सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 169: आदेश 30 नियम 6 एवं 7 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 30 फर्मों के अपने नामों से भिन्न नामों में कारबार चलाने वाले व्यक्तियों द्वारा या उनके विरूद्ध वाद है। जैसा कि आदेश 29 निगमों के संबंध में वाद की प्रक्रिया निर्धारित करता है इस ही प्रकार यह आदेश 30 फर्मों के संबंध में वाद की प्रक्रिया निर्धारित करता है। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 30 के नियम 6 एवं 7 पर प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-6 भागीदारों की उपसंजाति - जहां व्यक्तियों पर भागीदारों की हैसियत मे उनकी फर्म के नाम में वाद लाया जाता है वहां वे स्वयं अपने-अपने नाम से व्यष्टितः उपसंजात होंगे, किन्तु पश्चातवर्ती सभी कार्यवाहियाँ तब भी फर्म के नाम से चालू रहेंगी।
नियम-7 भागीदारों द्वारा ही उपसंजाति होगी अन्यथा नहीं जहां समन की तामील ऐसे व्यक्ति पर जिसके हाथ में भागीदारी के कारबार का नियंत्रण या प्रबन्ध है, नियम 3 द्वारा उपबन्धित रीति से की गई है वहां जब तक कि वह उस फर्म का जिस पर वाद लाया गया है, भागीदार न हो, उसका उपसंजात होना आवश्यक नहीं होगा।
भागीदारों की उपसंजाति (उपस्थिति) आदेश 30 के नियम 6, 7 और भागीदारों की न्यायालय में उपस्थिति के बारे में परिस्थितियों का विवरण देते हैं।
नियम के अनुसार वे सभी कार्यवाहियाँ जो एक फर्म के "फर्म-नाम" में संस्थित की जाती हैं, उन्हें फर्म के नराम से ही चलाना होगा। जहां तक भागीदारों की उपस्थिति का प्रश्न है, वे व्यक्ति के रूप में अपने स्वयं के नामों से उपस्थित होने चाहिये। इस नियम के पीछे कारण यह है कि कोई फर्म एक फर्म के रूप में उपस्थित नहीं हो सकती। अतः फर्म के नाम से लाये गये बाद में एक भागीदार की उपस्थिति उस फर्म की उपस्थिति है।
कर्म के विरुद्ध वाद में कौन उपसंजात हो सकते हैं? केवल दो प्रकार के व्यक्ति ही ऐसे वाद में उपस्थित हो सकते हैं-
वे व्यक्ति, जो यह कथन करें कि वे उस फर्म के भागीदार हैं या वाद हेतुक उत्पन्न होने के समय भागीदार थे,और
वे व्यक्ति जिन पर भागीदार के रूप में समन तामील हो गये हैं, किन्तु वे उस फर्म के भागीदार होने से इन्कार करते हैं या जब बाद हेतुक उत्पन्न हुआ, तब वे उस फर्म के भागीदार होने से इन्कार करते हैं। इस प्रकार आक्षेपकर्ता व्यक्ति नियम के अधीन न्यायालय में आक्षेप के अधीन उपस्थित हो सकते हैं।
नियम 7 यह स्पष्ट करता है कि उस फर्म के व्यवस्थापक पर तामील की गई हो और वह उस फर्म का सदस्य (भागीदार) नहीं है, तो उसे न्यायालय में उस वाद के लिए उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं हैं।
जब भागीदार के प्रकट-प्राधिकार की आवश्यकता नहीं एक भागीदार फर्म के व्यवस्थापन भागीदार (मैनेजिंग पार्टनर) को यह निहित (अप्रकट) प्राधिकार (शक्ति) होती है कि यह व्यापार/कारबार के साधारण कदम के रूप में पर्म के विरुद्ध उसके फर्म-नाम से लाए गए किसी वाद में सालिसिटर (वकील) की नियुक्ति प्रतिरक्षा के लिए करे और उसे अन्य भागीदारों की ओर से भी उपस्थिति देने का निर्देश देवे। अत ऐसी स्थिति में उस सालिसिटर के विरुद्ध उन भागीदारों के द्वारा उनकी ओर से उनके प्राधिकार के बिना न्यायालय में दी गई उपस्थिति के बारे में कोई वाद नहीं लाया जा सकता।
शब्द (व्यष्टिशः) का अर्थ नियम 6 में प्रयुक्त "व्यष्टिशः" (इनडिविजुअली) का अर्थ व्यक्तिगत रूप से (in person) नहीं है। अतः इस नियम के अधीन किसी भागीदार को स्वयं उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
पश्चात्वर्ती सभी कार्यवाहियां तब भी फर्म के नाम से चालू रहेंगी- (नियम-6)- जहां वह व्यक्ति जिन पर फर्म के नाम से वाद लाया गया है, किसी फर्म के भागीदार हैं, तो वादपत्र तथा उसके आगे की कार्यवाही के शीर्षक में उस फर्म के भागीदारों के नाम प्रकट कर दिये गये हों, फिर भी फर्म के नाम से लाया गया वाद उसी फर्म-नाम से जारी रहेगा।
उस वाद के लिखित-कथन के शीर्षक में भी उस फर्म-नाम का प्रयोग किया जावेगा और अन्त में पारित की गई डिक्री में भी फर्म-नाम ही अंकित किया जाएगा। ऐसे वाद में न्यायालय किसी भागीदार के विरुद्ध व्यक्तिगत डिक्री पारित नहीं कर सकता, जब तक कि उस पर फर्म के साथ-साथ उस पर व्यक्तिगत रूप से वाद नहीं लाया गया हो।
उपसंजात भागीदार का अधिकार प्रत्येक भागीदार जो उपस्थित हो गया है, उसे फर्म की ओर से फाइल किए गये लिखित-कथन की सीमाओं की भीतर रहते हुए अपनी प्रतिरक्षा करने का अधिकार है।