भारत के कांस्टीट्यूशन के अंतर्गत संघ और राज्यों के बीच विधायी संबंधों के अंतर्गत शक्तियों का विभाजन किया गया है, संघ और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन अत्यंत महत्वपूर्ण विभाजन है। आर्टिकल 245 यह उपबंधित करता है कि इस कांस्टीट्यूशन के उपबंधों के अधीन रहते हुए संसद भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकेगी तथा किसी राज्य का विधान मंडल उस संपूर्ण राज्य के लिए उसके अलावा किसी भाग के लिए विधि बना सकेगा।
इस आर्टिकल के खंड 2 के अनुसार संसद द्वारा बनाई गई कोई विधि इस आधार पर अविधिमान्य नहीं समझी जाएगी कि वह भारत के राज्य क्षेत्र से बाहर लागू होती है। इसका यह तात्पर्य है कि संसद द्वारा बनाई गई विधि न केवल भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर स्थित व्यक्तियों की संपत्तियों पर लागू होगी बल्कि विश्व के किसी भी भाग में निवास करने वाले भारत के नागरिकों और उनकी वहां स्थित संपत्ति को भी लागू होगी।
ऐसा विधान जो अंतर्राष्ट्रीय विधि का उल्लंघन कर सकता है विदेशी कोर्ट द्वारा मान्य नहीं किया जा सकता उन्हें लागू करने में व्यवहारिक कठिनाइयां हो सकती है किंतु यह सब विधि के प्रश्न है जिन प्रश्नों पर कोर्ट में विचार नहीं किया जा सकता।
आर्टिकल 243(1) के अनुसार किसी राज्य का विधान मंडल उस संपूर्ण राज्य के या उसके किसी बात के लिए विधि बना सकता है इसका तात्पर्य यह है कि राज्य की विधायी शक्ति का विस्तार राज्य क्षेत्र तक ही सीमित है किंतु नियम का एक अपवाद भी है अर्थात राज्य द्वारा बनाई गई विधि भी राज्य क्षेत्र से बाहर के क्षेत्र में लागू हो सकती है, इसकी वस्तु से कोई संबंध हो जिसके ऊपर वह विधि लागू होती है इसे क्षेत्रीय संबंध का सिद्धांत कहते हैं।
सुंदर गोपाल बनाम सुंदर रजनी के प्रकरण में पत्नी द्वारा पति के विरुद्ध न्यायिक पृथक्करण की कार्यवाही में पति ने याचिका का धारणीय होना इस आधार पर प्रश्न गत किया कि उन दोनों ने स्वीडन की नागरिकता प्राप्त कर ली थी। पत्नी ने यह कहा कि उसने अपने अधिवास में कभी भी परिवर्तन नहीं किया जहां तक कि यदि मान भी लिया जाए कि उसने स्वीडन का अधिवास प्राप्त कर लिया था तो जब युगल ऑस्ट्रेलिया चला गया था तो उसने इस का परित्याग कर दिया था और इसलिए भारत का अधिवास पुनः लागू हो गया था। पति का यह तर्क था कि पति का अधिवास पत्नी का अधिवास होगा।
मामले में यह पाया गया कि पत्नी और पति दोनों ही भारत में अधिवास इस थे क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा एक और धारा 2 जम्मू कश्मीर सहित संपूर्ण भारत में विस्तृत होती है। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के पहले यह धारा जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होती थी और यह भारत में अधिवासी उन हिंदुओं को भी लागू होती है जो भारत के बाहर रहते हैं जिन्होंने अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर ली है।
कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि अधिनियम उन्हें भी लागू होता है, यह कहना कि अधिनियम हिंदुओं को उनके अधिवास को विचार में लिए बिना लागू करना चाहिए, अधिनियम को किसी संबंध को ध्यान दिए बिना संपूर्ण विश्व में राज्य क्षेत्र से बाहर प्रवर्तित करना है। इस निर्वाचन के को अनुज्ञात कर देने पर यह प्रावधान को अधिमान हो जाएगा। इसके अतिरिक्त हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 1(2) में अधिवास इस शब्द को अनावश्यक कर देगा। यह स्वीकार सिद्धांत है की विधायिका सामान्यताः अपने शब्दों को व्यर्थ नहीं करती है।
कानून बनाना मुख्य रूप से विधानमंडल का कार्य होता है किंतु प्राय विधानमंडल विधि बनाने की शक्ति अन्य व्यक्तियों अथवा निकायों को प्रत्यायोजित कर देता है। इन व्यक्तियों द्वारा बनाए गए नियमों परिणामों आदेशों पूर्व उपविधियों को प्रत्यायोजित विधान कहते हैं किंतु विधानमंडल के लिए आवश्यक होता है कि अधिनियम बनाकर उन मार्गदर्शक सिद्धांतों को विहित करें जिसके अनुसार अन्य निकायों अथवा व्यक्तियों द्वारा प्रत्यायोजित विधान बनाए जा सकते हैं।
परिसंघ व्यवस्था में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन रहता है। साधारण राष्ट्रीय महत्व के विषय केंद्र को दिए जाते हैं जैसे सुरक्षा रेल डाक करेंसी आदि और स्थानीय महत्व के विषय राज्यों को सौंपा जाते हैं। वह विभाजन किसी निश्चित या ठोस आधार पर नहीं किया जा सकता। प्रत्येक देश की स्थानीय और राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार शक्ति विभाजन भी भिन्न-भिन्न होता है।
भारत सरकार अधिनियम 1935 में भी 3 अनुसूचियों का समावेश किया गया था। संघ सूची राज्य सूची समवर्ती सूची। भारत के कांस्टीट्यूशन में उक्त अधिनियम की प्रणाली का अनुसरण किया गया और विषयों को तीन सूची में विभाजित किया गया। संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। यूनियन और स्टेट दोनों अलग अलग विषयों पर कानून बनाते हैं और कुछ विषय ऐसे हैं जिन पर दोनों मिलकर कानून बनाते हैं।