सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 69: आदेश 14 नियम 2 के प्रावधान

Update: 2024-01-05 04:57 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 14 विवाद्यकों का स्थिरीकरण और विधि विवाद्यकों के आधार पर या उन विवाद्यकों के आधार पर जिन पर रजामन्दी (सहमति) हो गई है वाद का अवधारण से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत इस आदेश के नियम 2 पर चर्चा की जा रही है।

नियम-2 न्यायालय द्वारा सभी विवाद्यकों पर निर्णय सुनाया जाना

(1) इस बात के होते हुए भी कि वाद का निपटारा प्रारम्भिक विवाद्यक पर किया जा सकेगा, न्यायालय उपनियम (2) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए सभी विवाद्यकों पर निर्णय सुनायेगा।

(2) जहां विधि विवाद्यक और तथ्य विवाद्यक दोनों एक ही वाद में पैदा हुए हैं और न्यायालय की यह राय है कि मामले या उसके किसी भाग का निपटारा केवल विधि विवाद्यक के आधार पर किया जा सकता है,

वहां यदि यह विवाद्यक-

(क) न्यायालय की अधिकारिता, अथवा

(ख) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा सृष्ट वाद के वर्जन, से सम्बन्धित है तो वह पहले उस विवाद्यक का विचारण करेगा और उस प्रयोजन के लिए यदि वह ठीक समझे तो, वह अन्य विवाद्यकों का निपटारा तब तक के लिए मुल्तवी कर सकेगा जब तक कि उस विवाद्यक का अवधारण न कर दिया गया हो और उस वाद की कार्यवाही उस विवाद्यक के विनिश्चय के अनुसार कर सकेगा।

आदेश 14, नियम 2 प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में न्यायालय- फीस सम्बन्धी आक्षेप उठाना अनुमत नहीं- जब न्यायालय फीस का प्रश्न उठाया जाता है, तो न्यायालय उस वाद-प्रश्न को प्रारंभिक वादप्रश्न के रूप में निर्णीत नहीं कर सकता है।

आदेश 14, नियम 2 सीपीसी न्यायालय को यह अनुमति देता है कि जहाँ विधि और तथ्य दोनों के वाद प्रश्न एक ही वाद में या उसके भाग में उठते हैं, तो केवल एक वाद प्रश्न पर उसको निपटाया जा सकेगा और यह उस वाद-प्रश्न पर पहले विचारण कर सकेगा, यदि वह वाद प्रश्न- (क) न्यायालय की अधिकारिता या (ख) वाद के लिए प्रचलित कानून द्वारा सृजित वर्जन से सम्बन्धित है।

इस प्रकार आदेश 14 नियम 2 (2) एक मूल उपबंध है, जिसके अधीन न्यायालय उपरोक्त प्रश्नों को, सब वाद प्रश्नों को एक ही समय पर निर्णीत किये बिना, निर्णीत कर सकता है। आदेश 14 नियम 2(1) उपबंध करता है कि इस बात पर ध्यान दिये बिना कि मामले को प्रारंभिक वाद-प्रश्न पर निपटाया जा सकेगा, न्यायालय उप-नियम (2) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, सभी वाद प्रश्नों पर निर्णय की घोषणा कर सकेगा। इस प्रकार न्यायालय को यह आदेश है कि वह सभी वाद प्रश्नों को एक निर्णय द्वारा तय करे, जब तक कि वाद प्रश्न आदेश 14, नियम 2 उपनियम (2) के अधीन नहीं पड़‌ता हो।

आदेश 14 नियम 2 का उपखंड (1) आदेशात्मक है और इसका अपवाद आदेश 14 के नियम 2 के उपनियम (2) में निकाला गया है। इस नियम में न्यायालय फीस के भुगतान के प्रयोजन के लिए आदेश 14 के नियम 2 के उपनियम (2) के अधीन अपवाद में वाद का मूल्याँकन सम्बन्धी प्रश्न सम्मिलित नहीं किया गया है।

इसी कारण से सभी वाद प्रश्नों पर एक संयुक्त विनिश्वय आवश्यक है और न्यायालय- फीस के प्रयोजनार्थ मूल्याँकन सम्बन्धी वाद-प्रश्न आदेश 14 के नियम 2 के उपनियम (2) के मूल खण्ड के भीतर आता है। न्यायालय फीस की पर्याप्ता सम्बन्धी प्रश्न प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में अन्वीक्षा योग्य नहीं है। न्यायालय फीस वाद एवं अपील प्रस्तुत करते समय देय है। यह फीस अग्रिम देय है तत्पश्वात् वाद के मूल्यांकन एवं न्यायालय फीस का विवाद्यक प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में निर्णीत किया जाना चाहिए। न्यायालय फीस अधिनियम सबस्टेसियल विधि है एवं सीपीसी प्रक्रियात्मक।

नियम आदेशात्मक नहीं, निर्देशात्मक- 1976 के संशोधन द्वारा नियम 2 में "शैल के स्थान पर में" कर दिया गया है। अतः यह आवश्यक है कि-प्रारंभिक विवाधक का पहले विचारण किया जाए। यह न्यायालय के विवेकाधीन है। केवल नियम 2(2) के खण्ड (क) और (ख) से आवृत्त होने वृत्त होने वाले विवाद्यकों पर ही प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में विचारण किया जा सकता है। कुछ विवाद्यक नियम 2(2) के खण्ड (क) और (ख) द्वारा आवृत है, फिर भी न्यायालय उनका प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में विचारण करने से मना कर सकता है, क्योंकि इससे वाद के विचारण में देरी होगी।

न्यायालय का विवेकाधिकार-

न्यायालय को सभी विवाद्यकों पर निर्णय देना होगा, चाहे मामले को प्रारंभिक विवाद्यक पर ही निपटा दिया गया हो। नियम 14 का उपनियम एक छोटा-सा अपवाद बताता है, जहाँ विवाद्यक न्यायालय को अधिकारिता से संबंधित है या वाद के लिए कोई विधिक-बाधा है। न्यायालय ऐसे विवाद्यक का प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में विचारण कर सकता है, पर यह विवेकाधिकार है, न कि कर्त्तव्य है। इस नियम की शब्दावली "वह विचारण कर सकेगा" यह दर्शित करती है कि यह न्यायालय पर कोई कर्तव्य भार नहीं है। अतः जब किसी विवाद्यक का प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में विचारण करने से मना कर देने पर यह न्यायालय को अधिकारिता को छूने वाला प्रश्न नहीं है। ऐसे आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण सक्षम नहीं है।

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 41 के तहत वाद की वर्जना का प्रश्न मात्र विधि का प्रश्न होने से प्रारंभिक रूप से निर्णय योग्य विवाद्यक है।

आदेश 14, नियम 2 के अधीन न्यायालय को विवेकाधिकार दिया गया है कि यह अधिकारिता के विवाद्यक को एक प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में तय करे, या फिर अन्य विवाद्यक के साथ उसे निपटाये। इस उपबंध के अधीन अधिकारिता का विवाद्यक ऐसा होना चाहिये, जिसके लिए विस्तृत साक्ष्य को नहीं देखना पड़े। धारा 21 में ऐसा कुछ नहीं है, को अधिकारिता के विवाद्यक का निर्णय प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में करना आज्ञापक बताता हो। उसमें प्रतिपादित सिद्धांत संगत नहीं है, जहाँ अधिकारिता का एतराज आरंभिक स्टेज पर ही उठाया गया हो। वाद की पोषणीयता से सम्बन्धित प्रारम्भिक विवाद्यक बाबत विचार हेतु विवाद प्रथम बार उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील में नहीं उठाया जा सकता।

न्यायालय द्वारा विवाद्यकों का विचारण- यदि कोई विवाद्यक (1) न्यायालय को अधिकारिता से संबंधित है या (2) उसके द्वारा तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा वाद का वर्जन सृष्ट किया गया है तो वह केवल विधि विवाद्यक का ही विचारण करेगा तथ्य संबंधी विवाद्यक या तथ्य और विधि के मिश्रित विवाद्यक का प्रारंभिक विवाद्यक के तौर पर विनिश्चिय नहीं किया जा सकता है जहाँ अधिकारिता का विवाद्यक तथ्य के प्रश्न या विधि और तथ्य का मिश्रित प्रश्न है, वहाँ यह प्रारंभिक विवाद्यक के तौर पर विनिश्चित नहीं किया जा सकता।

प्रारंम्भिक विवाद्यक के विचारण-

प्रारंम्भिक विवाद्यक के रूप में केवल विधि के प्रश्न पर ही विचारण किया जा सकता है। यह सुनिश्चित विधि है। विधि एवं तथ्य में मिश्रित प्रश्न को प्रारंम्भिक बिन्दु के रूप में निर्णीत नहीं किया जा सकता, पूर्व न्याय का विवाद्यक तथ्यों से सिद्ध होना है, इसे प्रारंम्भिक बिन्दु के रूप में तय नहीं किया जा सकता।

बंधक मोचन व वाद के परिसीमा से बाधित होने के विवाद्यक प्रारंभिक विवाद्यक के रूप में निर्णीत नहीं किये जा सके क्योंकि यह तथ्यों व विधि के मिश्रित प्रश्न है। वाद की पोषणीयता के सम्बन्ध में आपत्ति लेकिन न्यायालय के क्षेत्राधिकार के सम्बन्ध में कोई कोई तथ्य नहीं उठाया एवं न ही यह कथन किया कि वाद विधि द्वारा वर्जित है, उच्च न्यायालय ने विचारण न्यायालय को वाद की पोषणीयता के सम्बन्ध में प्रारंम्भिक बिन्दु बनाने एवं निर्णय करने के लिए निर्देश नहीं दे सकता।

एक प्रकरण में चिकित्सा उपेक्षा के आधार पर क्षतिपूर्ति हेतु वाद दायर किया गया। चिकित्सा उपेक्षा का प्रश्न पूर्णतः विधिक प्रश्न की कोटि में नहीं आता है तथा यह प्रश्न सिविल न्यायालय से सम्बन्धित भी नहीं है। प्रारम्भिक विवाद्यक के रूप में निस्तारित नहीं किया जा सकता है।

विधि द्वारा वर्जन या बाधा संबंधी विवाद्यक - विधि की किसी बाधा के कारण वाद चलने योग्य नही होने पर उस बारे में विधि विवाद्यक का प्रारम्भिक विवाद्यक के रूप में आरम्भ में ही निपटारा किया जा सकता है।

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