भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 63(c) की अनिवार्य शर्तों को BSA की धारा 70 से कमज़ोर नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 71 या नए भारत साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam (BSA)) की धारा 70 का उपयोग वसीयत (Will) साबित करने के लिए केवल तभी किया जा सकता है, जब भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 63(c) की आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया गया हो लेकिन इन अनिवार्य शर्तों को हल्का नहीं किया जा सकता।
जस्टिस एम.ए. अब्दुल हकीम ने दूसरी अपील की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की और कहा,
"जब एक गवाह को पेश किया जाता है और वह वसीयत के क्रियान्वयन से इनकार करता है या उसे याद नहीं रहता तब दूसरे गवाह को बुलाना आवश्यक है (अगर वह जीवित है और साक्ष्य देने में सक्षम है)। यदि दूसरा गवाह भी वसीयत के क्रियान्वयन से इनकार करता है या उसे याद नहीं है, तभी BSA की धारा 70 का सहारा लिया जा सकता है। अगर गवाह केवल यह कहता है कि उसने टेस्टेटर को दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करते देखा लेकिन धारा 63(c) की बाकी आवश्यकताएं पूरी नहीं होतीं तो ऐसी कमी को BSA की धारा 70 से पूरा नहीं किया जा सकता।"
कोर्ट के समक्ष यह कानूनी प्रश्न था कि क्या भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 71/BSA की धारा 70 के तहत परिस्थितियों में वसीयत की वैधता साबित की जा सकती है।
इस प्रश्न का उत्तर "हाँ" में देते हुए कोर्ट ने निचली अदालत और प्रथम अपील अदालत का फैसला रद्द कर दिया और पाया कि इस मामले में वसीयत को साबित करने के लिए BSA की धारा 70 के तहत अन्य साक्ष्य (Other Evidence) का सहारा लिया जा सकता है, क्योंकि दोनों गवाहों ने वसीयत के क्रियान्वयन से इनकार किया था।
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि जब धारा 63(c) की आवश्यकताएं गवाहों की गवाही से पूरी नहीं होतीं तो अदालत यह जांच सकती है कि कहीं गवाह जानबूझकर आपत्तिकर्ताओं की मदद करने के उद्देश्य से झूठ तो नहीं बोल रहा।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इस आधार पर किसी गवाह की गवाही खारिज नहीं की जा सकती कि वह वसीयत का लाभार्थी है। यदि उसकी गवाही स्वाभाविक और विश्वसनीय है तो उसे अन्य साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
कोर्ट ने यह भी माना कि वसीयत का पंजीकरण, जैसा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 68 के प्रावधान में उल्लेख है, एक सबूत हो सकता है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 114(e) के अंतर्गत मिलने वाले अनुमान का सहारा लेते हुए कहा कि इस मामले में वसीयत विधिवत रूप से बनाई गई थी भले ही सामान्यत: पंजीकरण को पर्याप्त प्रमाण नहीं माना जाता।
केस टाइटल: पी.डी. परमेश्वरन पिल्लई व अन्य बनाम टी.एन. रामचंद्रन नायर व अन्य