कस्टडी की लड़ाई में उलझी मां द्वारा पिता पर बच्चे का यौन शोषण करने का आरोप लगाने वाले मामलों में POCSO कोर्ट को सतर्क रहना चाहिए: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने POCSO न्यायालयों को चेतावनी दी है कि वे बच्चे के यौन शोषण के आरोपों पर विचार करते समय सतर्क रहें। खासकर तब जब उनके बीच वैवाहिक और हिरासत संबंधी विवाद चल रहे हों।
इस मामले में पत्नी ने अपने पति पर अपनी 3 वर्षीय बेटी का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था। दंपति बच्चे की कस्टडी पाने के लिए वैवाहिक विवाद में भी उलझे हुए हैं।
जस्टिस पी.वी.कुन्हीकृष्णन ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मां द्वारा की गई शिकायत झूठी और बच्चे की कस्टडी पाने के लिए थी। उन्होंने कहा कि वैवाहिक विवादों के कारण पिता द्वारा बच्चे के यौन शोषण के झूठे आरोप लगाने से आरोपी, बच्चे और परिवार के अन्य सदस्यों को भावनात्मक परेशानी होती है।
न्यायालय ने इस प्रकार कहा,
मेरा मानना है कि POCSO कोर्ट, जो इस तरह के मामलों की सुनवाई करते हैं, जिसमें नाबालिग बच्चे के पिता के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाया जाता है खासकर जब कस्टडी विवाद होता है तो न्यायालय को मामलों का फैसला करने से पहले बार-बार तथ्यों पर गौर करना चाहिए इस तरह के मामलों को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। अगर आरोप सही हैं तो यह गंभीर है लेकिन अगर आरोप झूठे हैं तो व्यक्ति बिना किसी आधार के सूली पर चढ़ा दिया जाता है। ऐसे आरोपों के कारण समाज में उसकी बदनामी होती है। इसलिए यह न्यायालय का कर्तव्य है कि वह देखे कि माता-पिता के खिलाफ कोई झूठा आरोप न हो खासकर जब कस्टडी को लेकर कोई विवाद हो।
न्यायालय ने जांच अधिकारियों को POCSO Act की धारा 22 के तहत झूठे आरोप लगाने वाले शिकायतकर्ता के खिलाफ जांच करने और उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि शिकायतकर्ताओं द्वारा कोई झूठी शिकायत या झूठी सूचना प्रस्तुत की गई तो सभी POCSO कोर्ट को इस संबंध में उचित कदम उठाने चाहिए। यदि POCSO कोर्ट ने सुनवाई के बाद पाया कि आरोपी के मामले में तथ्य है कि यह एक झूठा आरोप है तो POCSO कोर्ट को पुलिस अधिकारियों को POCSO Act की धारा 22 के तहत मामला दर्ज करने और कानून के अनुसार आगे बढ़ने का निर्देश देना चाहिए।
पृष्ठभूमि तथ्य
मां (शिकायतकर्ता) ने आरोप लगाया कि उसके पति (याचिकाकर्ता) ने उनसे मिलने के दौरान उनकी 3 वर्षीय बेटी का यौन शोषण किया। उसका मामला यह है कि याचिकाकर्ता ने उनकी नाबालिग बेटी के निजी अंगों को चाटा और छुआ। इस प्रकार मां के बयान के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ POCSO Act की धारा 3 4 और 5 (एल) और किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) की धारा 23 के तहत दंडनीय अपराध करने के आरोप में अपराध दर्ज किया गया। याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर और फाइनल रिपोर्ट से व्यथित होकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
टिप्पणियां
एफआईआर और अंतिम रिपोर्ट का विश्लेषण करने पर न्यायालय ने पाया कि मां के आरोप संदिग्ध प्रतीत होते हैं। न्यायालय ने कहा कि यद्यपि मां ने अप्रैल 2015 में बच्चे के निजी अंगों पर यौन शोषण के साक्ष्य मिलने का दावा किया लेकिन उसने जुलाई 2015 तक शिकायत दर्ज नहीं कराई। इसके अतिरिक्त न्यायालय को यह भी संदेहास्पद लगा कि बच्चे की जांच करने वाली स्त्री रोग विशेषज्ञ का नाम उजागर नहीं किया गया।
न्यायालय ने आगे पाया कि मेडिकल रिपोर्ट में बच्चे पर किसी चोट के होने का संकेत नहीं है। न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक विवादों के कारण पक्षों के बीच कई मामले दर्ज किए जा रहे हैं। न्यायालय ने कहा कि यह ऐसा मामला है, जिसमें मां अपने पति के खिलाफ लड़ने के लिए 3 साल के बच्चे को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है।
न्यायालय ने यह भी देखा कि मां ने यौन शोषण का आरोप लगाते हुए अपनी शिकायत तभी दर्ज कराई, जब पति ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उसका बच्चा गायब है।
न्यायालय ने चाइल्डलाइन अधिकारियों द्वारा बच्चे के साथ बातचीत पर प्रस्तुत नाबालिग बच्चे की केस स्टडी रिपोर्ट का भी उल्लेख किया। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि बच्चा खुश था और संकेत दिया कि माँ अपने पिता के प्रति बच्चे के लगाव से नाखुश थी।
रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप मां की विकृत धारणा से उत्पन्न गलत आरोप थे। धारा 164 सीआरपीसी के तहत बच्चे के बयान का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि झूठे आरोप लगाने के लिए बार-बार सिखाने के बावजूद, बच्चे ने मजिस्ट्रेट से कहा कि वह अपनी मां से ज़्यादा अपने पिता से प्यार करती है।
न्यायालय ने XXX बनाम केरल राज्य (2024) पर भरोसा करते हुए कहा कि पत्नियां अक्सर वैवाहिक विवादों में बदला लेने और बच्चे की कस्टडी पिता को देने से इनकार करने के लिए POCSO Act के प्रावधानों का दुरुपयोग करती हैं। न्यायालय ने देखा कि पिता के खिलाफ झूठे आरोप, कस्टडी की लड़ाई बच्चे पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालती है।
इसने कहा,
“जब बच्चा बड़ा हो जाता है और वयस्क हो जाता है तो मामले के रिकॉर्ड उसके पास उपलब्ध हो सकते हैं। यह शर्मनाक स्थिति होगी। मां के कहने पर बच्चे के पिता के खिलाफ झूठे आरोप लगाने से समाज के हित और रिश्तों पर बुरा असर पड़ सकता है। इसमें शामिल सभी पक्षों को मानसिक और भावनात्मक रूप से लंबे समय तक आघात पहुंच सकता है। ऐसी स्थितियों को संवेदनशीलता के साथ देखना, बच्चे की भलाई को प्राथमिकता देना और निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाधान सुनिश्चित करने के लिए परामर्शदाताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं या कानून प्रवर्तन एजेंसियों जैसे पेशेवरों से सहायता लेना आवश्यक है।”
न्यायालय ने याचिकाकर्ता की पीड़ा को समझा जिस पर अपनी ही नाबालिग बेटी के साथ यौन शोषण का झूठा आरोप लगाया गया और पिता और बच्चे के बीच प्यार को दर्शाते हुए कैथप्प्रम दामोदरन नंबूदरी के एक फिल्मी गीत को उद्धृत किया,
“ऐसे प्यारे पिता पर बच्चे की मां ने POCSO Act के गंभीर आरोप लगाकर मुकदमा चलाया है। इस तरह के अपराधियों के नाम जनता के सामने उजागर किए जाने चाहिए, जिससे उनकी शिकायत के कारण बदनाम हुआ व्यक्ति अपनी बेटी और समाज के सामने सम्मान के साथ खड़ा हो सके। लेकिन बच्चे की निजता को देखते हुए मैं ऐसा करने से बचता हूं।”
मामले के तथ्यों को देखते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी। इसने जांच अधिकारी को याचिकाकर्ता के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने के लिए शिकायतकर्ता के खिलाफ जांच करने और उचित कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया।
केस टाइटल- XXX V केरल राज्य