इस एक्ट में धारा 3 निरोध में रखे जाने का आदेश दिए जाने की शक्ति स्टेट को देती है। इस धारा के अनुसार-
(1) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार
(क) यदि किसी व्यक्ति के संबंध में संतुष्ट है, कि भारत की प्रतिरक्षा की किसी हानिकारक कार्य को रोकने के दृष्टि से जो कि भारत की सुरक्षा वैदेशिक शक्तियों से भारत के संबंध में, या
(ख) यदि किसी भी विदेशी के बारे में इस बात से संतुष्ट हैं कि वह अपनी लगातार उपस्थिति भारत में विनियमित करने की दृष्टि से या भारत से स्वयं को भगाने की व्यवस्था करने की दृष्टि से प्रयत्न कर रहा है, इसलिए यह आवश्यक समझा जाएगा। कि ऐसे व्यक्ति को निरुद्ध करने के लिए आदेश बनाने हेतु निर्देशित करें।
(2) केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार यदि किसी व्यक्ति के संबंध में संतुष्ट है, उसे ऐसे किसी भी हानिकारक कार्य को करने से रोकने की दृष्टि से जो कि लोक व्यवस्था बनाए रखने में बाधक हो या समाज के लिए आवश्यक सेवा और पूर्ति की व्यवस्था बनाए रखने के लिए हानिकरक कार्य कर रहा हो, ऐसे व्यक्ति के निरुद्ध किए जाने हेतु निर्देशित करेगा।
स्पष्टीकरण- इस उपधारा के प्रयोजन हेतु समाज के लिए आवश्यक सेवाओं की पूर्ति की व्यवस्था में हानिकरक कार्य से समाज के लिए आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति व्यवस्था के लिए हानिकारक कार्य करना शामिल नहीं है, जैसा कि चोर बाजारी एवं आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति व्यवस्था अधिनियम, 1980 (1980 का 7) की धारा 3 की उपधारा 1 के स्पष्टीकरण में परिभाषित और र तदनुसार इस अधिनियम के अधीन किसी भी आधार पर कोई भी निरोध आदेश नहीं बनाया जा सकेगा, जबकि ऐसा निरोध आदेश उस अधिनियम के अन्तर्गत बनाया जा सकता है।
(3) यदि किसी क्षेत्र में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पत्र हैं, या होने की संभावना है, तो वहाँ का जिला दंडाधिकारी या एक पुलिस कमिश्नर जिसके कि अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के किसी क्षेत्र में है एवं राज्य सरकार इस बात से सतुष्ट है कि ऐसा करना आवश्यक है, वह एक लिखित आदेश द्वारा ऐसे किसी भी समय के लिए, जो कि आदेश में उल्लिखित किया जावेगा, निर्देश दे सकती है कि अमुक जिला दंडाधिकारी अथवा पुलिस कमिश्नर भी यदि संतुष्ट हो, जैसा कि उपधारा (2) में उल्लिखित किया गया है, उक्त उपधारा के अन्तर्गत प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए ऐसा कर सकता है:
परन्तु प्रतिबन्ध यह है कि राज्य सरकार द्वारा निरोधादेश में उल्लेखित समयावधि प्रथम अवसर पर 3 माह से अधिक नहीं हो सकेगी, लेकिन राज्य सरकार यदि, जैसा कि ऊपर कहा गया है, संतुष्ट है कि ऐसा करना आवश्यक है, उक्त आदेश को समय-समय पर कितने भी समय तक संशोधित कर सकता है, लेकिन एक समय में समयावधि तीन मास से अधिक नहीं होगी।
(4) जब कोई आदेश किसी अधिकारो द्वारा उपधारा (3) के अन्तर्गत बनाया जाता है. तब वह तत्काल राज्य सरकार को, जिसके कि अधीन वह कार्यरत है, उन सभी तथ्यों के साथ रिपोर्ट देगा, जिन आधारों पर निरोधादेश बनाया गया है एवं अन्य जानकारी, जो कि उसकी राय में प्रकरण पर असरकारक है एवं ऐसा कोई भी आदेश 12 दिन के पश्चात् प्रभावी नहीं होगा, जब तक कि उसके बनाए जाने के पश्चात् इस बीच राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित नहीं कर दिया गया हो।
परन्तु प्रतिबन्ध यह है कि जहाँ धारा 8 के अधीन निरोधादेश बनाने वाले अधिकारी के निरोध के आधारों को निरोध दिनांक से पांच दिन के पश्चात् लेकिन दस दिन के पूर्व, यह उपधारा के संशोधन के अधीन लागू नहीं होगी कि शब्द "बारह दिन" के स्थान पर शब्द "पन्द्रह दिन" प्रतिस्थापित किया जावेगा।
(5) जबकि एक आदेश बनाया गया है या इस उपधारा के अधीन राज्य सरकार द्वारा | अनुमोदित कर दिया गया है, राज्य सरकार सात दिन के भीतर केन्द्रीय सरकार को इस तथ्य की उन सभी आधारों की जानकारी के तथ्य देगा, जिस पर कि निरोधादेश बनाया गया है एवं अन्य दूसरी जानकारी, जो कि राज्य सरकार की राय में उक्त आदेश की आवश्यकता पर प्रभाव डालती है।
यह इस धारा का मूल स्वरूप था जो अधिनियम में प्रस्तुत किया गया है। केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा भारत की प्रतिरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाले काम एवं उससे जुड़े व्यक्तियों के संबंध में संतुष्टि हो जाने पर निवारक निरोध आदेश बनाया जायेगा, इसी तरह भारत से मैत्री संबंध रखने वाली विदेशीय शक्तियों के प्रतिकूल आचरण एवं व्यवहार करने वाले व्यक्तियों को निरोधित किया जा सकेगा। किसी विदेशी व्यक्ति द्वारा भारत में आपराधिक कार्य करने के लिए निरंतर उपस्थित रहने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई अथवा वह भारत देश से बाहर जाने के लिए प्रयत्नशील है।
लोक व्यवस्था को बनाए रखने में बाधा उत्पन्न करने वाले व्यक्तियों को ही नजरबंद किया जायेगा। समाज के लिए आवश्यक सेवा और पूर्ति की व्यवस्था बनाए रखने में बाधा उत्पन्न करने वाले व्यक्तियों को नजरबंद किया जा सकेगा। इसके अंतर्गत कालाबाजारी एवं आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में बाधा डालने जैसे प्रमुख विषय लिए जा सकते हैं।
भारत की संप्रभुत्ता, उसमें निवास करने, धन-सम्पदा एवं आर्थिक प्रगति को किसी क्षति पहुँचाने से रोकने के लिए किसी व्यक्ति द्वारा राष्ट्र की सीमा एवं उसके भीतर प्रवेश कर के अंतर्गत रहते हुए कोई क्षति पहुंचाई जाती है या इस हेतु अपराध की ओर अग्रसर है अथवा ऐसे व्यक्ति द्वारा भारत के मित्र राष्ट्रों को किसी तरह क्षति पहुंचाने का कोई कार्य किया जाता है या इस हेतु प्रयासरत् है, ऐसे व्यक्ति को उक्त अधिनियम के अधीन निरुद्ध किया जा सकेगा। सम्पूर्ण राष्ट्र अंतर्गत वे सभी व्यक्ति सम्मिलित हैं, जो राष्ट्र के लिए कर्त्तव्यनिष्ठ हैं, उसके द्वारा संरक्षित है औ उसके कार्य हेतु समर्पित व सेवारत् है।
भारत में निवास करने वाले विदेशी राजदूत, पर्यटक एवं अन्य सभी व्यक्ति, राष्ट्र की परिधि में निवास करने वाले माने जायेंगे। राज्य की लोक संपत्ति के उसके नागरिकों की निजी संपत्ति, सार्वजनिक उपयोग में आने वाली समस्त इमारतें, संरचना, ऐतिहासिक स्मारक, धार्मिक स्थल, तीर्थ, जल स्रोत, समुद्री सीमाएँ द्वीप, वायु सीमाएँ एवं आवागमन के मार्ग को क्षति कारित किया जाना राष्ट्र की प्रतिरक्षा पर प्रहार किया जाना मन जायेगा।
भारत के निर्वाचित प्रतिनिधि, संसद, लोक सदन एवं लोकतांत्रिक संरचना के किसी आयाम को क्षति कारित किया जाना इसके अधीन हानि पहुँचाना माना जायेगा। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अध्याय 6 के अंतर्गत राज्य के विरुद्ध अपराध के विषय में धारा 121 से 140 के अंतर्गत भारत की प्रतिरक्षा को क्षतिकारित किये जाने के लिए किए जाने वाले अपराधों को दण्डनीय बनाया गया है।
अब्दुल रज्जाक नन्हे खाँ विरुद्ध पुलिस आयुक्त के मामले में कहा गया है कि व्यक्ति के कृत्य के आधार पर यह सुनिश्चित किया जायेगा कि उसके द्वारा लोक व्यवस्था को भंग किया गया अथवा केवल विधि एवं व्यवस्था का प्रकरण है।
अब्दुल कय्यूम उर्फ बाबू पंडित उर्फ बाबू कारेहा एवं अन्य विरुद्ध भारत संघ एवं अन्य, 2010 के मामले में जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिनांक 11-11-2009 को निरोधादेश आदेश पारित किया गया। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 489-ब और 489-स के अन्तर्गत प्रार्थी को अभिरक्षा में लिया गया। उसके आधिपत्य से नकली नोट भारी मात्रा में बरामद किए गए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया कि प्रार्थी आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति में विघ्न उत्पन्न करना चाहता है। उसका जीवन समाज और व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने का है। उसे निरुद्ध किया जाना तर्कसंगत है। याचिका खारिज की गई।