सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 48: आदेश 9 नियम 1 से 3 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 9 पक्षकारों के अदालत में उपस्थित होने एवं नहीं होने के संबंध में प्रावधान निश्चित करता है। यदि कोई पक्षकार किसी भी स्तर पर अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तब अदालत के पास ऐसे क्या उपचार उपलब्ध हैं जिनका उपयोग कर वह कार्यवाही को आगे बढ़ा सकती है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही आदेश 9 के नियम 1 से 3 तक पर संयुक्त रूप से टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-1 पक्षकार उस दिन उपसंजात होंगे जो प्रतिवादी के उपसंजात होने और उत्तर देने के लिए समन में नियत है- जो दिन प्रतिवादी के उपसंजात होने और उत्तर देने के लिए समन में नियत है उस दिन पक्षकार स्वयं या अपने-अपने प्लीडरों द्वारा न्याय सदन में हाजिर रहेंगे और, तब के सिवाय जबकि सुनवाई न्यायालय द्वारा नियत किसी भविष्यवर्ती दिन के लिए स्थगित कर दी जाएगी वाद उस दिन सुना जाएगा।
यह इस आदेश का प्रथम नियम है। इस नियम के अंतर्गत पक्षकारों को न्यायालय में उपस्थित होने हेतु आज्ञापक नियम दिए गए हैं।
इस नियम में निम्नलिखित बातें स्पष्ट की गई है-
(1) प्रतिवादी को समन की सम्यक (सही) तामील होना उसके उपसंजात (उपस्थित) होने की पहली शर्त है।
तामील सही न होने पर या तामील बिल्कुल न होने पर प्रतिवादी का उपस्थित होना कानूनन आवश्यक या बाध्यकारी नहीं है।
(2) समन में जो दिन नियत है, उसी दिन प्रतिवादी को उपस्थित होना है।
(3) यह समन (1) उपस्थित होने और (ii) उत्तर (लिखित-कथन) देने के लिए होता है।
(4) उस नियत दिन को दोनों पक्षकार (वादी और प्रतिवादी) (1) स्वयं या (ii) अपने-अपने अभिभाषकों द्वारा अदालत में उपस्थित रहेंगे। इस प्रकार पक्षकार को अभिभाषकों के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति दी गई है।
(5) परन्तु यदि न्यायालय ने सुनवाई स्थगित कर आगे के दिन को सुनवाई करने का निश्चय किया है, तो उस अगली सुनवाई के दिन पक्षकार उपस्थित रहेंगे। इस प्रकार उपस्थिति का यह क्रम आगे दी जाने वाली तारीखों पर भी लगातार जारी रहेगा।
आदेश 5 नियम 1 के अनुसार प्रतिवादी को समन "उपसंजात होने और दावे का उत्तर देने के लिए" जारी किया जाता है। आदेश 5 नियम 5 के अनुसार समन में निर्देश होगा कि (1) समन केवल विवाद्यकों (वादप्रश्नों) के स्थिरीकरण (निश्चित करने) के लिए होगा, या (ii) अन्तिम निपटारे के लिए। अन्तिम निपटारे के लिए पेशी पर आदेश 5 के नियम 7 के अनुसार प्रतिवादी को अपनी दस्तावेज प्रस्तुत करनी होगी और नियम 8 के अनुसार साक्षियों को पेश करना होगा। इस प्रकार सुनवाई की तारीख को उपर्युक्त कार्य न्यायालय द्वारा निपटाये जायेंगे और वह तारीख समन में दी जावेगी।
सुनवाई की तारीख से तात्पर्य प्रथम तारीख और बाद में आगे बढ़ाई हुई तारीख से है। प्रथम दिनांक वाद की सुनवाई की तारीख नहीं मानी जाती। अतः ऐसे दिन वादी की अनुपस्थिति के कारण वाद को खारिज (निरस्त) नहीं करना चाहिये, अन्यथा ऐसा आदेश अवैध माना जावेगा। सुनवाई की तारीख में प्रथम सुनवाई के बाद की भविष्यवर्ती या आगे की सुनवाई भी सम्मिलित है। इसके विभिन्न पहलुओं पर आगे यथास्थान विवेचन किया गया है।
नियम-2 जहाँ समनों की तामील, खर्चे देने में वादी के असफल रहने के परिणामस्वरूप नहीं हुई है वहाँ वाद का खारिज किया जाना-जहाँ ऐसे नियत दिन को यह पाया जाए कि प्रतिवादी पर समन की तामील इसलिए नहीं हुई है कि न्यायालय फीस या डाक महसूल, यदि कोई हो, जो ऐसी तामील के लिए प्रभार्य है, देने में या आदेश 7 के नियम 9 द्वारा अपेक्षित वादपत्र की प्रतियों उपस्थित करने में वादी असफल रहा है, वहाँ न्यायालय यह आदेश कर सकेगा कि वाद खारिज कर दिया जाए परन्तु ऐसी असफलता के होते हुए भी, यदि प्रतिवादी उस दिन को जो उसके उपसंजात होने और उत्तर देने के लिए नियत है, स्वयं या जब अभिकर्ता के द्वारा उपसंजात होने के लिए अनुज्ञात है अभिकर्ता के द्वारा उपसंजात हो जाता है तो ऐसा कोई आदेश नहीं किया जाएगा।
नियम 2 को तीन बार संशोधित किया गया है। इस विषय में दो ऐसी परिस्थितियाँ बताई गई है, जिनको वादी के व्यतिक्रम (चूक) मानकर उसके विरुद्ध वाद को खारिज करने का उपबंध किया गया है।
दो प्रकार के व्यतिक्रम (चुक) - नियम में बताये गये नियत दिन को यदि निम्न में से कोई एक चूक वादी द्वारा की गई पाई जाती है, तो न्यायालय यह आदेश कर सकेगा कि वाद खारिज कर दिया जाए-
(1) प्रतिवादी पर समन की तामील नहीं हुई है, क्योंकि वादी ने न्यायालय फीस या हाक महसूल, जो नियमानुसार समन की तामील के लिए देना या जमा कराना था, उसने जमा नहीं कराया है-अथवा-
(2) आदेश 7 के नियम 9 द्वारा चाहा गया है कि प्रत्येक समन के साथ वादपत्र की एक प्रति लगाई जाएगी। ये प्रतियाँ समन के साथ लगाकर यदि वादी नहीं देता है, तो यह उसकी असफलता होगी।
वाद खारिज किया जाना-
उपर्युक्त दो चूकों के कारण न्यायालय वाद को खारिज कर सकेगा। यह उसके विवेकाधीन है। यदि ऐसी (उपर्युक्त) चूक हो जाने पर भी प्रतिवादी स्वयं या अपने प्राधिकृत अभिकर्ता (एजेन्ट/प्रतिनिधि/ वकील) के द्वारा न्यायालय में उस नियत दिन को उपस्थित हो जाता है, तो वाद खारिज करने का आदेश नहीं किया जाएगा। (नियम 2 का परन्तुक) ऐसी स्थिति में, प्रतिवादी की उपस्थिति अंकित की जावेगी और वादपत्र की प्रति उसे दी जावेगी और सुनवाई उत्तर (लिखित-कथन) देने के लिए अगली किसी तारीख के लिए स्थगित कर दी जावेगी।
उपचार-जब नियम 2 के अधीन वाद खारिज कर दिया जाता है, तो उसके उपचार नियम 4 में दिये गये
(1) वादी (परिसीमा विधि के अधीन रहते हुए) नया वाद लॉ सकेगा, या- (2) न्यायालय में खारिजी को अपास्त करने के लिए आवेदन कर सकता है, जिसमें ऊपर बताई गई असफलताओं के लिए पर्याप्त हेतुक (कारण) बताने पर उस वाद को पुनःस्थापित किया जा सकता है।
समन की तामील में असफलता के लिए वाद की खारिजी-प्रतिवादी एक निगम है, जिसका विचारण- न्यायालय के समक्ष वकील द्वारा उस संगत तारीख को प्रतिनिधित्व किया गया। अतः न्यायालय ने समन की तामील के प्रश्न को छोड़ देने का निर्देश दिया। इस गलत धारणा पर आधारित कि प्रतिवादी को तामील नहीं हुई उस आदेश को अपास्त किया गया।
नियम-3 जहाँ दोनों में से कोई भी पक्षकार उपसंजात नहीं होता है वहाँ वाद का खारिज किया जाना-जहाँ वाद की सुनवाई के लिए पुकार होने पर दोनों में से कोई भी पक्षकार उपसंजात नहीं होता है वहीं न्यायालय यह आदेश दे सकेगा कि वाद खारिज कर दिया जाए।
नियम 3 उस समय वाद को खारिज करने की व्यवस्था करता है, जब कोई भी पक्षकार उपस्थित नहीं होता है। इस नियम में दो शर्तें दी गई हैं-
(1) वाद की सुनवाई के लिए न्यायालय की ओर से आवाज होती है, आवाज लगवाई जाती है,
(2) ऐसी आवाज़ होने पर दोनों में से कोई भी (अर्थात् वादी और प्रतिवादी दोनों) न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है। ऐसी उपस्थिति व्यक्तिगत या एडवोकेट द्वारा होती है। अतः आवाज पर भी जब पक्षकार या एडवोकेट नहीं आते हैं तब वाद खारिज कर दिया जाएगा।
ये दो बातें पूरी होने पर न्यायालय का विवेकाधिकार है कि वाद को खारिज कर दे। किंतु यह आज्ञापक नहीं नहीं है कि वाद खारिज ही किया जाए।
ऐसी खारिजी के विरुद्ध दो उपचार दिये गये हैं-
(1) परिसीमा के अधीन रहते हुए नया वाद लाना या-
(2) न्यायालय में खारिजी को अपास्त कर वाद के पुनःस्थापन के लिए आवेदन देना।
इस नियम पर न्यायालयों के स्थापित मत- उपस्थिति के लिए जब प्रतिवादी को समन द्वारा नियत दिनांक की सूचना दे दी गई हो और कोई पक्षकार (वादी और प्रतिवादी) उपस्थित नहीं हुआ हो, तभी यह नियम लागू होता है, ऐसी दिनांक तय नहीं करने पर यह नियम लागू नहीं होगा। जब तक पक्षकारों को समन तामील न हो जाए, वाद की सुनवाई का प्रश्न ही नहीं उठता और वाद को खारिज नहीं किया जा सकता। दोनों पक्षकारों की अनुपस्थिति में यदि अधिकरण गुणागुण पर आदेश पारित करता है, तो यह नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध होगा। इस नियम के प्रयोजनार्थ केवल शारीरिक उपस्थिति को उपसंजात होना नहीं माना गया है।
यह नियम तभी लागू होता है, जब पहली सुनवाई पर उपस्थिति में चूक होती है, परन्तु जब स्थगित की गई सुनवाई पर ऐसी चूक होती है, तो आदेश 17 लागू होगा। सुनवाई के लिए निश्चित दिनांक को वादी उपस्थित हुआ, परन्तु प्रतिवादी अनुपस्थित रहा। वादी अपने दावे के समर्थन में उस दिन साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रहा, तो वाद खारिज कर दिया गया। यह खारिजी गुणागुण पर है और नियम 3 के अधीन नहीं आती।
एक प्रकरण में कहा गया है कि न्यायाधीश की अनुपस्थिति में न्यायालय का लिपिक दिनांक तय नहीं कर सकता और ऐसी पेशी पर पक्षकार की अनुपस्थिति के कारण एक वाद को खारिज करना न्यायोचित नहीं है। जब वादी की अनुपस्थिति के कारण वाद को खारिज किया, पर प्रतिवादी भी उस दिनांक को उपस्थित नहीं था, तो न्यायालय को ऐसे मामले में पुनःस्थापन के समय उदारता से विचार करना चाहिये।
एक मामले में सम्बद्ध पक्षकार के सुनवाई की तारीख पर हाजिर न होने पर एकपक्षीय डिक्री पारित की गई। एकपक्षीय डिक्री अपास्त करते समय न्यायालय कोई भी युक्तियुक्त निर्बन्धन (शर्तें) अधिरोपित कर सकता है बशर्ते कि वह अपना यह समाधान कर ले कि सम्बद्ध पक्षकार गलती पर है या वह लोप का दोषी है।
वाद की व्यतिक्रम के लिए खारिजी-
आदेश में केवल वादी की अनुपस्थिति का उल्लेख करने से वह आदेश 9 नियम 3 के अधीन आदेश होने से वंचित नहीं होता और नियम 8 के अधीन आदेश नहीं हो जाएगा। जहाँ विचारण-न्यायालय ने अपने आदेश में वाद को खारिज करते हुए केवल वादी की अनुपस्थिति का उल्लेख किया, परन्तु प्रतिवादी की अनुपस्थिति का नहीं, तो ऐसे आदेश को आदेश 9 नियम 3 के अधीन वाक्य होगा, न कि विषय 8 के अधीन जिसकी शर्ते स्वीकृत रूप में पूरी नहीं हुई है। फिर आदेश 9 का नियम (नियम के विपरीत) से पक्षकारों की अनुपस्थिति अभिलिखित करने की समान शर्त नहीं बताता है। इस प्रकार न्यायालय पूरे वाद को खारिज नहीं कर सकता और अनुपस्थिति के लिए केवल वादी को शास्ति नहीं कर सकता।