भारतीय साक्ष्य अधिनियम में एडमिशन का कॉन्सेप्ट

Update: 2024-10-31 07:12 GMT

नए लागू हुए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के अंतर्गत एडमिशन को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। अधिनियम की धारा 15 के अनुसार- एडमिशन वह मौखिक या दस्तावेजी या इलेक्ट्रॉनिक रूप में अंतर्विष्ट कथन है, जो किसी विवाधक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में कोई अनुमान इंगित करता है और जो ऐसे व्यक्तियों में से किसी के द्वारा ऐसी परिस्थितियों में किया गया है जो एतस्मिन पश्चात वर्णित है।

इस धारा में तीन बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। पहली यह धारा एडमिशन की परिभाषा देती है, दूसरी धारा कहती है कि एडमिशन तभी सुसंगत होगा जब अधिनियम में बताए गए व्यक्तियों द्वारा की गई हो, तीसरी एडमिशन केवल उन्हीं परिस्थितियों में सुसंगत होगा जो अधिनियम में बताया गया है।

एडमिशन के कथनों के माध्यम से किसी विवाधक तथ्यों या सुसंगत तथ्यों के अस्तित्व का अनुमान लगाया जाता है। इसलिए साक्ष्य विधि में एडमिशन को महत्व दिया गया है। एडमिशन एक अत्यंत मजबूत साक्ष्य होता है, अन्य साक्ष्यों के मुकाबले एडमिशन का साक्ष्य अधिक शक्तिशाली होता है।

आवश्यक नहीं की कोई एडमिशन तभी सुसंगत होगा जब वह पूर्ण रूप से दायित्व को स्वीकार करें, केवल इतना ही पर्याप्त होगा की किसी ऐसे तथ्य को स्वीकार किया गया है जिससे दायित्व का अनुमान लगता है। यदि व्यक्ति ने किसी ऐसे तथ्य को स्वीकार कर लिया है जो उसके दायित्व का साक्ष्य देती है तो यह सुसंगत होगी।

चीख़म बनाम कोटेश्वर राव के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति का कोई अधिकार उसी के द्वारा किये गए एडमिशन के आधार पर छीनने के लिए यह आवश्यक है कि एडमिशन स्पष्ट तथा अंतिम हो उसमें कोई शक या अनिश्चितता वाली बात नहीं होना चाहिए।

इस मामले के माध्यम से भारत का सुप्रीम कोर्ट यह बताना चाहता है कि यदि किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किया गया एडमिशन के माध्यम से किसी अधिकार से वंचित करना है तो ऐसी एडमिशन स्पष्ट एवं साफ साफ होना चाहिए।

एडमिशन अंशों में होता है तथा इसी एडमिशन के माध्यम से किसी एक ही संव्यवहार के अलग-अलग तथ्यों को साबित किया जा सकता है।

जैसे कि किसी स्थान पर लाश मिलने के परिणाम स्वरूप किसी व्यक्ति को हत्या के अभियोजन में आरोपी बनाया गया है और आरोपी व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि जिस समय व्यक्ति की हत्या हुई थी उस समय वह उस ही स्थान पर था तो भले ही यह एडमिशन यह साबित नहीं कर रहा है की हत्या आरोपी द्वारा ही की गई है परंतु यह अवश्य साबित कर रही है की आरोपी व्यक्ति हत्या के समय जिस स्थान से लाश मिली है उस स्थान पर उपस्थित था।

बृजमोहन बनाम अमरनाथ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट को एडमिशन के कथन के अंदर बाहर दोनों ओर से जांच कर लेनी चाहिए,और किसी व्यक्ति को उसके कथनों से बाध्य करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि वह व्यापक तथा स्पष्ट है।

एडमिशन के कारण किसी तथ्य के सुसंगत होने पर सबूत आवश्यक नहीं रह जाता है।यदि कुछ तथ्यों को एडमिशन मिल गया है तो ऐसे तथ्यों का सबूत देने की आवश्यकता नहीं रहती है। जिस व्यक्ति द्वारा एडमिशन किया जाता है उसे अपनी बात को साबित करने के लिए कोई सबूत देने की आवश्यकता नहीं होती है जैसे यदि कोई भरण पोषण के लिए मुकदमा लाया जाता है यह मुकदमा अगर पत्नी द्वारा लाया जाता है, पत्नी किसी व्यक्ति को अपना पति बता रही है यदि वाद पत्र का जवाब देते हुए व्यक्ति जिस पर वाद लाया गया है वह वाद लाने वाली स्त्री को अपनी पत्नी मान लेता है तो या एडमिशन है तथा इस एडमिशन का साक्ष्य देने की आवश्यकता नहीं होगी।

एडमिशन उसे करने वाले व्यक्ति के हित के विपरीत होती है-

एडमिशन के संदर्भ में यह माना गया है कि कोई भी एडमिशन उसे करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध होता है। एडमिशन उसे करने वाले व्यक्ति के हित के विरुद्ध ही जाता है, जो व्यक्ति ऐसा एडमिशन कर रहा है। लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि कोई भी एडमिशन सदैव उसे करने वाले व्यक्ति के हित के विरुद्ध ही जाए। कभी-कभी एडमिशन केवल किसी विवाधक या सुसंगत तथ्य के अनुमान के लिए ही होता है। यह इस एडमिशन को करने वाले व्यक्ति के हित के विपरित नहीं जाता है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत एडमिशन को ऐसा ही माना गया है। अधिनियम के अंतर्गत एडमिशन को केवल इतना माना गया है कि यह एडमिशन केवल विवाधक एवं सुसंगत तथ्यों के अनुमान बताता है उनके अस्तित्व का निर्धारण करता है।

एडमिशन के लिए सत्य की अवधारणा की जा सकती है-

यदि कोई पक्षकार अपने हित के विरुद्ध कोई कथन कर रहा है तो यह उपधारणा की जा सकती है कि वह कथन सत्य ही होगा, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने बारे में किए गए ऐसे कथन को झूठ नहीं कहेगा,जो उसके हित के विरुद्ध हो इसलिए यह एडमिशन का तत्व माना जा सकता है। एडमिशन में सत्य की अवधारणा की जा सकती है।

न्याय निर्णय के माध्यम से एडमिशन के प्रकारों को समझा जा सकता है। एडमिशन कितने प्रकार का हो सकता है यह अलग-अलग न्याय निर्णय में समझा गया है।

जो एडमिशन न्यायालय में की गयी कार्यवाही के साथ किया जाता है उसे प्रारूपिक एडमिशन या न्यायिक एडमिशन कहते है। जो एडमिशन स्पष्ट रूप से कार्यवाही के आरंभ में किया जाता है उन्हें प्रारूपिक या प्रत्यक्ष एडमिशन कहते है ताकि उन्हें ऐसे इस एडमिशन से भिन्न रखा जा सके जो औपचारिक तथा आकस्मिक रूप से हो जाता है, जिन्हें गवाहों की सहायता से साबित करना पड़ता है।

नगीनदास रामदास बनाम दलपतराम इच्छाराम के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने प्रारूपिक एडमिशन के महत्व को समझा है तथा प्रारूपिक एडमिशन के संदर्भ में कहा है कि यह एक मजबूत साक्ष्य होता है तथा ऐसे किसी साक्ष्य को साबित किए जाने की आवश्यकता नहीं होती है यह न्यायालय के समक्ष की जाती है।

ऐसी एडमिशन यदि सही और स्पष्ट हो तो तथ्यों का सबसे अच्छा सबूत होता है। ऐसा एडमिशन जो पक्षकारों ने अपने वाद में किया है उसने न्यायिक एडमिशन कहते है जो धारा 53 के अंतर्गत है तथा जिसे पक्षकारों तथा उनके अभिकर्ताओं ने सुनवाई में किया है। ऐसा एडमिशन दूसरा स्थान रखता है जो न्यायालय के बाहर होता है और गवाहों द्वारा साबित होती है, प्रथम श्रेणी की एडमिशन करने वाले पक्षकार पर एडमिशन पूर्ण रूप से बाध्य होता है उनके सबूत का अभित्याजन हो जाता है पक्षकारों के अधिकारों की बुनियाद बन सकती है।

अनौपचारिक एडमिशन जीवन या कारोबार के साधारण वार्तालाप के क्रम में हो सकता है। ऐसा एडमिशन लिखित हो सकता है या मौखिक। लिखित एडमिशन पत्र व्यवहार के दौरान कारोबार की पुस्तकों में पासबुक आदि में हो सकता है।

स्लेटलेरी बनाम पूले का मामला जिसे कारण सिंह बनाम स्टेट ऑफ जम्मू एंड कश्मीर के मामले में मान्यता दी गयी है यह कहा गया है कि पति या पत्नी का प्रत्येक ऐसा कथन चाहे लिखित हो या मौखिक जो किसी पक्षकार ने वाद के तथ्यों के बारे में किया है, एडमिशन बन जाता है। यदि वह किसी दस्तावेज द्वारा बाध्य है और दस्तावेज की विषय वस्तु के बारे में कोई बात कहता है वह उसके के विरुद्ध साक्ष्य होगा चाहे दस्तावेज स्टांप पर ना होने के कारण कोर्ट में प्रस्तुत ना किया जा सके।

मामले प्रतिवादी ने मौखिक कथन के द्वारा यह मान लिया था कि उसने उतना ऋण लिया था जितना की दस्तावेज में लिखा हुआ था या उसके विरुद्ध साक्ष्य में कबूल हुआ।

हेम चंद्र गुप्ता बनाम ओम प्रकाश गुप्ता एआईआर 1987 कोलकाता 69 के मामले में जिस व्यक्ति ने पारिवारिक बंटवारे के विलय पर हस्ताक्षर किए थे उसके विरुद्ध यह एडमिशन मान लिया क्योंकि सभी व्यक्तियों द्वारा ऐसे किसी भी लेख पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे।

औपचारिक एडमिशन का कथन हम किसी भी व्यक्ति के समक्ष कर सकते है, यह कथन किसी पति और पत्नी के बीच हुए संवाद के आधार पर भी हो सकता है। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के शब्दों में हालांकि किसी भूतपूर्व कथन में अपने ही पक्ष में की गयी कोई बात कोई साक्ष्य नहीं होती है परंतु कोई ऐसा भूतपूर्व कथन जो कथन करता है के हित के विरुद्ध हो वह एडमिशन होगा और साक्ष्य के रूप में सुसंगत होगा।

कोई एडमिशन किसी परिस्थिति में आचरण के द्वारा भी हो सकता है। इस संदर्भ में इंग्लिश लॉ का एक महत्वपूर्ण मामला है। इस मामले को मोएबिलिटी बनाम लंदन बाथम ओवर रेलवे का मामला कहा जाता है। इस मामले में व्यक्तिगत क्षति प्राप्त करने हेतु एक वाद रेलवे पर लगाया गया था।

इस वाद में वाद लाने वाला व्यक्ति कुछ ऐसे व्यक्तियों को तलाश रहा था जो दुर्घटना के समय वहां उपस्थित नहीं थे। तलाश कर मुकदमे में साक्षी बनाना चाहता था जबकि व्यक्ति स्थान पर उपस्थित नहीं थे, वाद लाने वाले व्यक्ति का यह आचरण न्यायालय में साबित कर दिया गया तथा आचरण के द्वारा एडमिशन माना गया तथा वाद को सत्यता के परे माना गया।

किसी भी विवाद में व्यक्ति के आचरण कुछ ऐसे होते है जिससे बहुत सी बातों का साक्ष्य मिलता है तथा जिसका एडमिशन माना जा सकता है।

Tags:    

Similar News