बच्चों की कस्टडी तय करते समय सुप्रीम कोर्ट ने “वेलफेयर प्रिंसिपल” को कैसे परिभाषित किया?

Update: 2025-08-12 11:53 GMT

8 मई 2024 के निर्णय Col. Ramneesh Pal Singh v. Sugandhi Aggarwal में सुप्रीम कोर्ट ने Guardians and Wards Act, 1890 के तहत नाबालिग बच्चों की कस्टडी (Custody) तय करने के मूल सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि बच्चों का “वेलफेयर” (Welfare) ही सर्वोपरि विचार होना चाहिए।

साथ ही, Parens Patriae Jurisdiction (अदालत की संरक्षक भूमिका) के दायरे और Parental Alienation Syndrome (PAS) जैसे आरोपों को देखने के तरीके पर भी मार्गदर्शन दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे की पसंद (Preference) अकेले निर्णायक नहीं होती, लेकिन अन्य वेलफेयर फैक्टर्स (Welfare Factors) के साथ इसे महत्व देना ज़रूरी है।

बच्चों के वेलफेयर (Welfare of the Minor) को सर्वोच्च मानक मानना

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि कस्टडी (Custody) मामलों में माता-पिता के अधिकारों से भी ऊपर बच्चे का वेलफेयर (Welfare) होता है। Guardians and Wards Act, 1890 की धारा 17 स्पष्ट करती है कि अदालत को बच्चे की उम्र, लिंग, धर्म, अभिभावक के चरित्र और क्षमता, रिश्तेदारी की निकटता और बच्चे की समझदारी भरी पसंद जैसे कारकों को देखना चाहिए।

Nil Ratan Kundu v. Abhijit Kundu (2008) 9 SCC 413 के आधार पर कोर्ट ने कहा कि वेलफेयर (Welfare) का मतलब केवल शारीरिक सुविधा नहीं है, बल्कि नैतिक (Moral), चारित्रिक (Ethical) और बौद्धिक विकास (Intellectual Development) भी उतना ही महत्वपूर्ण है। माता-पिता “अनफिट” (Unfit) न हों, यह पर्याप्त नहीं; बल्कि यह देखना जरूरी है कि क्या उस अभिभावक के पास रहना बच्चे के हित में सबसे अच्छा होगा।

पैरेंस पैट्रिए जुरिस्डिक्शन (Parens Patriae Jurisdiction) का दायरा

कोर्ट ने कहा कि गार्जियनशिप (Guardianship) तय करते समय जज एक संरक्षक (Protector) की भूमिका निभाता है। यह जिम्मेदारी केवल कानून तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवीय दृष्टिकोण (Human Approach) अपनाने की मांग करती है। अदालत को साक्ष्य या प्रक्रिया के कठोर नियमों में नहीं बंधना चाहिए, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थिरता और भावनात्मक स्थिति (Emotional Well-being) समेत बच्चे के पूरे वातावरण का मूल्यांकन करना चाहिए।

बच्चे की पसंद (Preference of the Child) का महत्व

धारा 17(3) Guardians and Wards Act कहती है कि यदि बच्चा समझदारी से अपनी पसंद बता सकता है, तो अदालत उसे ध्यान में रख सकती है। इस मामले में दोनों बच्चों ने चार साल की अवधि में कई अदालतों के सामने बार-बार कहा कि वे अपने पिता के साथ रहना चाहते हैं।

कोर्ट ने माना कि यह पसंद अकेले फैसला तय नहीं करती, लेकिन यह बच्चों की स्थिरता (Stability) और मानसिक स्थिति का एक महत्वपूर्ण संकेत है। बच्चों को समझदार, आत्मविश्वासी और परिस्थिति से अवगत पाया गया, जिससे उनकी पसंद और भी विश्वसनीय हो गई।

पैरेंटल एलियनेशन सिंड्रोम (Parental Alienation Syndrome) के आरोप और अदालत का दृष्टिकोण

मां ने आरोप लगाया कि पिता ने Parental Alienation Syndrome (PAS) जैसी स्थिति पैदा की है, यानी बच्चों को मां के खिलाफ मानसिक रूप से प्रभावित किया है। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस संभावना को नकारा नहीं और Vivek Singh v. Romani Singh (2017) 3 SCC 231 पर भरोसा किया।

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस आरोप का कोई ठोस आधार नहीं था। कोर्ट ने यूके केस Re C ('parental alienation'; instruction of expert) [2023] EWHC 345 (Fam) के दृष्टिकोण को अपनाया, जिसमें कहा गया कि PAS कोई डायग्नोस होने वाला सिंड्रोम नहीं है, बल्कि यह तथ्य का प्रश्न है कि क्या “एलियनेटिंग बिहेवियर” (Alienating Behaviour) हुआ या नहीं।

कोर्ट ने कहा कि बिना ठोस उदाहरण के किसी भी अभिभावक को PAS का प्रचारक कहना गलत है। इस केस में न तो एलियनेटिंग बिहेवियर (Alienating Behaviour) के सबूत थे, न ही शुरूआती दौर में बच्चों ने किसी एक माता-पिता के प्रति झुकाव दिखाया था।

स्थिरता (Stability) और सपोर्ट सिस्टम (Support System) का महत्व

मां ने तर्क दिया कि पिता का आर्मी (Army) में होना और बार-बार ट्रांसफर होना बच्चों के पालन-पोषण में बाधा है। कोर्ट ने कहा कि इंडियन आर्म्ड फोर्सेस (Indian Armed Forces) अपने अधिकारियों के परिवार को मजबूत सपोर्ट सिस्टम (Support System) देते हैं, जिसमें आवास, आर्मी स्कूल, अस्पताल, खेल और सांस्कृतिक सुविधाएं शामिल हैं। यह वातावरण बच्चों के व्यक्तित्व विकास (Personality Development) में मदद करता है।

इस केस में सिद्धांतों का अनुप्रयोग (Application of Principles)

कोर्ट ने माना कि—

1. वेलफेयर के लिए निरंतरता (Continuity for Welfare) – बच्चे कई वर्षों से पिता के साथ स्थिर माहौल में रह रहे हैं और पढ़ाई व सामाजिक जीवन में अच्छा कर रहे हैं।

2. कोई सिद्ध एलियनेशन नहीं (No Proven Alienation) – PAS या एलियनेटिंग बिहेवियर के कोई ठोस सबूत नहीं थे।

3. सुसंगत और समझदारी भरी पसंद (Consistent & Informed Preference) – बच्चों की इच्छा लगातार एक जैसी रही और वे परिपक्वता से अवगत थे।

4. सपोर्टिव माहौल (Supportive Environment) – पिता का पेशा बच्चों को संसाधन और स्थिरता देता है।

अंतिम निर्णय (Final Decision)

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के सुविचारित आदेश को बदलकर गलती की। इसलिए हाई कोर्ट का आदेश रद्द किया गया और फैमिली कोर्ट का निर्णय बहाल किया गया—बच्चों की स्थायी कस्टडी (Permanent Custody) पिता के पास रहेगी और मां को तयशुदा विजिटेशन राइट्स (Visitation Rights) मिलेंगे।

महत्व (Significance)

यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि—

• यह दोहराता है कि बच्चों का वेलफेयर (Welfare) बहुआयामी है और माता-पिता के अधिकारों से ऊपर है।

• PAS के आरोपों के लिए ठोस सबूत की जरूरत है, केवल संदेह पर्याप्त नहीं।

• बच्चे की सुसंगत और समझदार पसंद को सम्मान देना चाहिए, खासकर जब अन्य वेलफेयर फैक्टर्स (Welfare Factors) उसका समर्थन करें।

• स्थिर वातावरण (Stable Environment) को कस्टडी (Custody) मामलों में अहम माना गया।

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने कानून और मानवीय संवेदनाओं के बीच संतुलन बनाते हुए बच्चों के वेलफेयर को सर्वोपरि रखा। यह निर्णय भविष्य के कस्टडी विवादों के लिए विशेषकर तब मार्गदर्शक होगा जब PAS जैसे आरोप बिना ठोस सबूत के लगाए जाएं।

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