कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में संघ और राज्यों के बीच सामंजस के साथ बंटवारा किया है। भारत का संविधान एक संघीय संविधान है जिसके अंतर्गत भारत के राज्यों के लिए अलग व्यवस्था है और भारत के संघ के लिए अलग व्यवस्था है। भारत राज्यों का एक संघ है जिस प्रकार भारत के संघ को विधि निर्माण के संबंध में अधिकार कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया द्वारा दिए गए हैं इसी प्रकार भारत के राज्य को भी अपनी विधायी शक्ति दी गई है जिसके अंतर्गत राज्य के विधान मंडल राज्यों के लिए विधि निर्माण करते हैं। संविधान प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल का उपबंध करता है।
प्रत्येक राज्य का विधान मंडल राज्यपाल तथा एक या दोनों सदनों को मिलाकर बनता है। भारत के कुछ राज्यों में केवल एक ही सदन होता है और कुछ में दो सदन हैं जैसे बिहार महाराष्ट्र कर्नाटक उत्तर प्रदेश में दो सदनों वाला विधानमंडल है बाकी सभी राज्यों में एक सदन है जिसे विधानसभा कहा जाता है। विधानसभा और विधान मंडल में कोई विशेष अंतर नहीं है विधानमंडल एक बड़ा शब्द है जिसके अंतर्गत विधानसभा भी आ जाती है।
कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 168 से लेकर 212 तक राज्यों के विधान मंडल के संबंध में उपबंध किए गए हैं। आर्टिकल 169 के अधीन संसद विधि द्वारा किसी राज्य में विधान परिषद का सृजन कर सकती है यदि उस राज्य की विधानसभा इस आशय का संकल्प कुल सदस्यों के बहुमत तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित कर देती है। विधानसभा जनता के प्रतिनिधियों का सदन है जिसकी न्यूनतम सदस्य संख्या 60 अधिकतम सदस्य संख्या 500 है अर्थात किसी भी राज्य में उसकी विधानसभा के सदस्यों की संख्या न्यूनतम 60 रहेगी अधिकतम 500 है।
राज्य में चुनाव क्षेत्र के वयस्क मताधिकार के आधार पर सीधे मतदान द्वारा विधानसभा के सदस्यों का चुनाव होता है। प्रत्येक चुनाव क्षेत्र की जनसंख्या के आधार पर ही सदनों में सदस्यों का प्रतिनिधित्व होता है। उस जनसंख्या का निर्धारण साधारण रूप से जनगणना के आधार पर ही किया जाता है। प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर राज्य में विधानसभा के सदस्य संख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनः समायोजन किया जाएगा।
जनसंख्या के आधार पर राज्य में अनुसूचित जनजातियों तथा जनजातियों के लिए राज्य की विधानसभा में उनकी सदस्य संख्या निर्धारित की जाएगी। राज्यपाल की राय में एंग्लो इंडियन को पर्याप्त नहीं मिला तो वह विधानसभा में उस समुदाय के एक सदस्य को नामजद कर सकता है। निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का अनुपात समस्त राज्य में एक ही हो। इस प्रयोजन के लिए जनसंख्या 1971 के आधार पर मानी जायेगी।
राज्य में विधानसभा की कालावधि 5 वर्षों की होती है किंतु यदि राज्यपाल चाहे तो निश्चित समय से पूर्व ही विधानसभा भंग कर सकता है। राज्य विधानसभा का उपयुक्त कार्यकाल जब आपात की उद्घोषणा प्रवचन में है संसद द्वारा विधि बनाकर 1 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है किंतु आपातकालीन स्थिति के समाप्त होने के उपरांत 6 महीने की कालावधि से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।
कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 171 के अनुसार विधान परिषद के सदस्यों की समस्त संख्या उस राज्य के विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 1 तिहाई से अधिक नहीं होगी। किसी भी दशा में विधान परिषद के सदस्यों की संख्या 40 से कम नहीं होगी।
संसद विधान परिषद के गठन के संबंध में कानून बना सकती है किंतु जब तक संसद ऐसा न करें विधान परिषद का गठन किसी राज्य की विधान परिषद की कुल संख्या के एक तिहाई सदस्य नगर पालिका परिषद तथा स्थानीय निकायों के सदस्यों के निर्वाचन मंडल द्वारा चुने जाएंगे, इसके अलावा संसद द्वारा निश्चित करें।
केंद्र में राज्यसभा की तरह यह राज्य की विधान परिषद की स्थाई सभा है इसे बंद नहीं किया जा सकता है किंतु इसके एक तिहाई सदस्य प्रतिवर्ष 2 वर्ष में रिटायर हो जातें हैं।
राज्य विधान मंडल के सदस्य चुने जाने के लिए किसी व्यक्ति में कुछ योग्यताएं होना आवश्यक है। जैसे उसे भारत का नागरिक होना चाहिए, विधानसभा की सदस्यता के लिए कम से कम 25 वर्ष की आयु तथा विधान परिषद की सदस्यता के लिए 30 वर्ष की आयु पूरी हो जाना चाहिए, और वह सभी अर्हताएं रखता हो जिन्हें समय-समय पर संसद विधि द्वारा नियत करें।
आर्टिकल 191 के अनुसार सदस्यता के लिए कुछ लोग निर्योग्य भी हो सकते हैं जैसे यदि वह व्यक्ति केंद्र अथवा राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद ग्रहण करता हो, यदि वह विकृत चित्त हो, यदि वह अनुमोदित दिवालिया है, यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार कर ली है, यदि वह संसद के किसी कानून के द्वारा निर्योग्य घोषित कर दिया गया।
आर्टिकल 191(1) खंड 2 यह कहता है कि कोई ऐसा व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा विधान परिषद का सदस्य होने के लिए निर्योग्य होगा जो संविधान की दसवीं अनुसूची के अधीन निर्योग्य हो जाता है। दसवीं अनुसूची के अनुसार विधानसभा का सदस्य जो किसी राजनीतिक दल का सदस्य है उसकी सदस्यता कुछ परिस्थितियों में समाप्त हो जाती है।
जैसे सदस्य ने ऐसे राजनीतिक दल की अपनी सदस्यता अपनी इच्छा से छोड़ दी है या किसी राजनीतिक दल की पूर्व आज्ञा के बिना सदन में मतदान करता है या मतदान करने से दूर रहता है और मतदान करने या दूर रहने को राजनीतिक दल ने 15 दिनों के भीतर माफ नहीं किया है या फिर सदन का कोई निर्वाचित सदस्य जो निर्वाचन के पश्चात किसी अन्य राजनीतिक दल का सदस्य हो जाता है या फिर सदन का कोई नाम निर्देशित सदस्य सदस्यता ग्रहण के पश्चात 6 महीने की समाप्ति पर किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
संविधान के यह संशोधन दल परिवर्तन की राजनीति रोकने के लिए किए गए हैं। दल परिवर्तन के आधार पर निर्योग्यता कुछ परिस्थितियों में लागू नहीं होती है जैसे यदि उसके मूल राजनीतिक दल या किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय हो जाता है और वह उसका सदस्य बन जाता है या विधानसभा में दल के कम से कम दो तिहाई सदस्य किसी अन्य दल से मिलने के लिए सहमत हो गए हो या दल परिवर्तन के यथास्थिति सभापति अध्यक्ष निर्णय करेगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।
विधान परिषद आर्टिकल 169 के अंतर्गत संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि यदि वह चाहे तो जिस प्रदेश में विधान परिषद पहले से है उसे समाप्त कर दें तथा इसके विपरीत जिन राज्यों में एक सदन वाला विधानमंडल है वहां विधान परिषद को बना दे। किसी राज्य में केवल 1 विधानसभा होती है वहां पर संसद किसी विधान परिषद का निर्माण भी कर सकती है।
यह शक्ति संसद को प्राप्त है जहां पर विधान परिषद का प्रावधान नहीं है अर्थात जहां पर सदन वाला विधानमंडल है यदि वहां की विधानसभा सदन के बहुमत से तथा उपस्थित सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत से इस आशय पर प्रस्ताव प्राप्त करें। किसी भी सदन द्वारा ऐसा प्रस्ताव पास किया जाना संविधान में संशोधन नहीं माना जाएगा इसको साधारण विधि के समान ही पास किया जाता है। कई राज्यों ने इस सदन को समाप्त कर दिया है अभी यह सदन बिहार तमिलनाडु महाराष्ट्र कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में रह गया है, अधिकांश राज्यों में केवल एक ही सदन है जिसे विधानसभा कहा जाता है।