एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 26: एनडीपीएस एक्ट धारा 42 का पालन कब आवश्यक नहीं है

Update: 2023-03-09 05:12 GMT

एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) की धारा 42 का पालन आवश्यक है और आदेशात्मक है किंतु फिर भी कुछ परिस्थिति ऐसी है जहां इसका पालन आवश्यक नहीं होता है। इससे संबंधित अदालतों के दिए हुए न्याय निर्णय है। इस आलेख के अंतर्गत इस प्रावधान पर चर्चा की जा रही है।

एम. प्रभूलाल बनाम द असिस्टेंट डायरेक्टर, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंसी, 2003 (4) क्राइम्स 217 सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभियुक्तगण की ओर से यह तर्क दिया गया था कि अधिनियम की धारा 42 के प्रावधान के अपालन के कारण दोषसिद्धि दूषित हो गई है। इस तर्क को पूरी तौर पर भयावह होना माना गया। ऐसा मात्र पहले प्रभाव में दर्शित होता था परंतु गहराई से परीक्षण करने पर ऐसा होना नहीं माना गया। इस मामले में यह तर्क दिया गया था कि हाई कोर्ट के विचार से जब राजपत्रित अधिकारी स्वयं तलाशी को संचालित करता है तो अधिनियम की धारा 42 (2) के प्रावधान का पालन करना आवश्यक नहीं होता है, इसे स्पष्ट तौर पर त्रुटिपूर्ण होना माना गया।

अधिनियम की धारा 42 (2) यह प्रावधानित करती है कि जहां अधिकारी उपधारा (1) के अधीन लिखित में कोई जानकारी हासिल करता है अथवा इसके परंतुक के अधीन उसके विश्वास के आधारों को अभिलिखित करता है तो वह तत्काल इसकी एक प्रतिलिपि उसके तात्कालिक वरिष्ठ अधिकारी को भेजेगा। सुसंगत समय पर यह वैधानिक प्रावधान था। स्वापक औषधि एवं मनःप्रभावी पदार्थ (संशोधन) अधिनियम, 2001 जो कि 2 अक्टूबर 2001 से प्रभाव में आया है, अधिनियम की धारा 42(2) को संशोधित किया गया है।

इस संशोधन का प्रभाव यह है कि उपधारा (1) अधीन लिखित में हासिल की गई जानकारी को अथवा इसके परंतुक के अधीन अभिलिखित विश्वास के आधारों को तात्कालिक वरिष्ठ अधिकारी को 72 घंटों के भीतर भेजा जाना अपेक्षित किया गया है। तर्क यह है कि वह अधिकारी जिसने कि प्रतिषिद्ध वस्तु की तलाशी व जब्ती की थी अभियोजन साक्षी 1 के अनुसार प्राप्त होने वाली जानकारी पर किया था। परंतु कथित जानकारी अधिनियम की धारा 42 (2) में यथावर्णित उसके वरिष्ठ अधिकारी को अग्रेषित नहीं किया गया था।

इस प्रकार संपूर्ण अभियोजन दूषित हो गया था। प्रत्यर्थी के अधिवक्ता के द्वारा अन्यथा तर्क यह दिया गया कि हाई कोर्ट के द्वारा अपीलांट्स को अधिनियम की धारा 42 (2) के प्रावधान के अपालन पर विचार करते हुए जमानत प्रदान की गई थी। इसलिए इस आदेशात्मक प्रावधान के पालन को दर्शित करने के विचार से इस कमी को भरने का प्रयास किया गया है। अधिकारी जिसने कि गिरफ्तारी, तलाशी एवं जप्ती की थी वह विभाग का एक सशक्त राजपत्रित अधिकारी था। यह तथ्य विवादित नहीं था।

प्रत्यर्थी के अधिवक्ता के अनुसार अधिनियम की धारा 42(2) उस दशा में प्रयोज्य नहीं होती है जबकि एक सशक्त राजपत्रित अधिकारी गिरफ्तारी, तलाशी एवं जब्ती को संचालित करता है। अधिवक्ता के द्वारा यह निवेदन किया गया कि अधिनियम की धारा 42 (2) के प्रावधान की अपेक्षा का पालन करना आवश्यक नहीं था। विकल्प में यह भी तर्क दिया गया कि अधिनियम की धारा 42(2) के प्रावधान का पालन कर दिया गया था।

आक्षेपित निर्णय में उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया था कि पाए जाने वाले तथ्यों पर अधिनियम की धारा 41 मात्र प्रयोज्य होती थी और अधिनियम की धारा 42 (2) आकर्षित नहीं होती थी और इसलिए अपीलांट्स के द्वारा धारा 42(2) के अधीन प्रदान कि निर्णयों की कोई सुसंगतता नहीं थी।

यह अभिनिर्धारित किया गया कि धारा 42 की उपधारा (2) की भाषा से यह स्पष्ट है कि यह उपधारा (1) के द्वारा वर्णित अधिकारी के संबंध में प्रयोज्य होती है। यह प्रावधान धारा 41 की उपधारा (2) में वर्णित राजपत्रित अधिकारी के मामले में प्रयोज्य नहीं होता है जबकि ऐसा राजपत्रित अधिकारी स्वयं गिरफ्तारी करता है अथवा तलाशी एवं जब्ती संचालित करता है।

अधिनियम की धारा 43 की अपेक्षा लेना भी उपयोगी माना गया। यह प्रावधान लोक स्थल में जब्ती एवं गिरफ्तारी की शक्तियों से संबंधित है। अधिनियम की धारा 42 में वर्णित विभाग का कोई भी अधिकारी प्रतिषिद्ध वस्तु आदि की जब्ती करने के लिए सशक्त किया गया है एवं लोक स्थल पर अथवा यात्रा में धारा 43 में बताए गए तत्वों की उपस्थिति होने पर किसी भी व्यक्ति को रोक सकता है और तलाशी ले सकता है।

यह दिखाई देता है कि अधिनियम की धारा 42 एवं 43 इस बाबत अपेक्षा नहीं करते है कि अधिकारी को राजपत्रित अधिकारी होना चाहिए जबकि अधिनियम की धारा 41 (2) इस रूप में अधिकारी होने की अपेक्षा करती है। इस प्रकार हाई कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचने में सही होना माना गया कि चूंकि राजपत्रित अधिकारी स्वयं ने तलाशी संचालित की थी व अभियुक्त को गिरफ्तार किया था एवं प्रतिषिद्ध वस्तु की जब्ती की थी इसलिए वह अधिनियम की धारा 41 के तहत कार्य कर रहा था और इस प्रकार अधिनियम की धारा 42 के प्रावधानों का पालन करना आवश्यक नहीं था।

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