केरल हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर माता-पिता को पिता या माता के बजाय 'माता-पिता' के रूप में दर्शाने की अनुमति दी

Update: 2025-06-05 07:08 GMT

केरल हाईकोर्ट ने देश के पहले ट्रांसजेंडर माता-पिता जाहद और जिया द्वारा अपने बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में पिता और माता से माता-पिता के रूप में उनका विवरण बदलने के लिए दायर याचिका को अनुमति देते हुए कहा कि कानून को समाज में होने वाले परिवर्तनों के साथ विकसित होना चाहिए।

कोर्ट ने कहा,

कानून स्थिर नहीं रह सकता है, लेकिन इसे समाज में होने वाले परिवर्तनों और समाज के सदस्यों की जीवन शैली के अनुसार विकसित होना चाहिए।”

जाहद नामक ट्रांसमैन ने बच्चे को जन्म दिया था। जन्म प्रमाण पत्र में पिता का नाम जिया पावल (ट्रांसजेंडर) और माता का नाम जाहद (ट्रांसजेंडर) अंकित था।

उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि प्रमाण पत्र में दी गई जेंडर पहचान पक्षों द्वारा अपनाई गई जेंडर स्थिति के विपरीत है। इसलिए यह उनके बच्चे के जीवन में कुछ समस्याएं पैदा कर सकता है जब उसकी शिक्षा, रोजगार या अन्य पेशे आदि की बात आती है।

जस्टिस ज़ियाद रहमान ए. ए. ने कहा कि मामले में अति-तकनीकी रुख अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगा गया प्रमाण पत्र याचिकाकर्ताओं या उनके वर्ग/श्रेणी के कल्याण, हितों और अधिकारों को आगे बढ़ाता है खासकर जब उनके अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेदों से उत्पन्न होते हैं, तीसरे पक्ष के किसी भी अधिकार का उल्लंघन किए बिना और किसी भी वैधानिक प्रावधान का उल्लंघन किए बिना, अदालत को हस्तक्षेप करने और याचिकाकर्ताओं को प्रमाण पत्र जारी करने के लिए उचित निर्देश जारी करने में संकोच नहीं करना चाहिए।”

अदालत का दरवाजा खटखटाने से पहले उन्होंने कोझिकोड निगम से अनुरोध किया कि वे अपने विवरण को माता-पिता में बदल दें।

निगम ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रेशन नियम 1999 में निर्धारित प्रारूप में ही प्रमाणीकरण जारी किया जा सकता है।

न्यायालय ने कहा कि कुछ मामलों में उसे 'प्रतिकूल दृष्टिकोण' के विपरीत 'सामाजिक न्याय निर्णय' लेना पड़ता है।

न्यायालय ने कहा कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 को जेंडर की द्विआधारी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया और जब थर्ड जेंडर को कोई कानूनी मान्यता नहीं थी।

इसके बाद राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ (2014) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों और उसके बाद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 के अधिनियमन के माध्यम से ट्रांसजेंडरों को मान्यता दी गई।

हाईकोर्ट ने कहा कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 में संबंधित परिवर्तन नहीं किए गए ताकि ट्रांसजेंडर व्यक्ति के अधिकार संरक्षण और पहचान को बनाए रखा जा सके।

न्यायालय ने 1999 के नियमों में उल्लिखित जन्म प्रमाण पत्र के प्रारूप को पढ़ने से इनकार कर दिया और कहा कि यह मामला 'दुर्लभ और असाधारण' है। इस तरह के मामले के आधार पर कानून की वैधता को कम नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा कि अधिकारियों द्वारा बनाए गए रजिस्टर में की गई प्रविष्टियों को बदलने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता ने ऐसी राहत के लिए दबाव नहीं डाला था।

केस टाइटल: ज़हाद और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य

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