बलात्कार का मामला खारिज करने के लिए समझौते के हलफनामे पर भरोसा नहीं किया जा सकता, पीड़िता और आरोपी के बीच संबंधों की प्रकृति का फैसला मुकदमे में किया जाएगा: केरल हाईकोर्ट

Update: 2024-08-03 06:52 GMT

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि बलात्कार जैसे आरोपी के खिलाफ लगाए गए गंभीर अपराधों को केवल वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दायर किए गए समझौता हलफनामे के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।

जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने आरोपी द्वारा दायर याचिका यह कहते हुए खारिज की कि संबंध सहमति से था या नहीं यह मुकदमे में तय किए जाने वाले मामले हैं।

यह माना गया,

“संबंध सहमति से बने हैं या नहीं, यह साक्ष्य के दौरान तय किया जाने वाला मामला है। केवल वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दायर हलफनामे पर भरोसा करते हुए यह न्यायालय कार्यवाही को रद्द नहीं कर सकता, क्योंकि प्रथम दृष्टया, परीक्षण के लिए कोई सामग्री नहीं है।”

याचिकाकर्ता वह अभियुक्त है, जिसने अपने विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 450 और धारा 376 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए कथित आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

विशेष आरोप यह है कि याचिकाकर्ता ने वास्तविक शिकायतकर्ता के घर में जबरन घुसकर उसके हाथ बांध दिए। उसके प्रतिरोध के बावजूद उसके साथ बलात्कार किया। यह भी आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने वास्तविक शिकायतकर्ता की नग्न तस्वीरें लीं।

याचिकाकर्ता ने आरोपों से इनकार किया। कहा कि उसने समझौते के लिए वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए हलफनामे के आधार पर कार्यवाही रद्द करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

लोक अभियोजक ने वास्तविक शिकायतकर्ता के हलफनामे के आधार पर समझौते का विरोध किया।

न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट गैर-शमनीय अपराधों में भी पक्षकारों के समझौते के आधार पर कार्यवाही रद्द करने के लिए CrPc की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि उसे पक्षों के बीच समझौते के आधार पर समाज पर बड़ा प्रभाव डालने वाले गंभीर अपराधों को रद्द करने की शक्तियों का उपयोग नहीं करना चाहिए।

इस मामले में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया गंभीर आरोप लगाए गए और इसे केवल समझौते के हलफनामे के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा,

“ऐसे मामले में केवल वास्तविक शिकायतकर्ता द्वारा दायर हलफनामे पर कार्रवाई करके कार्यवाही रद्द करने का सहारा नहीं लिया जा सकता। मामले को देखते हुए यह याचिका विफल हो जाती है और तदनुसार खारिज की जाती है।”

न्यायालय ने याचिका खारिज की और याचिकाकर्ता को मुकदमे के दौरान अपनी दलीलें रखने का निर्देश दिया।

केस टाइटल- प्रदीप कुमार बनाम केरल राज्य

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