क्या आपराधिक मामलों में राजीनामा किया जा सकता है? जानिए प्रावधान

Update: 2022-11-08 05:33 GMT

कोई भी आपराधिक प्रकरण पुलिस रिपोर्ट पर या व्यथित पक्षकार के मजिस्ट्रेट को दिए आवेदन पर संस्थित किया जाता है। आपराधिक प्रकरण दर्ज करवाने हेतु यह दो रास्ते एक पीड़ित व्यक्ति के पास होते हैं।

कोई भी अपराध जब भी घटित होता तब वह राज्य के विरुद्ध होता है, किसी भी अपराध में केवल पीड़ित और अभियुक्त के बीच ही रिश्ता नहीं होता है अपितु राज्य पीड़ित के साथ होता है। पीड़ित के आवेदन पर राज्य अपनी ओर से आपराधिक प्रकरण दर्ज करता है। बड़े आपराधिक मामले में पीड़ित के पास यह अधिकार नहीं होता है कि वह अभियुक्त के साथ राजीनामा कर ले।

कुछ मामले ऐसे होते हैं जहां केवल पीड़ित ही नहीं अपितु दूसरे लोगों के अधिकार भी अतिक्रमण होते हैं इसलिए केवल पीड़ित ही राजीनामा नहीं कर सकता। इस आलेख में इस विषय पर विस्तारपूर्वक चर्चा की जा रही है।

राजीनामा

यह एक ऐसा उपक्रम है जिसमें मामलों का लम्बा विचारण नहीं चलता अपितु पक्षकार आपस में समझौता अर्थात् राजीनामा करके मामले को बीच में निपटा देते हैं। सामान्यतः ऐसा लोक अदालतों के माध्यम से होता है।

राजीनामें के अनेक लाभ है, यथा-

(1) मामलों का त्वरित निस्तारण हो जाता है,

(2) मुकदमेबाजी में अनावश्यक धन एवं समय व्यर्थ नहीं होता तथा

(3) पक्षकारों में पारस्परिक स्नेह एवं सौहार्द का भाव बना रहता है। प्रारंभ में राजीनामों को विधिक स्वरूप प्रदत्त नहीं था। कालान्तर में इसे विधिक स्वरूप प्रदान कर दिया गया। दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 में इस सम्बन्ध में आवश्यक प्रावधान किया गया है।

राजीनामें योग्य मामले

धारा 320 में दो प्रकार के मामलों का उल्लेख किया गया है-

(i) प्रथमतः ऐसे मामले जिनमें न्यायालय की अनुमति के बिना राजीनामा किया जा सकता है।

(ii) द्वितीयः ऐसे मामले जिनमें न्यायालय की अनुमति से राजीनामा किया जा सकता है। प्रथम वर्ग के मामले सामान्य प्रकृति के होते हैं जबकि द्वितीय वर्ग के मामले अपेक्षाकृत कुछ गंभीर प्रकृति के होते हैं। इस संबंध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 की सारणी देखी जा सकती है।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जिन अपराधों का उल्लेख धारा 320 में किया गया है, उन्हें राजीनामा किया जा सकता है, अन्य मामलों में नहीं।

ऐसे मामले में जो धारा 320 की परिधि में नहीं आते हैं-

(i) न तो राजीनामे योग्य होते हैं, और

(ii) न उन्हें न्यायालय की अनुमति से राजीनामें योग्य बनाया जा सकता है। यदि धारा 320 की परिधि में आने वाले मामलों से भिन्न मामलों में राजीनामा किया जाता है उनमें न्यायालय द्वारा अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसे मामलों में सजा की मात्रा पर विचार किया सकता है।

उदाहरणार्थ

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 307 के मामलें में अभियुक्त को भुगती सजा पर छोड़ा गया, क्योंकि,

(i) मामला 20 वर्ष पुराना था,

(ii) पक्षकार कृषक थे, तथा

(iii) पक्षकारों में समझौता (राजीनामा) हो गया था

न्यायालय द्वारा निम्नांकित मामलों में राजीनामें की अनुमति प्रदान की गई है-

(i) भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 का मामला,

(ii) भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323 का मामला,

(iii) भारतीय दण्ड संहिता की धारा 324 एवं 325 का मामला

(iv) भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 का ऐसा मामला जिसमें अभियुक्त अधिवक्ता था

(v) परक्राम्य लिखत् अधिनियम की धारा 138 के अधीन मामला आदि।

लेकिन अवैध गर्भपात के एक मामले में राजीनामा करने की अनुमति प्रदान नहीं की गई। वस्तुत: सामान्य प्रकृति के ऐसे मामलों में राजीनामा अनुज्ञात कर दिया जाता है जिनमें पक्षकारों में समझौता हो जाता है और जो राजीनामे योग्य है।

राजीनामें का प्रभाव

राजीनामें का प्रभाव अभियुक्त की दोषमुक्ति होगा

एक मामले में मृतक की ओर से राजीनामा था। जहाँ राजीनामा करने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, वहाँ उसकी ओर से उसके विधिक प्रतिनिधि द्वारा राजीनामा किया जा सकेगा।

अवयस्क की ओर से राजीनामा

यदि राजीनामा करने वाला व्यक्ति-

(i) अवयस्क है अर्थात् 18 वर्ष से कम आयु का है, या

(ii) जड़ है, या

(iii) पागल है, तो उसकी ओर से संविदा करने के लिए सक्षम व्यक्ति द्वारा न्यायालय की अनुज्ञा से राजीनामा किया जा सकेगा।

यहाँ यह उल्लेखनीय है-

(क) राजीनामा दण्डादेश पारित करने से पूर्व कभी भी किया जा सकेगा, यहाँ तक कि निर्णय लिखते समय भी किया जा सकेगा।

(ख) राजीनामा अपील में भी किया जा सकेगा।

इस मामले में यह महत्वपूर्ण है कि केवल धारा 320 की परिधि में आने वाले अपराध ही राजीनामा किये जा सकते हैं इसके अलावा किसी भी अपराध में राजीनामा नहीं किया जा सकता। अब मामले में व्यक्ति या तो दोषसिद्ध होगा या फिर दोषमुक्त होगा लेकिन कोर्ट अपना जजमेंट राजीनामा के आधार पर नहीं देगी।

धारा 320 की परिधि में केवल छोटे अपराध आते है और ऐसे अपराध आते हैं जो केवल पीड़ित तक ही सीमित है। जैसे गालियां देने भले छोटा अपराध लेकिन वह केवल पीड़ित तक ही सीमित नहीं होता है, किसी की गालियों से लोक क्षेम पैदा होता है और इससे वहां मौजूद दूसरे लोगों के भी अधिकार अतिक्रमण होते हैं इसलिए धारा 294 का अपराध राजीनामा योग्य नहीं था लेकिन हाल ही में केंद्र द्वारा इस अपराध को राजीनामा योग्य बना दिया गया है।

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