किराएदार जिसने किराया नहीं दिया, वह बेदखली से सुरक्षा नहीं मांग सकता: केरल हाईकोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए

Update: 2024-09-27 09:51 GMT

केरल हाईकोर्ट ने माना कि जो किराएदार किराया नहीं दे पाया, वह बेदखली की कार्यवाही के खिलाफ न्यायालय से सुरक्षा नहीं मांग सकता।

इसे अशांत करने वाली मुकदमेबाजी प्रवृत्ति कहते हुए जस्टिस सी. जयचंद्रन की एकल पीठ ने कहा कि मकान मालिक किराएदार के परिसर का सर्वोच्च मालिक होता है। किराएदार का उस पर कब्जा करने का अधिकार पूरी तरह से किराया चुकाने के उसके दायित्व पर निर्भर करता है।

इसमें कहा गया कि किरायेदार को बेदखली के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना न केवल दमनकारी होगा बल्कि मकान मालिक को परेशान करने के समान होगा, जो किराया प्राप्त किए बिना किरायेदार को सहन करने के लिए मजबूर होगा।

उन्होंने कहा,

"यदि किरायेदार कानून की अदालत का दरवाजा खटखटाता है, वह भी उपरोक्त महत्वपूर्ण दायित्व को पूरा किए बिना बेदखली से सुरक्षा की न्यायसंगत राहत की मांग करता है तो क्या ऐसी कार्यवाही अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं है? क्या यह अदालत की प्रक्रिया का अनुचित उपयोग और विकृति नहीं होगी? क्या विरोधी/किरायेदार कानूनी कार्यवाही के निराधार उपयोग के माध्यम से अपने मकान मालिक पर अनुचित लाभ प्राप्त नहीं करेगा? क्या ऐसी कार्यवाही - किसी भी सद्भावना से पूरी तरह रहित - दमनकारी और परेशान करने वाली नहीं है। न्याय की विफलता को रोकने के लिए निरस्त की जानी चाहिए?"

अदालत ने इस प्रकार निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

- किरायेदार जो जबरन बेदखली से निषेधाज्ञा प्राप्त करने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाता है, उसे हलफनामे की शपथ लेनी होगी जिसे शिकायत के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिसमें कहा गया हो कि सहमत किराया, जो दाखिल करने के महीने से पहले के महीने तक देय है मकान मालिक को चुका दिया गया और वह मुकदमा लंबित रहने तक ऐसा करना जारी रखेगा।

इसका पालन उन मामलों में भी किया जाना चाहिए, जहाँ किरायेदार प्रतिवादी के रूप में प्रवेश करता है और जबरन बेदखली से निषेधाज्ञा के लिए आवेदन करता है।

-यदि किराया नहीं दिया जा रहा है तो किरायेदार/वादी हलफनामे में ऐसे भुगतान न करने के कारणों को स्पष्ट करेगा।

-ऐसे मामलों में जहां किराएदार ने शपथ पत्र प्रस्तुत किया है कि किराया नियमित रूप से दिया जा रहा है न्यायालय सामान्यतः बेदखली पर रोक लगाने के लिए एकपक्षीय अंतरिम आदेश जारी करेंगे। यदि शपथ पत्र में कहा गया है कि किराया नियमित रूप से नहीं दिया जा रहा है तो न्यायालय कारणों की जांच करेगा और तदनुसार आदेश देगा।

-प्रतिवादी/मकान मालिक के पेश होने पर, यदि यह दर्शाया जाता है कि सहमत किराया नहीं दिया गया है किराएदार द्वारा शपथ पत्र के विपरीत - न्यायालय पक्षों को सुनने के बाद, और उससे संतुष्ट होने पर वादी को न्यायालय द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर किराए का बकाया जमा करने का निर्देश देते हुए आदेश जारी करेगा।

-यदि किराएदार ऐसे बकाया किराए को जमा करता है साथ ही मुकदमे के लंबित रहने तक आगे भी किराया देने/जमा करने का वचन देता है तो निषेधाज्ञा का अंतरिम आदेश मामले के अंतिम निपटारे तक लागू रहेगा

-यदि किरायेदार ऐसा जमा करने में विफल रहता है तो निषेधाज्ञा का अंतरिम आदेश पहली बार में ही निरस्त कर दिया जाएगा और न्यायालय किरायेदार को ऐसे बकाया जमा करने के लिए अतिरिक्त समय देगा।

-यदि दिए गए समय के भीतर बकाया का भुगतान कर दिया जाता है, तो निषेधाज्ञा आदेश इस शर्त पर फिर से लागू होगा कि किरायेदार भविष्य में भी किराया देने का वचन देगा।

-यदि दिए गए समय के भीतर बकाया का भुगतान नहीं किया जाता है तो याचिका रद्द कर दी जाएगी।

न्यायालय ने कहा कि ये सामान्य दिशा-निर्देश हैं और यदि व्यक्तिगत तथ्यों और परिस्थितियों की आवश्यकता हो तो न्यायालय इनसे अलग हो सकता है।

केस टाइटल: प्रमोद बनाम सचिव, सुल्तानपेट डायोसीज़ सोसाइटी और अन्य

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