यदि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री अपराध का संकेत देती है तो समझौते का हलफनामा आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को रद्द करने का कोई आधार नहीं: केरल हाइकोर्ट

Update: 2024-04-17 06:35 GMT

केरल हाइकोर्ट ने धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध के लिए कार्यवाही रद्द करने की याचिका खारिज कर दी। इसमें कहा गया कि यदि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री अपराध के होने का संकेत देती है तो पीड़ित के रिश्तेदार द्वारा दिया गया हलफनामा मामला रद्द करने का आधार नहीं हो सकता।

जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा,

“जब मामले के तथ्यों और अन्य सामग्रियों पर रखे गए तथ्यों से प्रथम दृष्टया यह पता चलता है कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध किया गया तो केवल इसलिए कि पहले आरोपी की बहन ने समझौते के बारे में हलफनामा दायर किया, उसे रद्द करने का आधार नहीं होगा।”

यह याचिका वायनाड के पनामारम पुलिस स्टेशन के समक्ष मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लंबित कार्यवाही रद्द करने के लिए दायर की गई।

याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि अभियोजन पक्ष का यह मामला कि पीड़िता ने उकसावे के कारण आत्महत्या की झूठा है और दावा किया कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया।

सरकारी अभियोजक ने निरस्तीकरण का विरोध करते हुए तर्क दिया कि मृतक के सुसाइड नोट सहित अभियोजन पक्ष की सामग्री, याचिकाकर्ताओं द्वारा पीड़िता के प्रति उत्पीड़न और धमकी भरे व्यवहार का एक पैटर्न प्रदर्शित करती है।

अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाने वाला अपराध रद्द करने के संबंध में कानून केवल तभी संभव है, जब सामग्री पर रखे गए मामले के तथ्य अपराध के प्रथम दृष्टया होने को प्रमाणित करने के लिए कुछ भी साबित न कर सकें।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला,

"ऐसा लगता है कि यह मानने के लिए पर्याप्त सामग्री है कि यह ऐसा मामला है, जहां आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध आकर्षित होता है। प्रथम दृष्टया प्रभावी जांच और सार्थक अभियोजन की आवश्यकता होती है।"

केस टाइटल- निमेश और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य।

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