सांस की गंध के आधार पर किसी व्यक्ति पर मादक पदार्थ के सेवन का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति पर इस आधार पर मादक पदार्थ के सेवन का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता कि जांच अधिकारी ने उसकी सांस से पदार्थ की गंध महसूस की है।
न्यायालय ने कहा कि यदि इसकी अनुमति दी जाती है तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होगी जहां जांच अधिकारी किसी भी व्यक्ति पर मादक पदार्थ और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS Act) के तहत आरोपी के रूप में मुकदमा चला सकता है। यह ध्यान दिया गया कि संवेदी धारणा व्यक्तिपरक होती है, इसलिए किसी पदार्थ की पहचान करने के लिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने कहा,
“मनुष्यों के गंध रिसेप्टर जीन हमारी गंध की भावना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उक्त जीन की क्षमता व्यक्तिपरक है, इसलिए इस तरह की पहचान पर भरोसा निर्णायक नहीं हो सकता। मनुष्य की संवेदी धारणा मानकीकृत या स्थिर नहीं है। इसलिए क्षमता सबूत का विकल्प नहीं हो सकती।”
अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि याचिकाकर्ता को मलमपुझा बांध के पास धूम्रपान करते हुए पाया गया और जब उसने शिकायतकर्ता को अपने पास आते देखा तो उसने सिगरेट बांध में फेंक दी। हालांकि, शिकायतकर्ता को याचिकाकर्ता की सांसों से गांजा की गंध आई। उन्होंने उसे NDPS Act की धारा 27 (बी) के तहत मादक दवाओं का सेवन करने के लिए गिरफ्तार किया। याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने कहा कि जांच अधिकारी द्वारा गंध की भावना सबूत नहीं है और बिना किसी फोरेंसिक सबूत के याचिकाकर्ता को अंततः दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
सरकारी अभियोजक ने तर्क दिया कि उन्हें यह साबित करने के लिए मौखिक साक्ष्य पेश करने का अधिकार है कि आरोपी ने मादक दवा का सेवन किया था। उन्होंने यह भी कहा कि मेडिकल साक्ष्य भी पेश किए जा सकते हैं। इसलिए इस बिंदु पर मामले को रद्द नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने नोट किया कि धारा 27(ए) और धारा 27(बी) विभिन्न प्रकार की दवाओं से संबंधित है। इनमें से प्रत्येक उप-धारा के तहत सजा भी अलग-अलग है। किसी भी दवा की जब्ती भी नहीं की गई, जिससे यह पता चले कि कथित कृत्य इनमें से किस उप-धारा के अंतर्गत आता है।
न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) की धारा 528 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग किया और कार्यवाही यह कहते हुए रद्द की कि बिना किसी जब्ती या मेडिकल जांच के प्रतिबंधित पदार्थ की प्रकृति को साबित करना असंभव है। न्यायालय ने कहा कि आरोप की पुष्टि नहीं की जा सकती। अभियोजन पक्ष न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहा है।
केस टाइटल- इब्नू शिजिल बनाम केरल राज्य