सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 74: आदेश 16 नियम 1 व 1(क) के प्रावधान

Update: 2024-01-08 07:33 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 16 साक्षियों को समन करना और उनकी हाजिरी से संबंधित है। जब किसी वाद का निपटारा प्रथम सुनवाई को नहीं होता है तब न्यायालय आगे की कार्यवाही करते हैं साक्षियों को समन जारी कर विचारण प्रारंभ किया जाता है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 1 व 1(क) के प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है।

नियम-1 साक्षियों की सूची और साक्षियों को रामन- (1) ऐसी तारीख को या इसके पूर्व जो न्यायालय नियत करे और जो विवाद्यकों का निपटारा ] कर दिए जाने से पन्द्रह दिन पश्चात् न हो, पक्षकार न्यायालय में ऐसे साक्षियों की सूची पेश करेंगे जिन्हें वे या तो साक्ष्य देने के लिए या दस्तावेजों को पेश करने के लिए बुलाने की प्रस्थापना करते हैं और न्यायालय में ऐसे व्यक्तियों की हाजिरी के लिए उनके नाम समन अभिप्राप्त करेंगे।

(2) यदि कोई पक्षकार किसी व्यक्ति की हाजिरी के लिए कोई समन अभिप्राप्त करना चाहता है तो यह पक्षकार न्यायालय में आवेदन, उसमें उस प्रयोजन का कथन करते हुए, फाइल करेगा जिसके लिए साक्षी को समन किया जाना प्रस्थापित है।

(3) न्यायालय कारण अभिलिखित करते हुए पक्षकार को किसी ऐसे साक्षी की जो उपनियम (1) मे निर्दिष्ट सूची में वर्णित नामों से भिन्न हो, चाहे न्यायालय की मार्फत समन द्वारा या अन्यथा बुलाने की अनुमति केवल तभी दे सकेगा जब ऐसा पक्षकार उक सूची में ऐसे साक्षी के नाम का वर्णन करने में लोप के लिए पर्याप्त कारण दर्शित कर दे।

(4) उपनिवन (2) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, इस नियम में निर्दिष्ट समन पक्षकारों द्वारा न्यायालय से या ऐसे अधिकारी से जो न्यायालय द्वारा इस निमित्त, उपनियम (1) के अधीन साक्षियों की सूची उपस्थित करने के पांच दिन के भीतर ] आवेदन करके अभिप्राप्त किए जा सकेंगे।।

नियम-1(क) समन के बिना साक्षियों का पेश किया जाना-नियम के उपनियम (3) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, वाद का कोई पक्षकार नियम के अधीन समन के लिए आवेदन किए बिना किसी साक्षी को साक्षी देने या दस्तावेजे पेश करने के लिए ला सकेगा।

आदेश 16 के नियम 1 से 9 तक में समन संबंधी आवश्यक बातें दो गई हैं। साक्षियों की सूची प्रस्तुत होने पर पांच दिन की अवधि के भीतर साक्ष्य व दस्तावेज समन करने के लिए पक्षकार साक्षियों को बुलाने के लिए समन अभिप्राप्त करेगा। इसके लिए वह आवेदन करेगा। सूची के बाहर के साक्षी को भी बुला सकेगा (नियम 1)। सूची में दिए गए साक्षियों को बिना समन भी प्रस्तुत कर सकेगा (नियम 1-क)। वह साक्षी को समन करने के लिए साक्षी का व्यय न्यायालय में जमा करायेगा। विशेषज्ञ का युक्तियुक्त पारिश्रमिक पक्षकार देगा, जो उच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार होगा। साक्षियों को व्यय का सीधा भुगतान भी किया जा सकता है। समन तामील कराने पर जमा कराया गया साक्षी का खर्च उसे न्यायालय देगा।

अपर्याप्त राशि जमा कराने पर पक्षकार को कमीपूर्ति करनी होगी। समन में हाजिरों के समय, स्थान व प्रयोजन का विवरण दिया जाएगा, जो प्ररूप संख्यांक 13 में होगा। दस्तावेज समन करने पर दस्तावेज प्रस्तुत कर देना पर्याप्त होगा। न्यायालय में उपस्थित व्यक्तियों से साक्ष्य देने या दस्तावेज पेश करने के लिए अपेक्षित शक्ति न्यायालय को होगी। तामील करवाने के लिए समन पक्षकार को दिये जा सकेंगे। समन की तामील के लिए युक्तियुक्त समय दिया जावेगा तथा नियम 8 के अनुसार आदेश 5 के नियम जो प्रतिवादी के लिए समन निकालने, तामील कराने, तामील का सबूत देने से संबंधित हैं, साक्षी गवाह के समनों के बारे में भी लागू होंगे।

सूची साक्षीगण के तत्व

(क) प्रकरण का एक पक्षकार दूसरे पक्षकार के अधिवक्ता को सूची साक्षी में बतौर साक्षी नहीं साक्षी नहीं रख सकता जब तक कि यह दर्शित नहीं कर दिया जाता कि उसको साक्ष्य किस प्रकार से संगत है। इससे दूसरे पक्ष के अधिवक्ता के अधिकार हनन होते हैं।

(ख) सूची साक्षी में न्यायालय को यह भी बताना पड़ेगा कि सूचीबद्ध साक्षी को क्यों बुलाया जा रहा है ताकि लम्बी प्रक्रिया से बचा जा सके।

(ग) एक वाद में साक्षीगण की परीक्षा हेतु प्रतिवादी ने आवेदन किया, ये वो साक्षीगण थे जो कि विक्रेता को पहचान करने वाले थे। प्रतिवादी ने साक्षी प्रस्तुत नहीं कर पाने का वैध कारण दर्शित किया है। साक्षी को आहुत करने का प्रार्थना पत्र स्वीकार किया गया।

साक्षियों के नाम सूची में नहीं-साक्ष्य देने की अनुमति दी जानी चाहिए-आदेश 16, नियम 1 और 1-क सपठित लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 87 (1) का परन्तुक-निर्वाचन अर्जी- अपीलार्थी अर्जीदार द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत करने की तारीख को अपने साक्षियों को न्यायालय में पेश किया जाना-उच्च न्यायालय द्वारा उसकी इस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया जाना कि जिन साक्षियों के नाम साक्षी सूची में नहीं दिए हैं, उनका साक्ष्य ले लिया जाए-यह तथ्य कि कतिपय (कुछ) साक्षियों के नाम साक्षी सूची में नहीं दिए गए हैं, तात्विक नहीं है-ऐसे साक्षियों को भी साक्ष्य देने की इजाजत दे दी जानी चाहिए जिनके नामों का उल्लेख साक्षियों की सूची में नहीं था।

जहाँ कि पक्षकार न्यायालय के जरिए समन किए जाने पर किसी साक्षी की उपस्थिति अभिप्राप्त करने के लिए न्यायालय की सहायता चाहता है, वहाँ उस पक्षकार पर, जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 16 के नियम 1 के उपनियम (1) द्वारा निदेश दिया गया है, न्यायालय में साक्षी के साक्ष्य सहित सूची फाइल करना और नियम 1 के उपनियम (2) द्वारा यथाउपबंधित आवेदन करना बाध्यकारी है। जहाँ कि पक्षकार न्यायालय की सहायता के बिना अपने साक्षियों को पेश करने की स्थिति में है, वहाँ वह इस तथ्य को विचार में लाए बिना कि क्या ऐसे साक्षी के नाम का उल्लेख सूची में है या नहीं, आदेश 16 के नियम 1- क के अधीन ऐसा कर सकता है।

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 16 के नियम 1 के उपनियम (1) और नियम 1-क के बीच कोई भी आन्तरिक विरोध नहीं है। आदेश 16 के नियम 1 का उपनियम (3) न्यायालय को ऐसी स्थिति के सम्बन्ध में कार्यवाही करने की अधिक विस्तृत अधिकारिता प्रदत्त करता है जहाँ कि पक्षकार सूची में साक्षी का नाम देने में असफल रहा है किन्तु फिर भी वह पक्षकार नियम 1(क) के अधीन स्वयं ही उस साक्षी को पेश करने में असमर्थ रहता है।

ऐसी स्थिति में ऐसे पक्षकार को आवश्यक रूप से साक्षी की उपस्थिति अभिप्राप्त करने के लिए उपनियम (3) के अधीन न्यायालय की सहायता लेनी पड़ती है और यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि पक्षकार के पास नियम 1 के उपनियम (1) के अधीन फाइल की गई सूची में ऐसे साक्षी के नाम का उल्लेख करने में हुए लोप के लिए पर्याप्त कारण मौजूद हैं, तो वह न्यायालय के जरिए या अन्यथा समन निकाल कर ऐसे साक्षी की उपस्थिति अभिप्राप्त करने के लिए अपनी सहायता दे सकता है, जो कि मामूली तौर से न्यायालय ऐसे साक्षियों की उपस्थिति अभिप्राप्त करने के लिए नहीं देता है जिसका नाम सूची में नहीं दर्शित किया गया है। अतः नियम 1 का उपनियम (3) और नियम 1-क भिन्न-भिन्न दो क्षेत्रों में प्रवर्तित होते हैं और अलग-अलग दो स्थितियों के संबंध में उपबंध करते हैं।

यदि साक्ष्य अभिलिखित करने के लिए नियत तारीख को पक्षकार इस तथ्य के बावजूद कि साक्षियों के नाम नियम 1 के उपनियम (1) के अधीन फाइल की गई सूची में नहीं दिखाए गए हैं, अपने साक्षियों को उपस्थित रखने में समर्थ है, तो ऐसा पक्षकार ऐसे साक्षियों की परीक्षा करने और उन साक्षियों के जरिए दस्तावेज पेश कराने का हकदार है जो कि नियम 1-क के अधीन दस्तावेज पेश करने के लिए बुलाए गए हों।

साक्षियों की परीक्षा करने से इन्कार करने की न्यायालय की जो एकमात्र अधिकारिता है, वह लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1981 की धारा 87 के परन्तुक में उपवर्णित है और वह विवेकाधिकार इस आधार पर साक्षियों की परीक्षा करने से इन्कार करने तक ही सीमित है कि वह साक्ष्य या तो तुच्छ है या तंग करने वाला है या ऐसा साक्ष्य कार्यवाहियों में विलम्ब करने के लिए पेश किया गया है, इनको छोड़ कर न्यायालय को पक्षकार द्वारा पेश किए गए ऐसे साक्षियों को जिन्हें कि उस समय उपस्थित रखा गया है, जबकि पक्षकार का साक्ष्य अभिलिखित किया जा रहा है और अभी भी बन्द नहीं हुआ है, परीक्षा करने से इन्कार करने की कोई भी अधिकारिता नहीं है।

न्यायालय को ऐसे साक्षी की, जो कि न्यायालय में उपस्थित है, परीक्षा करने से इस आधार पर इन्कार करने की कोई भी अधिकारिता नहीं है कि ऐसे साक्षी का नाम आदेश 16 के नियम 1 के उपनियम (1) के अधीन फाइल की गई सूची में उल्लिखित नहीं है। यदि विभिन्न उपबन्धों की स्कीम वैसे ही है जैसा कि यहां पर विवेचन किया गया है, तो स्पष्टतः विद्वान् न्यायाधीश का आदेश पूर्णतः कायम किए जाने लायक है।

उसने निर्वाचित अभ्यर्थी की इस दलील को स्वीकार करके साक्षी की परीक्षा करने से इनकार किया है कि ऐसे साक्षियों के नामों का उल्लेख, जिन्हें अपीलार्थी ने न्यायालय में उपस्थित रखा था, सूची में नहीं किया गया है। यह केवल एकमात्र ऐसा आधार है जिस पर विद्वान् न्यायाधीश ने उसके ऐसे साक्षियों की जो कि न्यायालय में उपस्थित रखे गए थे, परीक्षा करने के लिए अपीलार्थी को अनुज्ञा देने से इन्कार किया था और यह आधार पूर्णतः कायम किए जाने के लायक नहीं है। अतः विद्वान् न्यायाधीश का आदेश अभिखंडित करना होगा। (

साक्षियों की सूची प्रस्तुत नहीं करने का प्रभाव-उपबंध का उदार अर्थ किया जाए यह सही है कि पक्षकारों को संहिता में दिये गये समन के भीतर साक्षियों की सूची देनी चाहिये, परन्तु केवल इसीलिए कि पक्षकार ने साक्षियों की सूची पेश नहीं की, उसका प्रतिरक्षा और साक्षी प्रस्तुत करने का अधिकार छीना नहीं जा सकता। विहित की गई प्रक्रिया न्याय की दासी है, और कुछ नहीं, और उसका उपयोग इस प्रकार पक्षकार को दण्डित करने के लिए नहीं किया जा सकता। न्यायालय का कर्तव्य पक्षकारों के बीच न्याय करना है।

विवाद्यक विरचित किए जाने की तारीख से 30 दिनों के भीतर पक्षकार द्वारा साक्षियों के नामों की सूची पेश नहीं की गई फिर भी न्यायालय को पक्षकार के साक्षियों के साक्ष्य लेने की अधिकारिता है।

साक्षियों की सूची फाइल करने से कमीशन के लिये मना करना उचित नहीं-

एक वाद में साक्षी द्वारा न्यायालय में उपस्थित होने में असमर्थता इस मामले की परिस्थिति में साक्षियों की सूची के अभाव के कारण नहीं हुई परन्तु यह नहीं समझा जा सकता है कि- आदेश 26, नियम के अधीन गवाह की परीक्षा कमीशन पर इसलिए नहीं की जा सकती, क्योंकि संबंधित पक्षकार ने गवाहों की सूची पेश नहीं की।

साक्षी की परीक्षा केवल इसीलिए एक उपस्थित गवाह की परीक्षा करने से मना नहीं किया जा सकता कि-उसका नाम गवाह सूची में नहीं दिया गया। प्रतिवादी की वादी के साक्षी के रूप में परीक्षा- (आदेश 16, नियम 1 व 2)-वादी प्रतिवादी को अपने गवाह के रूप में समन कर बुला सकता है, परन्तु न्यायालय, येनकेन, इसे नामंजूर कर सकता है, क्योंकि ऐसा कार्य अशुभ माना जावेगा। इस मामले में, वादी के आवेदन को गलत दृष्टिकोण से नामंजूर कर दिया गया कि-वादी प्रतिवादी को गवाह के रूप में समन करने का हकदार नहीं है। यह आदेश रिवीजन में अभिखण्डित किया गया।

गवाहों के नाम बताना ऋजु (उचित) विचारण की माँग-

एक वाद में एक प्रतिवादी इस आधार पर अपने गवाहों की सूची देने से इन्कार नहीं कर सकता कि उन गवाहों को लालच देकर या गलत तरीके से बाध्य करके सही बात कहने से रोका जा सकेगा। यदि आवश्यक हो, तो न्यायालय उनकी सुरक्षा के लिए निर्देश दे सकता है। ऋजु विचारण की यह माँग है कि-पक्षकार को अपने गवाहों के केवल नाम प्रकट नहीं करने चाहिये, परन्तु अपने विपक्षी के गवाहों के नाम भी जानने चाहिये।

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