संसदीय लोकतंत्र को तीन हिस्सों में बांटा गया है जिसमें कार्यपालिका के बाद विधायिका का महत्वपूर्ण स्थान है। कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में केंद्रीय विधान मंडल के संदर्भ में अत्यंत विस्तृत उपबंध किए गए हैं। भारत की संसद को केंद्रीय विधान मंडल कहा जा सकता है अर्थात भारत की संसद केंद्रीय कानून बनाने का काम करती है। भारत की संसद के 3 अंग होते हैं।
राष्ट्रपति राज्यसभा और लोकसभा राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं है परंतु फिर भी राष्ट्रपति संसद का अहम और महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि किसी भी विधेयक के अधिनियम होने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति अत्यंत आवश्यक है। कोई भी विधेयक अधिनियम तभी बनता है जब उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति दी जाती है।
कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका का आपस में इस प्रकार पृथक्करण किया गया है जिससे किसी एक के पास सभी शक्तियां एकत्रित नहीं हो जाएं। कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में सरकार की शक्तियां अलग-अलग अंगों में निहित की है।
भारत के शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत को अत्यंत कठोरता से लागू किया है। भारत की कार्यपालिका अर्थात मंत्रिमंडल के सदस्य विधान मंडल के सदस्य भी होते हैं। सदस्य होने के लिए विधानमंडल का सदस्य होना आवश्यक है। राष्ट्रपति को आर्टिकल 72 के अधीन माफी की शक्ति प्राप्त है जो एक न्यायिक कृत्य है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति आर्टिकल 124 के अधीन अध्यादेश जारी कर सकता है उसकी एक विधायी सकती है। संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका का अलग अलग होना संभव नहीं फिर भी भारतीय संविधान में इन दोनों के मध्य समन्वय बनाकर दोनों को अलग किए जाने का अथक प्रयास किया है।
शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत को भारतीय संविधान में कठोरता से लागू नहीं किया गया किंतु इस बात का ध्यान रखा गया है कि सरकार कोई भी अंग निरंकुश न हो जाए। इसलिए संविधान में रोकथाम की व्यवस्था की गई है। इसी उद्देश्य से कार्यपालिका को लोकसभा के प्रति उत्तरदाई बनाया गया है। पूर्व विधायिका तथा कार्यपालिका के मनमानी कृत्यों के विरुद्ध न्यायपालिका को शक्ति दी गई है। उनके कार्यों को अवैध घोषित करके उन्हें अपनी सीमा में कार्य करने के लिए बाध्य करें।
भारत की संसद दो सदनों से मिलकर बनती है जिन्हें ऊपरी सदन में निचला सदन भी कहा जाता है और राज्यसभा और लोकसभा भी कहा जाता है। राज्यसभा में सदस्यों का चुनाव आप्रत्यक्ष होता है और लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष होता है।
संसद के सत्र-
राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर जैसा कि वह उचित समझे अधिवेशन के लिए आहूत कर करता है। एक सत्र की अंतिम बैठक और अगले सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियुक्त तारीख के बीच से 6 महीने का अंतर नहीं होना चाहिए अर्थात 6 महीने के बाद सत्र बुलाना ही होता है। इस प्रकार 1 वर्ष में दो बार संसद का अधिवेशन बुलाया जाना आवश्यक है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर संसद का अधिवेशन बुलाता है। अभी हाल ही के मामले में कोरोना संक्रमण काल के कारण संसद का सत्र 6 महीने तक स्थगित रखा गया।
संसद के अधिवेशन की कार्यवाही नहीं जा सकती कि उसके जेल में बंद होने के कारण उसकी कार्रवाई से भाग लेने से वंचित कर दिया गया है। लोकसभा प्रत्येक आम चुनाव के पश्चात प्रथम सत्र के शुरू होने पर प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के आरंभ में एक साथ आहूत दोनों सदनों को राष्ट्रपति संबोधित करता है। संसद को उसके बुलाए जाने के कारणों को बताता है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण में उसके कारणों का उल्लेख रहता है। राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन को या साथ बुलाए गए दोनों सदनों को संबोधित करेगा तथा इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा करेगा। वह संसद में लंबित किसी विधायक या अन्य विषय के संबंध में किसी सदन को संदेश भेज सकता है।
संसद के सत्र का उठाया जाना-
भारत का राष्ट्रपति संसद के सत्र को उठाता है अर्थात सत्रावसान करता है। स्थगन संसद के किसी विशेष सत्र को समाप्त करना है। स्थगन सदन की बैठक को समाप्त करता है। एक सत्र में कई बैठकें होती हैं। स्थगन स्वयं सदन का कार्य होता है जिसका प्रयोग स्पीकर या सभापति करता है। सत्रों के स्थगन का सदन में विचाराधीन अपूर्ण मामलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। सदन ऐसे मामलों पर दूसरी बैठकों में विचार कर सकता है।
संसद का समाप्त हो जाना-
संसद उसकी समय अवधि के समाप्त हो जाने पर समाप्त हो जाती है जिसके बाद नई लोकसभा के निर्माण के लिए निर्वाचन होना आवश्यक हो जाता है। राज्यसभा का गठन कभी नहीं होता है राज्यसभा एक सतत जारी रहने वाली प्रक्रिया है जिसके सदस्य चुनते रहते हैं और राज्यसभा बनी रहती है। स्थगन और विघटन में अंतर यह है कि सत्रवासन सदन के किसी विशेष सत्र को समाप्त करता है जबकि विघटन सदन को ही समाप्त कर देता है। लोकसभा को विघटन करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया का आर्टिकल 85 यह कहता है कि राष्ट्रपति समय-समय पर लोकसभा का विघटन कर सकता है। इस मामले में राष्ट्रपति मंत्री परिषद के परामर्श से ही लोकसभा का विघटन करता है। जब तक प्रधानमंत्री को लोकसभा के बहुमत का विश्वास प्राप्त है राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श को मानने के लिए बाध्य है और वह उसके परामर्श से ही लोकसभा का खात्मा कर सकता है।
यदि किसी विषय पर सरकार लोकसभा में पराजित हो जाती है तो प्रधानमंत्री स्वयं अपने मंत्रिमंडल का त्याग पत्र दे देगा यदि ऐसा नहीं करता है सरकार को अपदस्थ करके लोकसभा को समाप्त कर देगा। असल में संसद का विघटन नहीं होता है। राज्यसभा तो हमेशा बरकरार ही रहती है ऐसा कभी भी नहीं होता कि संसद के तीनों अंग राष्ट्रपति राज्यसभा और लोकसभा तीनों एक साथ समाप्त हो जाए, केवल लोकसभा 5 वर्ष की अवधि में समाप्त हो जाती है, राज्यसभा हमेशा बरकरार रहती है और राष्ट्रपति का चुनाव इन दोनों के बाद होता है। इस स्थिति में भारत की संसद के तीनों अंग कभी भी एक साथ समाप्त नहीं होतें है केवल लोकसभा का विघटन होता है।