एक महिला द्वारा दूसरी महिला के साथ कथित यौन उत्पीड़न पर आईपीसी की धारा 354ए लागू नहीं होती: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 354ए के तहत महिला द्वारा अपनी ननद और सास द्वारा यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए शुरू की गई कार्यवाही रद्द कर दी।
वास्तविक शिकायतकर्ता की ननद (तीसरी आरोपी) और सास (चौथी आरोपी) ने आईपीसी की धारा 498ए, 354ए और 34 के तहत उनके खिलाफ लगाए गए अपराधों को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने फैसला सुनाया कि जब विधायिका ने आईपीसी की धारा 354ए के तहत 'कोई भी व्यक्ति' के बजाय 'कोई भी पुरुष' शब्द का इस्तेमाल किया तो महिलाओं द्वारा किए गए प्रत्यक्ष कृत्य उक्त अपराध को आकर्षित नहीं कर सकते।
कोर्ट ने कहा,
“इस प्रकार, आईपीसी की धारा 354ए के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए धारा 354ए (1), (2) और (3) के तहत निपटाए गए प्रत्यक्ष कृत्य "एक पुरुष" की इच्छा होनी चाहिए। इसलिए विधायिका ने कानूनी प्रावधान में "किसी व्यक्ति" के बजाय "एक पुरुष" शब्द का इस्तेमाल किया और विधायी इरादा महिला/महिलाओं को आईपीसी की धारा 354ए के दायरे से बाहर रखना है। यदि ऐसा है तो यह माना जाना चाहिए कि आईपीसी की धारा 354ए तब लागू नहीं होगी, जब उसमें निपटाए गए प्रत्यक्ष कृत्य महिला द्वारा किसी अन्य महिला/महिलाओं के खिलाफ किए गए हों। यदि ऐसा है, तो अभियोजन पक्ष का यह आरोप कि याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 354ए के तहत दंडनीय अपराध किया। प्रथम दृष्टया, टिकने योग्य नहीं है और उक्त अपराध के लिए कार्यवाही रद्द करने योग्य है।”
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, याचिकाकर्ता महिलाओं ने पैसे और फ्लैट की मांग करते हुए वास्तविक शिकायतकर्ता जो दूसरे समुदाय से है, उसके साथ क्रूरता और छेड़छाड़ की। आरोप लगाया गया कि वास्तविक शिकायतकर्ता को एक कमरे में बंद करके भूखा रखा गया। पहला आरोपी वास्तविक शिकायतकर्ता का पति है और दूसरा आरोपी वास्तविक शिकायतकर्ता का ससुर है।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि वे महिला हैं, इसलिए उन्हें धारा 354ए के तहत यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। यह भी प्रस्तुत किया गया कि उनके खिलाफ केवल अस्पष्ट आरोप लगाए गए, जो उनके खिलाफ कार्यवाही करने के लिए अपर्याप्त हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए यह भी तर्क दिया गया कि आईपीसी की धारा 498ए का अक्सर पति के रिश्तेदारों के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए दुरुपयोग किया जाता है। न्यायालय ने पाया कि वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा भाभी और सास के खिलाफ क्रूरता के कई विशिष्ट आरोप लगाए गए हैं। इसने कहा कि आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सामान्य और अस्पष्ट नहीं कहा जा सकता।
इस प्रकार, न्यायालय ने आईपीसी की धारा 498ए और 34 के तहत कार्यवाही रद्द नहीं की। इसने आईपीसी की धारा 354ए के तहत भाभी और सास के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी और याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।
केस टाइटल: निशिन हुसैन बनाम केरल राज्य