सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 21 का नाम डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन है। इस आलेख के अंतर्गत नियम 94 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-94 क्रेता को प्रमाणपत्र- जहां स्थावर सम्पत्ति का विक्रय आत्यन्तिक हो गया है वहां न्यायालय विक्रीत सम्पत्ति को और विक्रय के समय जिस व्यक्ति को क्रेता घोषित किया गया है उसके नाम को विनिर्दिष्ट करने वाला प्रमाणपत्र देगा। ऐसे प्रमाणपत्र में उस दिन की तारीख होगी जिस दिन विक्रय आत्यन्तिक हुआ था।
विक्रय-प्रमाण पत्र का महत्त्व -नीलाम क्रेता बिना विक्रय प्रमाणपत्र प्राप्त किए ही उस सम्पत्ति के आधिपत्य के लिए आवेदन कर सकता है, क्योंकि वह उसके द्वारा की गई खरीद (क्रय) से स्वत्वाधिकार प्राप्त करता है, विक्रय प्रमाणपत्र तो उसका साक्ष्य है।
विक्रय प्रमाणपत्र विक्रय पूर्ण होने पर ही दिया जाता जो सम्पत्ति के हक (Title) का साक्ष्य है। है, उस वाद के सभी पक्षकारों के विरुद्ध, एक विक्रय प्रमाणपत्र उस सम्पत्ति का सम्पूर्ण स्वत्वाधिकार और उसके आधिपत्य का अधिकार क्रेता को प्रदान करता है और वह निर्णीत ऋणी की मृत्यु से प्रभावित नहीं होता है। अतः जब क्रेता न्यायालय के बाहर ही बिना सूचना के उस सम्पत्ति का आधिपत्य (कब्जा) प्राप्त कर लेता है, तो यह विधिमान्य है। विक्रय को पुष्ट करना होगा, चाहे विक्रय के बाद उस डिक्री को अपास्त कर दिया गया हो। यदि बाहर के नीलाम-क्रेता को उस वाद के भाग्य की विडम्बना से संरक्षण नहीं दिया गया, तो निष्पादन में कोई ग्राहक आकर्षित नहीं होगा।
एक न्यायालय विक्रय में जो कुछ एक क्रेता को प्राप्त होता है, वह निर्णीत-ऋणी का अधिकार, स्वत्वाधिकार और हित है, या जो उसका हित हो सकता है। दूसरे शब्दों में न्यायालय-विक्रय में क्रेता उस सम्पत्ति को निर्णीत-ऋणी के स्वत्वाधिकार के सभी दोषों और सभी प्रकार के खतरों (रिस्क) सहित प्राप्त करता है, सिवाय उस स्थिति के जहां निर्णीत-ऋणी का विक्रय हित ही विद्यमान न हो।
जहां एक निर्णीत ऋणी के अधिकार स्वत्व तथा हित को विक्रय के लिए रक्खा जाता है, तो नीलाम क्रेता को क्या अन्तरित (प्राप्त)/(pass) होता है-यह एक तथ्य का प्रश्न है, जो इन बातों पर निर्भर करता है कि-(1) क्या सम्पदा विक्रय के लिए रखी गई थी, (2) न्यायालय क्या बेचना चाहता था और (3) क्रेता क्या खरीदना चाहता था और उसे खरीदा और उसके लिए क्या भुगतान किया है।
विक्रय प्रमाणपत्र जारी करना-
डिक्रियों और आदेशों का निष्पादन स्थावर संपत्ति का नीलामी स्क्रिय- विक्रय प्रमाणपत्र जारी किया जाना-नीलामी में अन्तिम और अधिकतम बोली बोलने वाले क्रेता के पक्ष में विक्रय की पुष्टि की जाना, किन्तु तत्पश्चाद शिक्षा संस्था द्वारा उस सम्पत्ति का वास्तविक क्रेता होने और सम्पति का अपने सदस्य की मार्फत क्रय किए जाने के आधार पर आवेदन करने पर विक्रय प्रमाणपत्र शिक्षा संस्था के नाम में जारी किया जाना-शिक्षा संस्था के नाम में विक्रय प्रमाणपत्र जारी किए जाने हेतु आवेदन को निष्पादन न्यायालय द्वारा मंजूर किया जाना न्यायोचित है और ऐसा आदेश अधिकारिता के अभाव के आधार पर शून्य नहीं है- यदि निर्णीत ऋणी द्वारा ऐसे आदेश को उचित न्यायालय में यथाविहित परिसीमाकाल के भीतर चुनौती नहीं दी जाती है तो तत्पश्वात् निर्णीत ऋणी द्वारा घोषणा, कब्जे और स्थायी व्यादेश के लिए फाइल किया गया बाद कालवर्जित होने के आधार पर खारिज किए जाने योग्य है। विक्रय उस समय आत्यन्तिक होता है, जब नियम 92 के अधीन आदेश किया जाता है। नियम 4 के अधीन जारी किया गया विक्रय-प्रमाण पत्र केवल औपचारिक घोषणा होती है।
एक वाद में कहा गया है कि प्रापक (रिसीवर) को धारा 66 व आदेश 21, नियम 94 लागू नहीं सिविल प्रक्रिया संहिता में निर्दिष्ट न्यायालय का प्रमाणपत्र आदेश 21 के नियम 4 के अधीन प्रमाणपत्र है। आदेश 21 के अधीन साधारण रूप से विक्रय और स्थावर सम्पत्ति के विक्रय के लिए प्रकल्पित प्रक्रिया सार्वजनिक नीलामी द्वारा विक्रय के लिए है। न्यायालय द्वारा नियुक्त किये गए रिसीवर के माध्यम से न्यायालय द्वारा किया गया विक्रय इन उपबन्धों के अधीन अनुध्यात नहीं है। रिसीवर द्वारा विक्रय में न्यायालय द्वारा आदेश 21, नियम 94 के अधीन क्रेता को प्रमाणपत्र नहीं दिया जाता। इसलिए धारा 66 के अधीन प्रतिषेध का रिसीवर द्वारा किए गए विक्रय के मामले में सहारा नहीं लिया जा सकता।
रिसीवर आदेश के नियम के अधीन नियुक्त किया जाता है और रिसीवर द्वारा न्यायालय के निदेश से प्राइवेट बातचीत द्वारा भी विक्रय किया जा सकता है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 66 में न्यायालय द्वारा विहित प्रमाणपत्र दिया जाना अपेक्षित है। प्रस्तुत मामले में प्रदर्श 5 में हस्तांतरण उच्च न्यायालय के आरम्भिक पक्ष के नियमों के अनुसार था। इस मत को देखते हुए कि धारा 66 रिसीवर द्वारा किये गए विक्रय को लागू नहीं होती, इस प्रश्न पर विचार किया जाना आवश्यक नहीं है कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के नियमों के अधीन रिसीवर द्वारा किया गया विक्रय धारा 66 के परिक्षेत्र में आता है या नहीं। धारा 66 में केवल निष्पादन में किए गए विक्रय का उल्लेख है और यह रिसीवर द्वारा किए गए विक्रय को लागू नहीं होती।
क्रेता सावधान रहे का सिद्धान्त जब लागू नहीं होता- क्रेता सावधान रहे का सिद्धान्त ऐसे निर्णीत ऋणी को, जिसका सम्पत्ति में कोई विक्रय हित नहीं है, किए गए विक्रय पर लागू नहीं होता है, नीलाम विक्रय में क्रेता सम्पत्ति को हक सम्बन्धी सभी त्रुटियों के अधीन क्रय करता है और उसे इसके हक की कोई गारण्टी नहीं होती। क्रेता सावधान रहे (केवियट एम्टर) का यह सिद्धान्त नीलाम विक्रय को लागू होता है। किन्तु यह सिद्धान्त ऐसे निर्णीत-ऋणी को, जिसका सम्पत्ति में कोई विक्रय हित नहीं है, किए गए विक्रय पर लागू नहीं होता।
नाममात्र मूल्य पर डिक्रीदार द्वारा खरीद का प्रभाव न्यायालय नीलाम में यदि विक्रीदार स्वयं ही सब स्थिति पूर्णतः जानते हुए निर्णीत ऋणी की सम्पति नाममात्र मूल्य में खरीदता है, तो न्यायालय उसकी मदद नहीं करेगा। न्यायालय नीलामी में निर्णीत ऋणी के सम्पति में विद्यमान अधिकार, हक व हित का ही विक्रय होगा।
एक मामले में नीलाम-क्रेता के अधिकार सम्पत्ति किरायेदार के कब्जे में थी, जिसे कुर्क कर बेचने के लिए न्यायालय द्वारा रिसीवर को निदेश दिया। इसका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि नीलाम क्रेता उस सम्पत्ति के खाती कब्जे का हकदार है। न्यायालय द्वारा सम्पत्ति को कुर्क कर बेचने के अन्तरिम आदेश द्वारा विधिक कब्जा धारण करने वाले किरायेदार को बेदखल नहीं किया जा सकता।
नीलाम-क्रेता के विधिक प्रतिनिधि जहां नीलाम क्रेता की मृत्यु हो जाती है, तो उसके विधिक प्रतिनिधियों को विक्रय प्रमाणपत्र स्वीकृत किया जा सकता है। एक भागीदार द्वारा फर्म की ओर से सम्पत्ति खरीदने पर उसकी मृत्यु के बाद उसके विधिक प्रतिनिधियों को विक्रय प्रमाणपत्र जारी किया जा सकता है।
नीलाम क्रेता का समनुदेशिती- ऐसे समनुदेशिती को प्रमाणपत्र दिया जा सकता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अनुसार विक्रय-प्रमाणपत्र केवल नीलाम क्रेता के नाम पर जारी किया जावेगा और उसकी मृत्यु पर उसके विधिक प्रतिनिधियों के नाम से जारी किया जावेगा, परन्तु अन्तरिती के नाम से नहीं।
डिक्रीदार द्वारा आक्षेप करना मना एक डिक्रीदार एक नीलाम क्रेता के विरुद्ध यह तर्क उठाने से विबंधित (estopped/वर्जित) है कि विक्रय प्रमाणपत्र में दिया गया सम्पत्ति का विवरण गलत है, जब कि यह विवरण उसी विवरण का अनुसरण है जो उसने विक्रय की उद्घोषना में दिया था और जिस पर नीलाम क्रेता ने कार्य किया/बोली लगाई।
जब टिनेन्सी अधिकार आवृत नहीं जहां सम्पत्ति के विवरण की अनुसूची में और विक्रय के आवेदन में दिये गये सम्पत्ति के विवरण में भवन के ढांचे से सेलम नीचे की भूमि में निर्णीत-ऋणी के स्थाई अभिवृति (टिनेन्सी) के अधिकार आवृत नहीं होते हैं, तो विक्रय पर वे अधिकार क्रेता को नहीं मिले।
एक वाद में कहा गया है कि विक्रय प्रमाणपत्र का अर्थान्वयन जब विक्रय के समय मात्र संरचनाओं का ही बेचा जाना आशपित था, तो विक्रय प्रमाणपत्र का इस रूप में अर्थान्वयन नहीं किया जा सकता कि वह भूमि में स्थायी भूपूति (टिनेन्सी) अधिकारों की बाबत कोई हक या हित प्रदत्त करता है।
विक्रय उद्घोषणा और विक्रय-प्रमाणपत्र के विवरण में अन्तर जहां विक्रय उद्द्घोषणा और विक्रय प्रमाणपत्र में दिये गये सम्पत्ति के विवरण में कोई अन्तर हो, तो विक्रय उद्द्घोषणा में दिया गया विवरण निश्चायक होता है।
यदि विक्रय प्रमाणपत्र में दी गई सम्पत्ति की सीमा और भूखण्डों की वास्तविक संख्या में कोई अन्तर है, तो विक्रय प्रमाणपत्र सही माना जावेगा। सम्पत्ति के विवरण के किसी एक शब्द के आधार पर चौदह दिन के भीतर की सम्पत्ति का एक भाग नहीं बेचने का निर्णय नहीं किया जा सकता।