तलाक के बाद भरण–पोषण का अधिकार पत्नी के पुनर्विवाह से समाप्त नहीं होता: केरल हाईकोर्ट

Update: 2025-11-27 10:37 GMT

केरल हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 3(1) के तहत दायर याचिका का लंबा लंबित रह जाना उसके अधिकारों को प्रभावित नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि तलाक की तारीख पर महिला को जो लाभ प्राप्त हो चुके थे, वे उसके बाद विवाह करने पर भी समाप्त नहीं होते।

डॉ. जस्टिस काउसर एडप्पगथ ने यह निर्णय पूर्व पति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका व मूल याचिका को खारिज करते हुए दिया। पति ने आदेशों को चुनौती दी, जिनमें उसे तलाकशुदा पत्नी और नाबालिग बेटी के लिए भरण–पोषण और उचित व न्यायसंगत प्रावधान देने का निर्देश दिया गया।

मामले में पति ने 2011 में तलाक दिया, जबकि पत्नी ने 2014 में पुनर्विवाह कर लिया। तलाक के तुरंत बाद पत्नी ने मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम के तहत इद्दत अवधि का भरण–पोषण भविष्य के लिए उचित प्रावधान और आभूषणों की वापसी के लिए याचिका दायर की। बाद में उसने धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत भी भरण–पोषण का दावा दायर किया।

फैमिली कोर्ट ने पत्नी और बच्ची को भरण–पोषण देने का आदेश दिया और स्पष्ट किया कि पत्नी को मासिक भरण–पोषण केवल पुनर्विवाह की तारीख तक मिलेगा। इसके बाद मजिस्ट्रेट ने इद्दत अवधि का भरण–पोषण तथा मेहर के सात सवा सात तोला सोने के मूल्य की राशि लौटाने का आदेश जारी किया।

अदालत ने कहा कि भारत में प्रचलित मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के अनुसार तलाक की घोषणा के क्षण से ही पति पर पत्नी के भविष्य के लिए उचित और न्यायसंगत प्रावधान करने का कानूनी–नैतिक दायित्व होता है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पत्नी के पुनर्विवाह के बाद निर्णय पारित होने से उसके अधिकार समाप्त नहीं होते, क्योंकि उसका दावा तलाक के समय ही उत्पन्न हो चुका था।

पति का यह तर्क भी अदालत ने खारिज कर दिया कि मुस्लिम महिला अधिनियम के तहत दावा करने के बाद दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 का सहारा नहीं लिया जा सकता। अदालत ने पूर्ववर्ती निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि अधिनियम 1986, धारा 125 का विकल्प नहीं बल्कि अतिरिक्त उपाय है और दोनों प्रावधान एक साथ लागू हो सकते हैं।

अंततः हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट और सेशन कोर्ट के आदेशों को सही ठहराते हुए पति की दोनों याचिकाएं खारिज कर दीं। अदालत ने कहा कि पत्नी और बच्ची को दिए गए भरण–पोषण तथा इद्दत अवधि के भुगतान के आदेश में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।

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