भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बजरी लीज़ एलओआई होल्डर्स वेलफेयर सोसाइटी बनाम राजस्थान राज्य के अपने विस्तृत निर्णय में अवैध खनन से जुड़े मुद्दों पर महत्वपूर्ण सिद्धांत दोहराए। न्यायालय ने पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय (Ecological) क्षति पर ध्यान केंद्रित किया और यह स्पष्ट किया कि हर्जाना (Compensation) या जुर्माना (Penalty) केवल अवैध रूप से निकाले गए खनिजों के मूल्य तक सीमित नहीं हो सकता।
इसमें पर्यावरण की बहाली (Restoration) और पारिस्थितिकी सेवाओं (Ecological Services) की लागत भी शामिल होनी चाहिए।
कानूनी ढांचा (Legal Framework)
न्यायालय ने अपनी दलीलें माइंस एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 1957 (MMDR Act) की विभिन्न धाराओं पर आधारित कीं। इस अधिनियम की धारा 21(5) राज्यों को केवल अवैध खनन के खनिजों के मूल्य की वसूली ही नहीं, बल्कि किराया (Rent), रॉयल्टी (Royalty) और कर (Taxes) जैसे दंड (Penalties) की भी अनुमति देती है।
इसके अलावा, "प्रदूषक भुगतान करे" (Polluter Pays) सिद्धांत, जो भारत की पर्यावरणीय न्यायशास्त्र (Environmental Jurisprudence) का हिस्सा है, को न्यायालय ने इस मामले में लागू किया। इस सिद्धांत के अनुसार, प्रदूषक को न केवल पर्यावरणीय क्षति के लिए हर्जाना देना होगा, बल्कि पर्यावरण की बहाली और पारिस्थितिकीय गिरावट को ठीक करने की लागत भी उठानी होगी।
यह सिद्धांत सतत विकास (Sustainable Development) के लक्ष्यों के साथ मेल खाता है, जैसा कि वेल्लोर सिटीजन्स वेलफेयर फोरम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में जोर दिया गया था।
महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय (Key Judicial Precedents)
न्यायालय ने अपने निर्णय में कई ऐतिहासिक मामलों का हवाला दिया, जो इस संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण हैं:
1. दीपक कुमार बनाम हरियाणा राज्य (Deepak Kumar v. State of Haryana, 2012)
इस मामले में, न्यायालय ने अनियमित (Unregulated) और अवैज्ञानिक (Unscientific) बालू खनन (Sand Mining) के जैव विविधता (Biodiversity) और पारिस्थितिकी पर हानिकारक प्रभावों पर प्रकाश डाला। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय लागू करने का निर्देश दिया गया।
2. वेल्लोर सिटीजन्स वेलफेयर फोरम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (Vellore Citizens' Welfare Forum v. Union of India, 1996)
इस मामले में "प्रदूषक भुगतान करे" सिद्धांत को परिभाषित किया गया और प्रदूषकों की पर्यावरणीय क्षति और पुनर्स्थापन की लागत के लिए पूर्ण जिम्मेदारी तय की गई।
3. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन बनाम वीरेंद्र सिंह (National Green Tribunal Bar Association v. Virender Singh, 2021)
इस मामले में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने खनन नियमों के उल्लंघन के लिए मुआवजे की संरचित दर (Structured Scale of Compensation) को स्वीकृति दी, जिसमें पर्यावरणीय क्षति की भरपाई शामिल थी।
पर्यावरणीय क्षति का समाधान (Addressing Environmental Degradation)
न्यायालय ने अवैध खनन के कारण हुई पर्यावरणीय क्षति, जैसे नदी तल का विनाश (Riverbed Destruction), आवास की हानि (Loss of Habitat), और मिट्टी की संरचना (Soil Structure) के अस्थिर होने पर प्रकाश डाला।
इस प्रकार के खनन से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए जुर्माने में शामिल किया जाना चाहिए:
• पर्यावरणीय बहाली की लागत (Cost of Environmental Restoration)
• पारिस्थितिकीय सेवाओं की हानि का मुआवजा (Compensation for Loss of Ecological Services)
• भविष्य के उल्लंघनों को रोकने के लिए निवारक जुर्माना (Deterrent Fines)
दिशानिर्देशों का कार्यान्वयन (Implementation of Guidelines)
न्यायालय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी किए गए 2016 और 2020 के सस्टेनेबल सैंड माइनिंग मैनेजमेंट गाइडलाइन्स (Sustainable Sand Mining Management Guidelines) पर चर्चा की।
इन दिशानिर्देशों में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment), वैज्ञानिक पुनःपूर्ति अध्ययन (Scientific Replenishment Study), और अवैध खनन रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र (Monitoring Mechanisms) की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।
न्यायालय ने केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) को निर्देश दिया कि वह इन दिशानिर्देशों के अनुसार जुर्माना तय करे और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करे।
यह निर्णय याद दिलाता है कि अवैध खनन के परिणाम केवल आर्थिक नुकसान तक सीमित नहीं हैं। ऐसे कार्यों का पारिस्थितिकीय प्रभाव व्यापक होता है और इसे रोकने के लिए दंड और मुआवजे का दायरा व्यापक होना चाहिए।
न्यायालय ने यह सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरणीय चिंताओं को खनन नियमों में शामिल किया है कि प्रदूषकों को उनके कार्यों के लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया जाए, न केवल आर्थिक दृष्टि से, बल्कि प्रकृति पर उनके स्थायी प्रभाव के लिए भी।