सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 71: आदेश 14 नियम 5 के प्रावधान

Update: 2024-01-06 08:36 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 14 विवाद्यकों का स्थिरीकरण और विधि विवाद्यकों के आधार पर या उन विवाद्यकों के आधार पर जिन पर रजामन्दी (सहमति) हो गई है वाद का अवधारण से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत इस आदेश के नियम 5 पर प्रकाश डाला जा रहा है।

नियम-5 विवाद्यकों का संशोधन और उन्हें काट देने की शक्ति (1) न्यायालय डिक्री पारित करने से पूर्व किसी भी समय ऐसे निबन्धनों पर जो वह ठीक समझे, विवाद्यकों का संशोधन कर सकेगा या अतिरिक्त विवाद्यकों की विरचना कर सकेगा और ऐसे सभी संशोधन या अतिरिक्त विवाद्यक जो पक्षकारों के में विवादग्रस्त बातों के अवधारण के लिए आवश्यक हों, इस प्रकार किए जाएंगे या विरचित किए जाएंगे।

(2) न्यायालय डिक्री पारित करने से पूर्व किसी भी समय किन्हीं भी ऐसे विवाद्यकों को काट सकेगा जिनके बारे में उसे प्रतीत होता है कि वह गलत तौर पर विरचित या पुरःस्थापित किए गए हैं।

विवाद्यकों का संशोधन या काट देना-न्यायालय की शक्तियाँ

(1) उपनियम (1) के अनुसार न्यायालय डिक्री पारित करने से पहले किसी भी समय उचित शर्तें लगाकर,

(1) विवाद्यकों में संशोधन कर सकेगा, या

(2) अतिरिक्त विवाद्यक बना सकेंगा,

जो पक्षकार के बीच की विवादग्रस्त बातों का निर्णय करने के लिए आवश्यक हो।

(2) उपनियम (2) के अनुसार न्यायालय गलत तरीको से बनाये विवाद्यकों को या पुरःस्थापित (संशोधन तथा अतिरिक्त विवाद्यकों को, डिक्री पारित करने से पहले किसी भी समय काट सकेगा। इस प्रकार न्यायालय को यहाँ भरपूर शक्तियां दी गई हैं।

एक वाद में कहा गया है कि गलत विवाधक बनाना घातक नहीं है और यदि पक्षकारों को कोई प्रतिकूलता नहीं, तो उस पर आधारित डिक्री को अपस्त नहीं किया जा सकता। विवाद्यक बनाने के लिए हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब की सम्पति के अन्य संक्रामण (अन्तरण) के प्रतिफल के औचित्य का प्रश्न सम्मिलित करना न्यायालय का कर्तव्य हैं।

विवाद्यक को चुनौती और संशोधन-एक पक्षकार के आवेदन को स्वीकार करते हुए तथा दूसरे पक्षकार के एतराज को अस्वीकार करते हुए कि अभिवचन के अनुसार विवाद्यक उत्पन्न ही नहीं होता है, न्यायालय ने एक विधायक विरचित किया।

इसके बाद एतराज कर्ता का उस विवाद्यक को लोपित करने के लिए आवेदन चलने योग्य नही है। विवाद्यक बनाने के बारे में दो परिस्थितियों में अन्तर करना होगा। पहली स्थिति में, जब अभिवचन के बारे में बिना किसी एतराज के विवाद्यक बनाये जाते हैं, तो न्यायालय उस पर विचार कर सकता है। परन्तु दूसरी स्थिति में, जब किसी एक पक्षकार के सारवान् आवेदन पर विवाद्यक बनाया जाता है, तो व्यथित पक्षकार, विधि द्वारा अनुशेष होने पर, विवाद्यक बनाने के आदेश के पुनर्विलोकन के लिए आवेदन कर सकता है, परन्तु उसी समान कार्यवाही के विवाद्यक बनाने के प्रश्न को अप्रत्यक्ष तरीके से आदेश 14 नियम 5 के अधीन आवेदन द्वारा चुनौती नहीं दे सकता।

अतिरिक्त विवाद्यक बनाने के लिए आवेदन पूर्वन्याय विवादग्रस्त प्रश्न पर वादपत्र में संशोधन का आवेदन अस्वीकार करते समय विचार कर लिया गया और निर्णय कर दिया गया, तो उसी प्रश्न पर अतिरिक्त विधायक बनाने के लिए किया गया बाद का आवेदन पूर्वन्याय से वर्जित हो गया।

एक मामले में कहा गया है कि अतिरिक्त विवाद्यक बनाना न्यायालय द्वारा अतिरिक्त विवाद्यक बनाना उसके विवेकाधिकार में है, जो कि न्यायिक विवेकाधिकार है। अतः न्यायालय को ऐसा अतिरिक्त विवाद्यक नहीं बनाना चाहिये कि वाद का स्वरूप ही बदल जाय या किसी पक्षकार के लिए एक नया मामला बन जाये।

विवाद्यकों में संशोधन करना विचारण न्यायालय का विवेकाधिकार है। विवाद्यक को हटाने से मना करने में या अधिक विवाद्यक जोड़ने में किसी पक्षकार के अधिकार या कर्तव्य का निर्णय नहीं होता। यह एक प्रक्रियात्मक मामला है और विचारण न्यायालय को पक्षकारों के बीच विवाद का निश्चय करना है।

विपक्षी को नया अवसर देना आवश्यक - विवाद्यक के प्रत्येक संशोधन या अतिरिक्त विवाद्यक जोड़ने पर विपक्षी पक्षकार को साक्ष्य के लिए नया अवसर दिया जाना चाहिये।

अतिरिक्त विवाद्यक बनाने के आवेदन को खारिज करना-

अतिरिक्त विवाद्यक बनाने के लिए दिए गए आवेदन को खारिज करने का आदेश धारा 115 में दी गई शर्तों को पूरा जा सकता है।

विवाद्यक को काट देना (उपनियम-2) - एक वाद में एक अस्पष्ट विवाद्यक को, जो किरायेदारी संबंधी है, काटा जा सकता है, यदि प्रतिवादी (1) किरायेदारी का सृजन करने के दिनांक, (2) किसके द्वारा सृजित की गई और (3) किन शर्तों पर सृजित की गई, इन बातों को बताने में असमर्थ रहता है।

विवाद्यक जब सही माना गया-अतिरिक्त अभिवचन के कारण अतिरिक्त विवाद्यक बनाने चाहिये। वाद की संधारणीयता को कई आधारों पर चुनौती दी गई, जिनका न्यायालय ने केवल सामान्य विवाद्यक बनाया, परन्तु इससे पक्षकार को कोई हानि नहीं हुई। अतः विवाद्यक उचित माना गया।

अतिरिक्त विवाद्यक विरचित करना-लिखित-कथन में आपत्ति उठाई गई कि-जिस व्यक्ति ने वादपत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, उसे वादपत्र पर हस्ताक्षर करने और उसे सत्यापित करने का प्राधिकार नहीं है। उक्त व्यक्ति ने प्रति-परीक्षा में इस बात को स्वीकार किया है। ऐसी स्थिति में, विचारण-न्यायालय उस व्यक्ति द्वारा वादपत्र पर हस्ताक्षर करने के प्राधिकार और वाद की संधारणीयता के बारे में विवाद्यक बनाने के लिए बाध्य था। ऐसा विवाद्यक बनाये बिना दिया गया यह निष्कर्ष अनुचित है कि-वादपत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए उस व्यक्ति के पास कोई प्राधिकार-पत्र था।

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