऑफ केरल, 1999 क्रि.ला ज. 4746 केरल के मामले में अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान का पालन हुआ था या नहीं इसका अवधारण किया जाना था। प्रश्नगत मामले में मात्र राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी किए जाने बाबत् विकल्प दिया गया था। यह बताए जाने में विफलता हुई थी कि मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में भी तलाशी कार्यवाही हो सकती है। इन परिस्थितियों में अधिनियम की धारा 50 के प्रावधानों का पालन होना नहीं समझा जा सकता है।

एक अन्य मामले में यदि अधिनियम की धारा 50 के प्रावधानों का अपालन होना पाया जाए तो अभियुक्त को संदेह का लाभ पाने का अधिकार होगा। इस प्रकरण में अभियुक्त के अधिवक्ता ने इस बिन्दु पर कि अधिनियम की धारा 50 के आदेशात्मक प्रावधानों का पालन न होने पर वह दोषमुक्ति का हकदार है।

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