सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया सदोष हत्या का प्रयास, जिसमें हत्या न हुई हो [Section 308 IPC] और स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना [ Section 324 IPC] के बीच अंतर

Update: 2020-10-02 03:58 GMT

एक आपराधिक अपील में पिछले महीने पारित एक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने सदोष हत्या के प्रयास, जिसमें हत्या न हुई हो [धारा 308 आईपीसी] और जानबूझ़-कर तेज धारदार हथियार से घायल करने [ धारा 324 आईपीसी] के बीच 'सूक्ष्म और बारीक' अंतर समझाया।

तीन जजों की पीठ ने कहा, धारा 308 के तहत, चोटें ऐसी होनी चाहिए जिनसे मौत हो सकती हो, जबकि धारा 324 के तहत चोटें जीवन को खतरे में डाल सकती या नहीं डाल सकती है।

अदालत एक अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के तहत दी गई सजा के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। ज‌स्ट‌िस एनवी रमना की अध्यक्षता में, पीठ ने विचार किया कि क्या अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध आईपीसी की धारा 308 या 324 के दायरे में आता है?

इस संदर्भ में, पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 308 कहती है कि "जिसने इरादे या ज्ञान के साथ कृत्य किया है और ऐसी परिस्थितियों में किया है कि, कृत्‍य मृत्यु का कारण बनता है, वह व्यक्ति सदोष हत्या का दोषी होगा, जिसमे हत्या नहीं हुई हो..   " ; और यदि किसी व्यक्ति को ऐसे कृत्य से चोट पहुंचती है, तब "अभियुक्त को कारावास की एक अव‌ध‌ि, वह सात साल तक की हो सकती है या जुर्माना या दोनों के सा‌थ दंडित किया जा सकता है।"

दूसरी ओर, आईपीसी की धारा 324, दूसरे को जानबूझ कर दी गई चोटों का अपराधीकरण करती है और कहती है कि जो कोई भी "स्वेच्छा से गोली चलाने, छुरा या काटने के किसी भी उपकरण के जर‌िए चोट देता है या किसी ऐसे उपकरण, जिसे हथ‌ियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे मौत होने की आंशका हो, उसे कारावास की एक अव‌ध‌ि, वह तीन साल तक की हो सकती है या जुर्माना या दोनों के सा‌थ दंडित किया जा सकता है।"

पीठ, जिसमें जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे, ने कहा, "आईपीसी की धारा 308 के तहत दोष सिद्ध करने के लिए अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि अभियुक्त को हत्या करने का इरादा 'या `ज्ञान' था, जिसका पता वास्तविक चोट और आसपास की परिस्थितियों से लगाया जा सकता है।

धारा 308 आईपीसी के विपरीत, जिसके लिए 'इरादा' या 'ज्ञान' का साबित होना जरूरी है, धारा 324 आईपीसी को आकर्षित करने के लिए यह पर्याप्त होगा कि यदि व्यक्ति किसी व्यक्ति को छुरा या काटने के लिए किसी उपकरण से चोट पहुंचाता है ।

सदोष हत्या के प्रयास और स्वेच्छा से एक तेज धार हथियार से चोट पहुंचाने के बीच अंतर सूक्ष्म और बारीक है। धारा 308 के तहत, चोटें ऐसी होनी चाहिए, जिससे मौत हो सकती हो, जबकि धारा 324 में चोटें किसी के जीवन को खतरे में डाल सकती हैं या नहीं डाल सकती हैं।

मामले के तथ्यों पर कानून लागू करते हुए, पीठ ने देखा कि रिकॉर्ड पर उपलब्‍ध सबूत, आईपीसी की धारा 308 को स्‍थापित करने के लिए कम हैं, हालांकि अभियुक्त आईपीसी की धारा 324 के आशय के तहत, स्वेच्छा से तेज धार वाले हथियार चोट देने का दोषी हैं।

अदालत ने यह भी कहा कि घटना आरोपी के किसी मानसिक अवसाद या आपराधिक प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित नहीं करती है और वह एक गरीब मजदूर प्रतीत होता है, और उसने दस साल से अधिक समय पहले दी गई जमानत की रियायत का दुरुपयोग नहीं किया है।

आंशिक रूप से अपील की अनुमति देते हुए, पीठ ने कहा, "यह ध्यान रखना सामान्य होगा कि न्यायालयों को अपराध की प्रकृति और गंभीरता, अपराध का इरादा सहित विभिन्न प्रासंगिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, न्यायिक तरीके से सजा देनी चाहिए। इन मापदंडों को लागू करते हुए, हमारा मानना है कि अगर अपीलकर्ता की सजा उस अवधि तक कम हो जाती है, जिस अवधि की सजा वह पहले ही काट चुका है तो न्याय का लक्ष्य पूरा हो जाता है।

अन्य निर्णय

बिशन सिंह और अन्य बनाम राज्य (2007) 13 एससीसी 65, यह देखा गया कि, "एक अभियुक्त को धारा 308 आईपीसी के तहत दोषी ठहराने से पहले कि यह आवश्यक है कि यह सुनि‌श्‍चित कर लिया जाए कि उक्त धारा को स्‍थापित करने के लिए आवश्यक तत्व अर्थात्, अपेक्षित इरादा या ज्ञान मौजूद हैं। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि अभियुक्तों की ओर से इस तरह के इरादे या ज्ञान, ‌जिसके कारण हत्या हुई है, को साबित करने की आवश्यकता है।."

"धारा 308 के तहत दंडनीय अपराध आईपीसी इस तरह के इरादे या ज्ञान के साथ और ऐसी परिस्थितियों में एक कार्य को करने के लिए नियत करता है कि यदि उस कार्य के कारण मृत्यु हो जाती है, तो वह दोषी हत्या का दोषी होगा। यह हत्या करने का प्रयास है, जो धारा 308 आईपीसी के तहत दंडनीय है, जबकि सामान्य चोटों के लिए सजा धारा 323, 324, और गंभीर चोटों के लिए धारा 325 और 326 आईपीसी के तहत दंडित किया जा सकता है। गुणात्मक रूप से, ये अपराध अलग हैं।" सुप्रीम कोर्ट में सुनील कुमार बनाम राज्य  में कहा। 


केस टाइटल: रूपचंद @ लाला बनाम स्टेट (एनसीटी) ऑफ दिल्ली

केस नं : क्रिमिनल अपील नंबर। 2204 ऑफ 2010

कोरम: जस्टिस एनवी रमना हृषिकेश रॉय और सूर्यकांत

प्रतिनिधित्व: एडवोकेट रंजीता रोहतगी और एएसजी रूपिंदर सिंह सूरी

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