[S.24 CPC] तलाक याचिका को सक्षम न्यायालय में ट्रांसफर करते समय प्रादेशिक क्षेत्राधिकार कोई मानदंड नहीं: केरल हाईकोर्ट

Update: 2024-07-05 06:49 GMT

केरल हाईकोर्ट ने माना कि तलाक याचिका को किसी अन्य न्यायालय में ट्रांसफर करते समय जिस न्यायालय में याचिका ट्रांसफर की जाती है, उसका प्रादेशिक क्षेत्राधिकार कोई मायने नहीं रखता।

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 24 के तहत हाईकोर्ट को किसी कार्यवाही को अपने अधीनस्थ किसी भी न्यायालय में ट्रांसफर करने का अधिकार है, जो मुकदमे की सुनवाई या निपटान करने में सक्षम हो। न्यायालय ने माना कि सक्षमता प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के संदर्भ में नहीं है।

जस्टिस अनिल के. नरेन्द्रन और जस्टिस हरिशंकर वी. मेनन की खंडपीठ ने कहा,

“इस प्रकार जब कोई मुकदमा एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में ट्रांसफर किया जाता है तो इस न्यायालय को केवल यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है कि जिस न्यायालय में मुकदमा ट्रांसफर किया जाता है। वह उस पर विचार करने में सक्षम है। यहां संहिता की धारा 24 के तहत सक्षमता शब्द न्यायालय की स्थिति के संदर्भ में है, न कि क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के संदर्भ में।”

अपीलकर्ता और प्रतिवादी क्रमशः पति और पत्नी हैं। पति ने मुवत्तुपुझा के फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की। पत्नी ने थालास्सेरी के फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की। पत्नी द्वारा दायर याचिका में हाईकोर्ट ने पति द्वारा दायर तलाक की याचिका को थालास्सेरी के फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने की अनुमति दी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि थालास्सेरी फैमिली कोर्ट को याचिका पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं है। तलाक अधिनियम की धारा 3(3) के अनुसार, याचिका केवल उसी न्यायालय के समक्ष हो सकती है, जिसके अधिकार क्षेत्र में विवाह संपन्न हुआ हो या जहां पति और पत्नी एक साथ रहते हों या रहते थे। विवाह मुवत्तुपुझा फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में हुआ। वे थालास्सेरी फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में भी साथ नहीं रहे हैं।

न्यायालय ने माना कि यह केवल मुकदमा दायर करने के लिए है। मुकदमा केवल तभी दायर किया जा सकता है जब पक्षकारों ने विवाह किया हो या साथ रहते हों।

न्यायालय ने पाया कि एकल पीठ ने पाया कि सुविधा का संतुलन पत्नी के पक्ष में है। वह विदेश में है और उसके माता-पिता अपनी नाबालिग बेटी की देखभाल कर रहे हैं। इसके अलावा पत्नी ने थालास्सेरी फैमिली कोर्ट के समक्ष भरण-पोषण और सोना वापस करने के लिए याचिका दायर की थी। इन सभी पर एक साथ सुनवाई की जानी चाहिए।

इसलिए न्यायालय ने अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल- एल्डो वर्गीस बनाम लिया जोस

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