सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 171: आदेश 30 नियम 9 व 10 के प्रावधान

Update: 2024-04-18 05:43 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 30 फर्मों के अपने नामों से भिन्न नामों में कारबार चलाने वाले व्यक्तियों द्वारा या उनके विरूद्ध वाद है। जैसा कि आदेश 29 निगमों के संबंध में वाद की प्रक्रिया निर्धारित करता है इस ही प्रकार यह आदेश 30 फर्मों के संबंध में वाद की प्रक्रिया निर्धारित करता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 30 के नियम 9 एवं 10 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।

नियक-9 सहभागीदारों के बीच में वाद यह आदेश फर्म और उसके एक या अधिक भागीदारों के बीच के वादों को और ऐसे वादों को, जो उन फर्मों के बीच है, जिनके एक या अधिक भागीदार सहभागीदार हैं, लागू होगा, किन्तु ऐसे वादों में कोई भी निष्पादन न्यायालय की इजाजत के बिना जारी नहीं किया जाएगा और ऐसे निष्पादन जारी करने की इजाजत के लिए आवेदन किए जाने पर ऐसे सभी लेखाओं का लिया जाना और जांच की जानी निदिष्ट की जा सकेगी और ऐसे निदेश दिए जा सकेंगे जो न्यायसंगत हो।

नियम-10 स्वयं अपने नाम से भिन्न नाम से कारबार चलाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध वाद-अपने से भिन्न नाम या अभिनाम से कारबार चलाने वाले किसी व्यक्ति पर या किसी नाम से कारबार चलाने वाले हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब पर वाद उसी नाम या अभिनाम में इस प्रकार लाया जा सकेगा मानो यह फर्म का नाम हो और इस आदेश के सभी नियम वहाँ तक लागू होंगे जहाँ तक कि उस मामले की प्रकृति से अनुज्ञात हो।

साम्यापूर्ण समायोजन पर आधारित - यह नियम उन दो फर्मों के बीच, जिनमें एक समान (कॉमन) भागीदार हैं, साम्यापूर्ण समायोजन की व्यवस्था करता है। इस नियम का अर्थान्वयन कर इसे धनराशि सम्बन्धी वादों तक सीमित कर दिया गया है।

दूसरे भागीदारों के हितों की रक्षा के लिए ये प्रावधान किये गये-

(i) न्यायालय की अनुमति के बिना निष्पादन नहीं किया जा सकेगा,

(ii) न्यायालय लेखा लेने के लिए आदेश कर सकेगा, और

(iii)ऐसे निर्देश दे सकेगा, जो वह उचित (ठीक) समझे।

सह भागीदारों के मध्य वाद- इस नियम के अनुसार (i) एक फर्म और उसके किसी एक भागीदार के बीच या (ii) दो फर्मों के बीच, जिनमें एक समान (कॉमन) भागीदार हों, कोई वाद फर्म के नाम से संस्थित किया जा सकता है, जब कि फर्मे नियम 1 के अनुसार भारत में कारबार चलाती हों। परन्तु कोई निष्पादन का आदेश ऐसे वाद में, न्यायालय की अनुमति के बिना नहीं दिया जावेगा। येन-केन, निष्पादन का आवेदन करने के लिए न्यायालय की अनुमति पूर्व-शर्त नहीं है, यह निष्पादन का आदेश देने के पहले प्राप्त की जा सकती है। बिना ऐसी अनुमति के दिया गया निष्पादन का आवेदन परिसीमा से बचाने के लिए विधि-पूर्वक है।

इस आदेश का नियम 10 उन व्यक्तियों के विरुद्ध वाद के बारे में उपबन्ध करता है, जो अपने स्वयं के नाम से कारबार न चलाकर भिन्न नाम या अभिनाम (स्टाइल) से कारबार करते हैं। उनको आदेश 30 के नियम लागू होंगे। स्वयं अपने नाम से भिन्न नाम से कारोबार करने वाले व्यक्ति के निधन पर उसके विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध पंचाट की निष्पादन कार्यवाही पोषणीय है।

इस नियम को नये नियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। नियम 10 में प्रयुक्त शब्द "व्यक्ति" के बारे में न्यायालयों में मतभेद था कि इसमें हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब सम्मिलित है या नहीं। ऐसी स्थिति में इस नियम में संशोधन कर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि यह हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब को भी लागू होता है, जो किसी नाम के अधीन कारबार चलाता है।

शब्द व्यक्ति का अर्थ - इस शब्द व्यक्ति में एक कम्पनी भी सम्मिलित है। आदेश 30 के नियम 10 [सपठित साधारण खण्ड अधिनियम 1897, धारा 3 (42) तथा 13] में प्रयुक्त व्यक्ति शब्द के अन्तर्गत एकाधिक ऐसे व्यक्ति भी आते हैं, जो अपने नाम या भिन्न अभिनाम में कारबार करते हों, क्योंकि नियम 10 में ऐसी कोई बात नहीं है, जो उक्त धारा 3(42) तथा 13 का लागू होना निवारित करे।

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