सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 7 वादपत्र है। वास्तव में आदेश 6,7,8 यह तीनों ही अभिवचन से संबंधित हैं। पिछले आलेखों में आदेश 6 पर अध्ययन किया गया है जहां अभिवचन के सिद्धांत दिए गए हैं जिनका पालन वादी एवं प्रतिवादी दोनों को ही करना होता है। आदेश 7 में यह बताया गया है कि वादपत्र किस प्रकार से होगा। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 7 के नियम 1 पर चर्चा की जा रही है।
नियम-1 वादपत्र में अन्तर्विष्ट की जाने वाली विशिष्टियां - वादपत्र में निम्नलिखित विशिष्टियां होंगी-
(क) उस न्यायालय का नाम जिसमें वाद लाया गया है;
(ख) वादी का नाम, वर्णन और निवास-स्थान;
(ग) जहां तक अभिनिश्चित किए जा सकें, प्रतिवादी का नाम, वर्णन और निवास स्थान;
(घ) जहां वादी या प्रतिवादी अवयस्क या विकृत-चित्त व्यक्ति है वहां उस भाव का कथन;
(ङ) वे तथ्य जिनसे वाद-हेतुक गठित है और वह कब पैदा हुआ;
(च) यह दर्शित करने वाले तथ्य कि न्यायालय को अधिकारिता है;
(छ) वह अनुतोष जिसका वादी दावा करता है;
(ज) जहां वादी ने कोई मुजरा अनुज्ञात किया है या अपने दावे का कोई भाग त्याग दिया है वहां ऐसी अनुज्ञात की गई या त्यागी गई रकम; तथा
(झ) अधिकारिता के और न्यायालय-फीस के प्रयोजनों के लिए वाद की विषय-वस्तु के मूल्य का ऐसा कथन उस मामले में किया जा सकता है।
वादी का अभिवचन "वादपत्र" कहलाता है। यह किसी वाद में प्रथम अभिवचन होता है, जिसे न्यायालय में प्रस्तुत करके वाद संस्थित किया जाता है। संहिता की धारा 26 के अनुसार हर वाद वादपत्र को उपस्थित (प्रस्तुत) करके संस्थित किया जायेगा। इस सम्बन्धी नियम आदेश 4 के नियम 1 में इस प्रकार दिये गये हैं-
2. वादों का संस्थित किया जाना (आदेश 4, नियम 1]
1. वादपत्र द्वारा वाद प्रारम्भ होगा-
(1) हर वाद न्यायालय को या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त अधिकारी को दो प्रतियों में वादपत्र उपस्थित (प्रस्तुत) करके संस्थित किया जाएगा किसी (2) हर वादपत्र आदेश 6 और 7 में अन्तर्विष्ट नियमों का वहाँ तक अनुपालन करेगा जहाँ तक वे लागू किए जा सकते हैं।
(3) वादपत्र तब तक सम्यक् रूप से संस्थित किया गया नहीं समझा जाएगा, जब तक (1) व (2) में विनिर्दिष्ट अध्यपेक्षाओं का अनुपालन नहीं करता है। इस प्रकार वादपत्र के प्रारूपण में आदेश 6 व 7 में दिये गये नियमों का यथासम्भव पालन करना आवश्यक है। अतः इन नियमों को ध्यान में रखना चाहिये। इसके साथ धारा 26 (2) के अनुसार वादपत्र के तथ्यों को साचित करने के लिए एक शपथ पत्र संलग्न होगा। वादपत्र को एक निजी ज्ञापन कहा गया है, जिसमें वादी अपने वादहेतुक को अंकित करता है और एक कार्यवाही के लिये लिखित में उसे प्रदर्शित करता है। इस प्रकार वादपत्र वह आधारभूत प्रलेख है, जिस पर वादी अपने वाद का महल खड़ा करता है। अत: उसकी नींव जितनी मजबूत होगी, महल भी उतना ही मजबूत होगा। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि वादपत्र का प्रारूपण सावधानी से किया जाना चाहिये, ताकि किसी त्रुटि के कारण आगे कोई हानि न उठानी पड़े।
वादपत्र के स्वरूप को प्रकट करता है। विद्वानों ने वादपत्र के तीन मुख्य अंग बताये हैं-
(1) शीर्षक (Heading or Title),
(2) कलेवर या मुख्य भाग (Body of Plaint) तथा
(3) अनुतोष की प्रार्थना (Prayer for Relief)
इनके अतिरिक्त आदेश 6 के नियम 14 व 15 के अनुसार प्रत्येक वादपत्र के अन्त में हस्ताक्षर व सत्यापन किये जावेंगे तथा आवश्यक उपाबन्ध या संलग्नक भी सम्मिलित किये जावेंगे।
इसी प्रकार वादपत्र के प्रारूप में आदेश 7 के नियम 1 में वर्णित विशिष्टियों के अलावा आदेश 7 के नियम 2 से 8 तथा आदेश 6 के नियम 2 में बताई गई बातों का भी ध्यान रखना होगा।
वादपत्र का स्वरूप व प्रारूपण
आदेश 7 का नियम 1 वादपत्र में दी जाने वाली विशिष्टियों की एक सूची खण्ड (क) से (झ) में प्रस्तुत करता है। इन सभी खंडों को सम्मिलित करते हुए आगे वादपत्र के प्रारूपण के बारे में विवेचन किया जा रहा है। वादपत्र के प्रारूपण की सुविधा के लिये हमने वादपत्र को पांच भागों में विभाजित कर उसका सोलह चरणों में आगे वर्णन किया है। विधिक सिद्धान्तों के साथ-साथ हमने प्रारूपण के लिये दृष्टान्त (उदाहरण) भी दिये हैं।
वादपत्र के इस स्वरूप की एक झलक हमें निम्नांकित तालिका से प्राप्त होती है-
1. न्यायालय का नाम व स्थान [आदेश 7, नियम 1(क)]
2. वाद संख्या तथा वर्ष
3. वाद-शीर्ष या पक्षकारों के नाम [आदेश 7, नियम 1 (ख), (ग)]
4. वाद का विषय
5 . प्रारम्भिक निवेदन
6. भूमिका (उत्प्रेरणा की सामग्री)
7. वादहेतुक गठित करने वाले तथ्य [आदेश 7, नियम 1 (ङ) तथा आदेश 6 नियम 2]
8. अन्य कमन व विशिष्टियां [आदेश 6, नियम 3 से 11 तथा आदेश 7, नियम 2 से 5]
9.नोटिस तथा अन्य पुरोभाव्य शर्तें [आदेश 6, नियम 6 तथा 11]
10. वादहेतुक की दिनांक [आदेश 7, नियम । (ङ) ]
न्यायालय की अधिकारिता के तथ्य [आदेश 7, नियम 1 (च)]
11. परिसीमा से छूट के कथन [आदेश 7, नियम 6]
12. वाद मूल्यांकन और न्यायालय शुल्क सम्बन्धी कथन [आदेश 7, नियम । (झ)]
13. वादी की प्रार्थना- अनुतोष का कथन (आदेश 7, नियम । (छ) 7 तथा 8] सत्यापन खण्ड
14. हस्ताक्षर [आदेश 6, नियम 14 से 15]
15. सत्यापन
वादपत्र के भी दो भाग होते हैं-
(क) तात्विक भाग और (ख) औपचारिक भाग।
(क) तात्विक भाग के निम्नलिखित चार चरण होते हैं-
प्रारम्भिक निवेदन- इस भाग का आरम्भ निम्न प्रकार के किसी एक वाक्य से किया जाता है-
वादी का सविनय निवेदन इस प्रकार है कि (या)
वादी निम्नलिखित निवेदन करता है कि (या)
वादी का निवेदन इस प्रकार है कि
भूमिका या उत्प्रेरणा की सामग्री - पक्षकारों का संक्षिप्त परिचय तथा सम्बन्ध बताते हुए वाद की घटना को भूमिका के रूप में कुछ कहा जा सकता है। पर यह विस्तृत व फालतू बातों से भरा नहीं होना चाहिए, क्योंकि ये बातें तात्विक तथ्य नहीं होती। कई बार पक्षकारों का सम्बन्ध स्पष्ट करने के लिए वंशावली देनी आवश्यक हो, तो उसे आरम्भ में दिया जा सकता है, परन्तु विस्तार अधिक हो, तो वंशावली वाद पत्र के अन्त में उपाबन्ध (annexure) के रूप में दी जा सकती है।
पक्षकारों की प्रास्थिति का कथन करते हुए एक वाद पत्र में वादी का परिचय दिया जाता है, जहाँ ऐसा करना आवश्यक हो, जैसे अवयस्क या विकृत चित्त व्यक्ति के बारे में कथन। [आदेश 7, नियम 1 (घ)]
जैसे उदाहरण- (.......) वादी एक अवयस्क/विकृत चित्त व्यक्ति है तथा प्रतिवादी सं. 2 व 3 भी अवयस्क/विकृत्त चित्त हैं (वाद मित्र/वाद संरक्षक की नियुक्ति के लिए आदेश 32, नियम 3 के अनुसार अलग से आवेदन पत्र प्रस्तुत है)