FIR और शिकायत में फ़र्क़ – पुलिस में क्या, कब और कैसे दर्ज करें?

Update: 2025-09-02 10:05 GMT

FIR और शिकायत में फ़र्क़ – पुलिस में क्या, कब और कैसे दर्ज करें?

हम अक्सर सुनते हैं – “FIR लिखवाओ” या “पुलिस में शिकायत करो”। लेकिन क्या दोनों एक ही चीज़ हैं? नहीं। आइए सरल शब्दों में समझते हैं:

FIR (First Information Report) क्या है?

• गंभीर अपराध (Cognizable Offence) होने पर लिखी जाती है – जैसे हत्या, डकैती, बलात्कार, अपहरण आदि।

• इसमें पुलिस को तुरंत जाँच शुरू करने और आरोपी को गिरफ़्तार करने का अधिकार होता है।

• FIR हमेशा लिखित रूप में दर्ज होती है और पीड़ित/शिकायतकर्ता को इसकी कॉपी मुफ़्त में दी जाती है।

• FIR दर्ज होने के बाद केस सीधे क्रिमिनल ट्रायल तक पहुँच सकता है।

शिकायत (Complaint) क्या है?

• यह कम गंभीर अपराध (Non-Cognizable Offence) के लिए होती है – जैसे गाली-गलौज, हल्की मारपीट, धमकी आदि।

• इसमें पुलिस सीधे FIR नहीं लिख सकती। पहले मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी पड़ती है।

• शिकायत ज़्यादातर थाने में लिखकर या मजिस्ट्रेट कोर्ट में दायर की जाती है।

• पुलिस तुरंत गिरफ़्तारी नहीं कर सकती, सिर्फ़ रिपोर्ट बना सकती है।

FIR कब दर्ज कराएँ?

• जब अपराध गंभीर हो और तुरंत कार्रवाई ज़रूरी हो।

• उदाहरण: किसी का मर्डर हो गया, अपहरण हुआ या बड़ी चोरी हुई।

शिकायत कब करें?

• जब अपराध छोटा हो या पुलिस FIR लिखने से मना कर दे।

• ऐसे में मजिस्ट्रेट कोर्ट में भी शिकायत दी जा सकती है।


हर FIR एक शिकायत है, लेकिन हर शिकायत FIR नहीं बनती।

गंभीर अपराध = FIR, हल्के अपराध = शिकायत।

Tags:    

Similar News