सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 19: आदेश 6 नियम 4 के तत्व

Update: 2023-12-05 04:15 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 6 अभिवचन से संबंधित है जहां अभिवचन के साधारण नियम दिए गए हैं। इससे पूर्व के आलेख में आदेश 6 के नियम 4 पर सामान्य रूप से प्रावधान बताए गए थे, इस आलेख में नियम 4 पर विस्तार से चर्चा की जा रही है जिससे नियम के वास्तविक अर्थ को समझा जा सके।

नियम 4 की अपेक्षायें-

अभिवचन का यह चतुर्भ नियम है कि "हालांकि अभिवचन का संक्षित कथन होना चाहिये, पर साथ ही सुनिश्चित भी। अतः यदि आदेश 6 के नियम 4 में वर्णित तत्वों में से कोई एक या अधिक पर निर्भर किया जाता है, तो उनमें से प्रत्येक को अलग-अलग अभिवचनित करना होगा और इस प्रयोजन के लिये उसके सभी आवश्यक विवरण (विशिष्टियों) को अभिवचन में सम्मिलित करना आवश्यक होगा।

उक्त नियम की अपेक्षाओं का इस प्रकार विश्लेषण किया जा सकता है-

(1) उन सभी मामलों में जिनमें अभिवचन करने वाला पक्षकार यदि (1) दुर्व्यपदेशन (2) कपट (3) न्यास भंग (4) जान बूझकर व्यतिक्रम (5) चूक (6) असम्यक् असर (अनुचित प्रभाव या दबाव) के अभिवाक (तर्क) पर निर्भर करता है, तो उसके अभिवचन में विशिष्टियां (यदि आवश्यक हो तो तारीखों और मदों के सहित) कथित की जाएंगी।

(2) अन्य सभी मामलों में, जिसमें नियम 3 में वर्णित और संहिता की प्रथम अनुसूची के परिशिष्ट "क" ने दिये गये वादपत्र सं. 1 से 49 तथा लिखित कथन (प्रतिवाद पत्र) के प्रतिवाद पत्र सं. 1 से 16 के प्ररूपों में उदाहरण स्वरूप विशिष्टियां बताई गई हैं, उनके अलावा जो विशिष्टियां आवश्यक हो, वे विशिष्टियां कथित की जायेंगी।

इस प्रकार ऊपर (1) में बताये गये (1) से (5) के तर्क या कथन के तात्विक तथ्य के साथ-साथ उसकी विशिष्टियां देना आवश्यक होगा और अन्य मामलों में भी जो विशिष्टियां आवश्यक हों, वे दी जायेंगी और प्ररूपों में दिये गये उदाहरणों के अलावा हो सकेंगी। इस प्रकार विशिष्टियां, जहां मामले को स्पष्ट करने के लिये आवश्यक हो, अवश्य दी जायेंगी।

जहां वादपत्र में ऐसे पर्याप्त कथन हो, जो उस वाद के दावे को यथार्थ (सही) रूप में बताते हो, तो किसी विशिष्टी के वर्णन का लोप होने से या गलत होने से ही सम्पूर्ण वाद को असफल नहीं होना चाहिये। जहां संव्यवहार स्वयं इतना स्पष्ट है कि वह एक सुनियोजित षड्यन्त्र का आन्तरिक प्रमाण देता हो, तो उस षड्यन्त्र की विशिष्ट्रियों का लोप जिनसे कपट प्रकट होता हो, इस नियम का उल्लंघन नहीं करता अर्थात् जहां अभिवचन के तात्विक तथ्यों में ही स्पष्ट रूप से कपट पूर्ण षड्यन्त्र प्रकट होता हो, तो अलग से विशिष्ट्रियां नहीं देना नियम विरुद्ध नहीं है।

इस नियम के द्वारा यह आज्ञापक (आदेशात्मक/अनिवार्य) प्रक्रिया निर्धारित की गई है कि जब कोई वाद कपट, अनुचित दबाव (असम्यकू असर), न्यासभंग आदि पर आधारित हो, तो उसमें दिनांक, संख्या या सम्पत्ति की पहचान सम्बन्धी विशिष्ट्रियां या सम्पूर्ण विवरण स्पष्ट रूप से अभिवचन में देना आवश्यक होगा। इस नियम का उद्देश्य यही है कि पक्षकारों के बीच वादकरण (मुकदमे बाजी) बहुत कम हो। अस्पष्ट और सामान्य कथन पर्याप्त नहीं माने जाते, उनकी विशिक्षियों (विशेष विवरण) देनी होगी।

ऐसी विशिष्टियां न देने पर केवल इसी कारण से वादपत्र को खारिज नहीं किया जा सकता और न्यायालय ऐसी विशिष्टियां देने के लिये आदेश करेगा। विशिष्टियों के अभाव में आदेश 6 के नियम 16 के अधीन दावे या प्रतिरक्षा को काटने का आदेश देना उच्चतम न्यायालय ने न्यायोचित नहीं माना है। इसके लिये न्यायालय को विशिष्टियां देने का आदेश देना चाहिये या त्रुटिपूर्ण अभिवचन के संशोधन करने की इजाजत देनी चाहिये।

(3) अवचार सम्बन्धी अधिकथन कपट, न्यायभंग, जानबूझकर व्यतिक्रम (चूक), असम्यक्, असर, उपेक्षा (लापरवाही), अनैतिकता आदि के अधिकथन या आरोप अवचार की श्रेणी में आते हैं। ऐसे अवचारों के सम्बन्ध में आदेश 6 के नियन 4 के अधीन आवश्यक विशिष्टियां या पूर्ण विवरण अभिवचन में सम्मिलित करना आवश्यक है, ताकि वाद में आरोप लगाने वाला पक्षकार उस आरोप को मनमाना स्वरूप न दे सके और विपक्षी को विस्मय का शिकार न होना पड़े। प्रिवी कोंसिल ने समस्त न्यायाधीशों का यह कर्तव्य बताया है कि वे इस प्रकार के अवचार के अभिवचन के मामलों में पक्षकार को उस आरोप के बारे में सुनिश्चित तथा विशिष्ट विवरण देने का आदेश दे, चाहे विपक्षी ने इस बारे में कोई आपत्ति नहीं की हो। इससे ऐसे आरोपों का क्षेत्र सीमित हो जायेगा और पक्षकार निश्चित रूप से उस सीमा से बाहर नहीं जा सकेंगे।

इसी प्रकार अन्य प्रकार के अवचारों के मामलों में भी कपट की तरह पूरी विशिष्टियां देनी होगी-

(1) न्यासभंग के मामले में विपक्षी किस प्रकार न्यासी बना और उस न्यास की क्या शर्तें थी और उसने कौन-कौन सी शर्तों का किसी प्रकार भंग किया- ये सब विशिष्टियां देनी होगी।

(2) उपेक्षा (लापरवाही) जहां कर्तव्य पालन में चूक के रूप में हो, तो उसकी भी विशिष्टियां देनी होगी और धारा 40 सिविल प्रक्रिया संहिता के नोटिस में भी उसका पूरा विवरण देना होगा।

(3) दुर्भावना या सद्भावना का अभाव - साधारणतया सरकारी अधिकारियों या सार्वजनिक पदाधिकारियों पर उनके द्वारा की गई कार्यवाही के विरुद्ध 'दुर्भावनायें या सद्‌भाव से नहीं करने का सामान्य आरोप लगाया जाता है। इसे पर्याप्त नहीं माना जाता। इसके लिये पूर्ण विशिष्टियां देनी होगी और उन्हें प्रमाणित करने का भारी भार आरोप लगाने वाले पक्षकार पर होगा।

(4) बेदखली के वाद में मकान मालिक द्वारा उचित और सा‌द्भाविक आवश्यकता का कथन - केवल इस पर जोर देना ही पर्याप्त नहीं है, उस आवश्यकता का स्वरूप वादी को प्रकट करना होगा।

कपट का अभिवचन करना- कपट के बारे में चाहे सिविल मामला हो, या दाण्डिक (फौजदारी), यह समान रूप से सत्य है कि केवल संशय या संदेह इसको सिद्ध करने के लिये पर्याप्त नहीं है। दाण्डिक मामलों की तरह सिविल मामलों में भी कपट का सबूत आवश्यक है। कपट करने की बात युक्ति-युक्त संदेह से परे साबित की जानी चाहिये।

इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि कपट का अभिवचन सावधानी से किया जाए। इंग्लैंड में कपट के बारे में पूरा विवरण अपने पक्षकार से लिखित में प्राप्त करके ही वकील आगे बढ़ता है, परन्तु भारत में कपट आदि के आरोप बिना किसी गम्भीरता के अभिवचन में कपट से, बेईमानी से, चालाकी से, गलत रूप से" आदि शब्दों के प्रयोग द्वारा जोड़ दिये जाते हैं। जब तक यह साबित नहीं कर दिया जाय कि उस व्यक्ति का "दुष्ट मानस" था, कपट का आरोप साबित नहीं किया जा सकता।

कपट के आवश्यक तत्व, जो संविदा अधिनियम की धारा 17 में बताये गये हैं, सावधानी से पढ़कर पक्षकार की कहानी से वे बनते हैं या नहीं यह पता लगाना वकील का कार्य है। जब स्पष्ट रूप से कपट का आरोप बन सकता हो और उसे साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सकता हो, तभी उसका विस्तार पूर्वक अभिवचन करना चाहिये और घटनाओं की तारीखें, स्थान, कपट का स्वरूप तथा व्यक्तियों के नाम, जहां आवश्यक हो विशिष्टियों के रूप में देने आवश्यक हैं।

जहां कपट का प्रकथन हो, वहां उस पर आधारित असम्यक असर का आरोप अलग से लगाना अनावश्यक माना गया है। इसी प्रकार संविदा अधिनियम की धारा 18 में दुर्व्यपदेशन और धारा 16 में असम्यक असर का वर्णन किया गया है। उनमें दिये गये लक्षण या शर्तें पढ़ कर ही आगे बढ़ना चाहिये।

कपट, असम्यक असर और प्रपीड़न के कथन हालांकि कुछ मामलों में एक दूसरे से जुड़ जाते हैं, फिर भी वे विपि की दृष्टि में अलग-अलग श्रेणियों में हैं और उनको अलग से अभिवचन किया जाना होगा।

कपट, असम्यक् असर और प्रपीड़न के मामलों में अभिवचन करने वाले पक्षकारों को सम्पूर्ण विशिष्टियां (विवरण) देनी होगी और उस मामले को दी गई विशिष्टियां पर ही विनिश्चयत किया जायेगा। साक्ष्य में उनसे नहीं हटा जा सकेगा। इनके साधारण अभिकथन तो न्यायालय द्वारा ध्यान देने योग्य कपट का कथन होने से भी अपर्यान हैं, चाहे भाषा कितनी ही सबल हो जिसके द्वारा इनको प्रस्तुत किया गया है। यही बात असम्यक असर व प्रपीड़न पर लागू होती है।

प्रपीड़न के मामले में जब न्यायालय को यह पता लगाने के लिये कहा जाता है कि किसी व्यक्ति को मार डालने की धमकी दी गई है, तो ये विशिष्ट्रियां देना आवश्यक है- धमकी का स्वरूप, परिस्थितियां, तारीख, समय और स्थान तथा धमकी देने वाले व्यक्ति का नाम। इस प्रकार की विशिष्टियों के अभाव में किसी उचित निष्कर्ष (नतीजे) पर पहुंचना असंभव होगा। इसी प्रकार उस तथाकथित विबाध्यता की विशिष्टियों के अभाव में उस पर विचार नहीं किया जा सकता।

वादी ने अपने वादपत्र में निश्चित रूप से यह अभिवचन नहीं किया कि दस्तावेज में अनाधिकृत परिवर्तन (फेर-फार) कब, कैसे और किसके द्वारा हुआ? इस प्रकार दस्तावेज में अनाधिकृत फेरफार करने का कोई अधिकथन (आरोप) प्रतिवादी के विरुद्ध नहीं लगाया गया था। अपीलार्थी ने न्यायालय में प्रार्थना की कि उस दस्तावेज को पढ़कर मालूम कर ले कि इसमें एक शून्य (सिफर) बढ़ाया गया था, इस तर्क को स्वीकार करना सभी नियमों और सिद्धान्तों के विरुद्ध होगा। एक दान-विलेख में पहले की तारीख डालकर कपट करने का न तो अभिवचन किया, न उस पर कोई विचारण किया गया। इससे वादहेतुक नया बन जाता है। अतः संशोधन स्वीकार नहीं किया गया।

कपट या दुस्सन्धि की विशिष्टियों नहीं दी गई जो आदेश 6 के नियम के अनुसार देनी आवश्यक थी। अधिक विशिष्टियां के बिना साधारण शब्दों में यह कथन करना पर्यात नहीं है कि "दुसांधि" थी। साधारण अभिवचन चाहे वे कितनी भी कठोर भाषा में क्यों न किये गये हो, कपट के ऐसे प्रस्थान की कोटि में आने के लिये अपर्याप्त है, जिसकी ओर किसी भी न्यायालय द्वारा ध्यान दिया जाना चाहिये, और यही बात असम्यक् असर और प्रपीड़न को लागू होती है। इस मामले में दुस्सन्धि के सम्बन्ध में किये गये साधारण कथनों को स्वीकार नहीं किया गया।

कपट- जहां वादी ने अपने वादपत्र में कपट के कथन के लिये तीन अलग-अलग आधारों का विवरण दिया हो, तो न्यायालय का यह प्रत्यक्ष कर्तव्य होगा कि वह किसी चौथे आधार पर, जिसका वादपत्र में उल्लेख नहीं है; साक्ष्य का वर्जन (मना) कर दे। क्योंकि पक्षकारों के कथनों से बाहर के आधार पर निर्णय नहीं दिया जा सकता और केवल उसी मामले को साबित करना होता है, जिसका अभिवचन किया गया है।

कपट, असम्यक् असर आदि का दोषारोपण अभिवचन में विशिष्टियां देना आवश्यक

आदेश 6 नियम 1 इस सिद्धान्त पर आधारित है कि कपट, असम्यक (अनुचित) प्रभाव आदि अर्द्ध-दाण्डिक स्वरूप के आरोप हैं। जब कभी यह कहा जाता है कि कोई संव्यवहार कपट या अनुचित प्रभाव से दूषित हो गया है, तो जो व्यक्ति कपट और अनुचित प्रभाव का दोषी कहा गया है, उसके आन्तरिक और अयोग्य आचरण का कहा जाता है। अत: न्याय की नीति यह है कि जो व्यक्ति कपट या अनुचित प्रभाव के लिए आरोपित है, उसे उनकी विशिष्टियां (विवरण) से अवगत कराया जाए, ताकि वह पक्षकार उन विशिष्ट्रियों का उत्तर देने की स्थिति में हो। यदि विशिष्टियां नहीं दी जाती है, तो वह उसका निराकरण नहीं कर सकने से अलाभ में आ जाता है।

एक मामले में, संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के वाद में प्रतिवादी ने विक्रय पत्र में कपट का कथन किया, पर उसकी विशिष्टियां नहीं दी। प्रथम अपील में, उसने पहली बार विशिष्टियां देने की कोशिश की। अभिनिर्धारित कि यह अनुमेय नहीं है। वादी को ऐसा दोष नहीं होने के बारे में साक्ष्य देने का अवसर नहीं मिला और अब यदि यह कथन करने की अनुमति दी जाती है, तो वह आश्चर्य में पड़ जावेगा। यह तथ्य कि वादी ने निचले न्यायालय में आदेश 6, नियम 5 के अधीन सुतर विशिष्टियां (बेटर पार्टिकुलर्स) नहीं मांगे, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता।

विभाजन (पार्टिशन) के साधारण दावे में मौखिक साक्ष्य जब वादपत्र में विभाजन के विलेख (डीड) को कपटपूर्ण होने का कोई अभिवचन नहीं किया गया, तो प्रतिवादियों को उसे कपटपूर्ण कहकर चुनौती देने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

अन्तरिम स्थगनादेश (स्टे) जब नहीं दिया जा सकता शून्य है, इस घोषणा के लिए वाद प्रस्तुत किया गया और उसमें न्यायालय द्वारा पारित डिक्री कपट के आधार पर अन्तरिम स्थगन के लिए आवेदन दिया गया। परन्तु वादी अपने पक्ष में प्रथम दृष्ट्या मामला नहीं बना सका। अतः अन्तरिम व्यादेश स्वीकार नहीं किया गया।

इंडियन टोबेको कम्पनी के विरुद्ध पोखे (उल) के लिए कार्यवाही में यह अधिकधित किया गया कि उक्त कम्पनी ने दुर्व्यपदेशन (मिस-प्रिजेन्टेशन) किया और उसने विदेशी कम्पनी के चिन्ह का प्रयोग कर यह सुझाव दिया कि वे सिगरेट विदेशी कम्पनी द्वारा अथवा उस कम्पनी की विशेषज्ञता द्वारा तैयार की गई हैं।

सिगरेट के पैकेटों पर सह अंकित है कि सिगरेट भारत में निर्मित थी और जो चिन्ह (मार्क) उक्त कम्पनी ने प्रयोग में लिया, उस चिन्ह भी उक्त कम्पनी के स्वामित्व में था। इसके अतिरिक्त यह तर्क (कथन) नहीं उठाया गया कि वादी ने उस व्यपदेशन पर कार्यवाही की और उसे नुक्सानी हुई। अभिनिर्धारित कि उक्त वादपत्र कोई वादहेतुक प्रकट नहीं करता है। यह तर्क कि ऊक्त वाद जनहित में था, उक्त कमी का उपचार नहीं कर सकता।

असम्यक् असर का अभिकथन-

यह पता लगाने से पहले कि असम्यक् असर का प्रयोग किया गया था या नहीं, न्यायालय को अभिवचनों की संवीक्षा करनी होगी और यह पता लगाना होगा कि असम्यक् असर का अधिकथन बनता है या नहीं और उसकी विशिष्टियां दी गई है या नहीं। अभिवचन में दी गई विशिष्टियों से यदि असम्यकृ असर का मामला नहीं बनता हो, तो उसे कपट का ही एक रूप होने से यथार्थता के साथ सही-सही अभिवचन में देना होगा, अन्यथा न्यायालय उसका अनुसंधान नहीं करेंगे।

यह एक स्थापित कानून बन गया है। एक मामले के वादपत्र में यह साधारण अभिकथन किया गया कि वादी 70 वर्ष का सीधा सादा बुढा आदमी था और उसका प्रतिवादी पर गहरा विश्वास था। केवल इतना कथन असम्यक् असर प्रकट करने के लिये पर्याप्त नहीं माना गया।

असम्यकू प्रभाव का अभिवाकू सुनिश्चित होगा और उसके समर्थन में विशिष्टियां (आवश्यक विवरण) अभिवचन में दी जायेंगी। यदि अभिवचन में दी गई विशिष्टियां पर्याप्त और विशिष्ट नहीं हैं, तो न्यायालय को उस वाद के विचारण के पहले ऐसी विशिष्टियों पर जोर देना चाहिए, जो दूसरे पक्ष को उस मामले से पर्याप्त सूचना दे।

असम्यक् प्रभाव के द्वारा प्राप्त किये गये विक्रयपत्र के रजिस्ट्रीकरण में वाद में ऐसी परिस्थितियां जैसे वादीगण की अन्तरक की ऋणग्रस्तता, या सक्षम साक्षियों की परीक्षा न करना; स्पष्ट रूप से उस अभिवाक् के विरुद्ध असम्यक् प्रभाव के प्रयोग द्वारा अन्तरण (समनुदेशन) करवाया गया था।

असम्यक् प्रभाव का विशेष रूप से अभिवचन नहीं करने का प्रभाव जबकि यह सत्य है कि असम्यक् प्रभाव, कपट, व्यपदेशन वे सब एक ही कोटि (श्रेणी) के दुर्गुन हैं और कुछ अंश तक ये एक दूसरे में समाविष्ट हो जाते है, किन्तु विधि में ये सुभिन्न श्रेणियों में हैं। अतः आदेश 6 के नियम 4 तथा नियम 2 को साथ पढ़ने पर इनका अलग से इनकी विशिष्श्यिों, विशेषताओं और यथार्थता के साथ अभिवचन करना चाहा गया है। एक पक्षकार जो कुछ अभिवादन करता है और सिद्ध करता है, उसी के आधार पर वह सफल हो सकता है, परन्तु वह उसके बाहर नहीं जा सकता, जिसका उसने न तो अभिवचन किया और न उस पर विवाद्यक बनाया।

अतः ऐसे मामले में विशिष्ट अभिवचन होना आवश्यक है कि एक व्यक्ति ने, जिसका उच्च प्रभाव था, अपने ऐसे प्रभाव का स्वयं के लिए अनुचित लाभ उठाने हेतु प्रयोग किया था।

एक ऐसा कथन, जो अस्पष्ट है और उसने तात्विक विशिष्टियां नहीं दी गई हैं, कोई विचारण योग्य विवाद्यक उत्पन्न नहीं करता है। जैसे- यह कथन कि यह सम्भावना है कि दत्तकनामा असम्यक असर का परिणाम है।

केवल इसी तथ्य से कि वादी ने प्रतिवादी द्वारा कहे गये कपट के कथन के लिए सुतर विशिष्टियां देने की मांग नहीं की; यह अर्थ नहीं लिया जा सकता कि प्रतिवाद पत्र में लगाये गये इस आरोप का वादी कोई एतराज नहीं कर सकता।

असम्यक् असर का अभिवचन नहीं जहां प्रतिवादी असम्यक असर के कारण स्थावर सम्पत्ति के विक्रय के अवैध हो जाने का आधार लेना चाहता है, उसे अपने लिखित-कथन में इसका विशेष रूप से कथन करना होगा। ऐसे कथन के अभाव में जब इस बिन्दु पर कोई विवाद्यक नहीं बनाया गया, तो न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि यह वाद का विचार है और दस्तावेज बिना किसी असम्यक् असर के निष्यादित किया गया था।

दुर्व्यपदेशन -आदेश 6 का नियन 4 दुर्व्यपदेशन या कपट का अधिकथन करने वाले पक्षकार से तारीख और मदों सहित विशिष्टियां देने की मांग करता है, यदि आवश्यक हो। एक बीमा पालिसी सम्बन्धी वाद में बीनाकर्ता आन्वयिक कपट (Constructive fraud) का आरोप बीमा धारक महिला पर लगाता है कि उसने एक तथाकथित गर्भपात को छिपा लिया और बताया नहीं। यह कथन उस तथाकथित गर्भपात की विशिष्टियां नहीं देता और वाद में उसमें फेरफार करने का अवसर छोड़ देता है। अतः इस पर कोई विश्वास नहीं किया जा सकता। प्रतिवाद पत्र में आपत्ति करने पर भी वादी ने दुर्व्यपदेशन की विशिष्टियां नहीं दी। अतः ऐसे कथन पर विचार नहीं किया गया।

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