न्यायालय को एडवोकेट के नामांकन के लिए राज्य बार काउंसिल की समय सीमा में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने माना कि वह नामांकन के लिए केरल बार काउंसिल द्वारा तय की गई समय-सीमा में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। न्यायालय ने पाया कि बार काउंसिल ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के निर्देशों के आधार पर समय-सीमा तय की और न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस बात पर विचार करने के बाद कि बड़ी संख्या में लोगों ने बिना कानून की डिग्री के या फर्जी डिग्री के आधार पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया में नामांकन कराया है। नामांकन से पहले डिग्री सर्टिफिकेट के अनिवार्य वेरिफिकेशन का निर्देश देते हुए निर्देश जारी किए।
यह कहा गया कि इन निर्देशों के आधार पर बार काउंसिल ऑफ केरल उम्मीदवारों से नामांकन से कम से कम 20 दिन पहले आवश्यक दस्तावेज जमा करने की अपेक्षा करता है, जिससे इन दस्तावेजों का सत्यापन किया जा सके। कई आवेदक जो या तो अपने परिणाम या प्रोविजनल सर्टिफिकेट का इंतजार कर रहे थे, उन्होंने कट-ऑफ तिथि के बाद इन दस्तावेजों को जमा करने की अनुमति देने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटख टाया।
जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस एस. मनु की खंडपीठ ने यह कहते हुए इस याचिका खारिज कर दी कि उम्मीदवारों के पास भविष्य में आवेदन करने का मौका है।
यह माना गया,
“हमारा विचार है कि इस न्यायालय को बार काउंसिल द्वारा आवेदन स्वीकार करने, दोषों को ठीक करने या अधिसूचना में निर्दिष्ट किसी अन्य समय-सीमा के लिए निर्धारित समय-सीमा में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। बार काउंसिल योग्यता के सत्यापन के लिए प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए समय-सीमा तय करती है।”
न्यायालय ने पाया कि जिन याचिकाकर्ताओं ने कट-ऑफ तिथि के बाद दस्तावेज जमा किए, उन्हें न्यायालय के पहले के निर्देश द्वारा पहले ही नामांकन की अनुमति दी जा चुकी थी। न्यायालय ने कहा कि इस बिंदु पर नामांकन को उलटा नहीं किया जा सकता, लेकिन यह बार काउंसिल द्वारा सत्यापन के अधीन होगा।
केस टाइटल- बार काउंसिल ऑफ केरल और अन्य बनाम उन्नीकृष्णन एच. और अन्य