अनुसूचित जाति समुदाय का सदस्य होने के कारण पक्षपात का सामना कर रहे बच्चे को केवल इसलिए कम्यूनिटी सर्टिफिकेट देने से मना नहीं किया जा सकता, कि माता-पिता ने अंतर-धार्मिक विवाह किया: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने कहा कि अंतर-धार्मिक विवाह से पैदा हुए बच्चे को अनुसूचित जाति कम्यूनिटी सर्टिफिकेट देने से केवल इसलिए मना नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके पिता ईसाई थे और उन्होंने हिंदू समुदाय में धर्म परिवर्तन नहीं किया।
बच्चे की मां पुलया समुदाय से है और उसने अपनी नाबालिग बेटी को शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए कम्यूनिटी सर्टिफिकेट जारी न करने के खिलाफ हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि किसी विशेष समुदाय के सदस्य द्वारा सामना किए जाने वाले अपमान और सामाजिक बाधाएं उस समुदाय का कास्ट सर्टिफिकेट देने या न देने का निर्णायक कारक होनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा,
"मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि एमिक्स क्यूरी ने कानून और प्रावधानों को बहुत ही स्पष्ट रूप से समझाया, क्योंकि यह सबसे बड़ा सवाल है कि क्या किसी बच्चे या व्यक्ति ने किसी वंचित समुदाय के अपमान और बाधा को झेला है, यह इस तथ्य में निहित है कि ऐसे व्यक्ति का उक्त समुदाय से संबंध है, बिना इस बात का संदर्भ दिए कि उसके माता-पिता अंतर्जातीय विवाहित जोड़े हैं या अंतर्धार्मिक विवाहित जोड़े हैं।”
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि उसकी बेटी पुलया समुदाय के सदस्य के रूप में बड़ी हुई। यह प्रस्तुत किया गया कि उसकी बेटी को पुलया समुदाय के सदस्य होने के कारण पूर्वाग्रहों, सामाजिक असुविधाओं और कष्टों का सामना करना पड़ा।
यह भी तर्क दिया गया कि उसकी बेटी के पास कम्यूनिटी सर्टिफिकेट है, जो दर्शाता है कि वह पुलया समुदाय से है। हालांकि, शैक्षिक उद्देश्यों के लिए कम्यूनिटी सर्टिफिकेट के लिए उसका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया।
यह प्रस्तुत किया गया कि कम्यूनिटी सर्टिफिकेट जारी न करना अनुचित अवैध और अस्थिर है। दूसरी ओर सरकारी वकील ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ता की बेटी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उसकी माँ पुलया समुदाय से है।
यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता ने अंतर-धार्मिक विवाह किया, न कि अंतर-जातीय विवाह, इसलिए उसकी बेटी पुलया समुदाय का कास्ट सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं कर सकती, क्योंकि बच्चे के पिता ईसाई हैं।
न्यायालय की टिप्पणियां
एमिकस क्यूरी एस विष्णु द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार यह कहा गया कि बच्चे को कम्यूनिटी सर्टिफिकेट देने से इनकार नहीं किया जा सकता, जो अपनी मां की अनुसूचित जाति से जुड़ी सभी दिव्यांगताओं से पीड़ित है। केवल इस कारण से कि उन्होंने अंतर-धार्मिक विवाह किया।
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की बेटी को पुलया समुदाय के सदस्य के रूप में स्वीकार किया गया और उसे इसके पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा। इसने कहा कि उसके माता-पिता के अंतर-धार्मिक विवाह या उसके पिता के ईसाई होने जैसे कारक उसकी जाति का निर्धारण नहीं करेंगे, जब तक कि विपरीत साक्ष्य उपलब्ध न हों।
न्यायालय ने कहा कि उसे यह देखना होगा कि क्या बच्चे को सामाजिक दिव्यांगता का सामना करना पड़ा और क्या वह अनुसूचित जाति समुदाय के उन्हीं रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करता, जो निर्णायक कारक है।
इसने कहा,
“केवल इसलिए कि माता-पिता में से अकेले एससी/एसटी समुदाय से संबंधित है, यह स्वचालित रूप से नहीं माना जा सकता कि यह पिता की जाति है, जो निर्णायक कारक है, लेकिन क्या उनके द्वारा जन्मा बच्चा वही सामाजिक दिव्यांगता का सामना करता है और वही रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करता है, जो एससी/एसटी समुदाय से संबंधित माता-पिता करते हैं।”
इसने कहा कि याचिकाकर्ता की बेटी को कास्ट सर्टिफिकेट देने से इनकार करना सकारात्मक कार्रवाई के सिद्धांतों के खिलाफ होगा। इसने कहा कि याचिकाकर्ता की बेटी को सरकार द्वारा दिए जाने वाले एससी/एसटी लाभों से वंचित करना अनुचित होगा, क्योंकि वह पहले से ही अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों द्वारा सामना किए जाने वाले पूर्वाग्रहों का सामना कर रही है।
तदनुसार रिट याचिका को अनुमति दी गई और राजस्व प्रभागीय अधिकारी याचिकाकर्ता की बेटी को सामुदायिक प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया गया।