यदि एकपक्षीय तलाक डिक्री के अस्तित्व में रहते हुए दूसरी शादी की जाती है, जिसे बाद में रद्द कर दिया जाता है तो द्विविवाह का कोई अपराध नहीं माना जाएगा: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने निर्धारित किया कि पहली शादी से तलाक की एकपक्षीय डिक्री के संचालन के दौरान दूसरी शादी करने के लिए IPC की धारा 494 के तहत कोई दंडात्मक परिणाम नहीं मिलेगा भले ही एकपक्षीय डिक्री को बाद की तारीख में रद्द कर दिया गया हो।
जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि तलाक की एकपक्षीय डिक्री के संचालन के कारण जब दूसरी शादी हुई, तब पक्षों के बीच कोई कानूनी विवाह नहीं था भले ही इसे बाद में रद्द कर दिया गया हो।
न्यायालय ने इस प्रकार कहा,
"क्या पिछली शादी के तलाक के एकपक्षीय डिक्री के संचालन के दौरान किया गया विवाह, द्विविवाह का अपराध होगा, जब तलाक के एकपक्षीय डिक्री को बाद में रद्द कर दिया जाता है? इस संबंध में प्रासंगिक पहलू यह है कि दूसरी शादी की तारीख पर तलाक के एकपक्षीय डिक्री के संचालन के मद्देनजर अभियुक्त और प्रतिवादी के बीच कोई कानूनी विवाह नहीं था। इसे और अधिक स्पष्ट रूप से कहें तो दूसरी शादी की तारीख पर दूसरी शादी करने में कोई कानूनी बाधा नहीं थी। इस विशेष मामले में अभियुक्त को अपनी दूसरी शादी की तारीख पर तलाक के एकपक्षीय डिक्री रद्द करने के लिए याचिका दायर करने के बारे में पता नहीं था। इस प्रकार, यह माना जाना चाहिए कि जब तलाक का डिक्री है और डिक्री के पक्षों में से एक एकपक्षीय डिक्री के अस्तित्व के दौरान विवाह करता है भले ही एकपक्षीय डिक्री को बाद की तारीख पर रद्द कर दिया गया हो द्विविवाह का कोई अपराध आकर्षित नहीं होगा।"
याचिकाकर्ता/प्रथम अभियुक्त तथा उसके माता-पिता जिन्हें द्वितीय तथा तृतीय अभियुक्त बनाया गया, द्वारा उनके विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को निरस्त करने के लिए आपराधिक विविध याचिकाएं दायर की गई थीं जिसमें द्विविवाह के अपराध का आरोप लगाया गया।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने अपने विवाह के दौरान दूसरा विवाह किया तथा द्विविवाह का अपराध किया तथा उसके माता-पिता ने ऐसा करने के लिए प्रेरित किया।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि तलाक के लिए एकपक्षीय डिक्री 12 मई, 2017 को दी गई। यह कहा गया कि शिकायतकर्ता ने एकपक्षीय डिक्री रद्द करने या अपील करने के लिए याचिका दायर नहीं की। यह कहा गया कि एकपक्षीय डिक्री रद्द करने के लिए याचिका दायर करने की अवधि जून 2017 में समाप्त हो गई तथा एकपक्षीय आदेश के विरुद्ध अपील दायर करने की अवधि भी अगस्त 2017 में समाप्त हो गई।
यह कहा गया कि याचिकाकर्ता ने एकपक्षीय डिक्री द्वारा कानूनी रूप से तलाक दिए जाने के पश्चात 30 दिसंबर, 2017 को ही दूसरी महिला से विवाह किया।
याचिकाकर्ता ने बताया कि शिकायतकर्ता ने 27 दिसंबर, 2017 को फैमिली कोर्ट के समक्ष एकपक्षीय डिक्री रद्द करने के लिए याचिका दायर की थी जो याचिकाकर्ता की दूसरी शादी से केवल तीन दिन पहले थी और उसे या उसके वकील को कोई नोटिस नहीं दिया गया। तलाक के लिए एकपक्षीय डिक्री को 05 मार्च, 2018 को रद्द कर दिया गया।
कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता के वकील को कोई नोटिस नहीं दिया गया और न ही शिकायतकर्ता द्वारा तलाक का एकपक्षीय डिक्री रद्द करने के लिए दायर याचिका के बारे में याचिकाकर्ता को नोटिस देने का कोई प्रयास किया गया।
कोर्ट ने नोट किया कि दोनों पक्षों ने अब आपसी सहमति से तलाक भी प्राप्त कर लिया। इसने यह भी कहा कि तलाक के एकपक्षीय डिक्री के संचालन के कारण दूसरी शादी होने के दौरान कोई कानूनी विवाह नहीं था।
कोर्ट ने कहा,
“ऐसा मानते हुए प्रथम अभियुक्त ने एकपक्षीय डिक्री के संचालन की अवधि के दौरान विवाह किया, वह भी एकपक्षीय डिक्री रद्द करने और एकपक्षीय डिक्री को चुनौती देने के लिए अपील दायर करने की अवधि समाप्त होने के बाद। ऐसे मामले में पहले आरोपी पर आपराधिक दोष लगाना सुरक्षित नहीं है, जिसने दूसरी बार शादी की, क्योंकि दूसरी शादी की तारीख पर कोई वैध विवाह नहीं था।”
इस प्रकार, न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर ली और याचिकाकर्ता और उसके माता-पिता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी, क्योंकि आईपीसी की धारा 494 और 109 के तहत कोई दंडात्मक परिणाम नहीं आएगा, क्योंकि दूसरी शादी की तारीख पर कोई वैध विवाह नहीं था।
केस टाइटल- विवेक जॉय बनाम केरल राज्य और संबंधित मामला