वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत आरोपित आरोपी मुकदमे के समापन में देरी के कारण गर्व से घूमते हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को मौखिक रूप से कहा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अपराधों को लंबे समय तक लंबित नहीं रखा जाना चाहिए और आरोपियों के खिलाफ मुकदमे को तेजी से पूरा किया जाना चाहिए।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने आरोपी अब्दुल रहमान और अन्य द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। उन पर 2008 में बांदीपुर जंगल में चित्तीदार हिरण को मारने के लिए धारा 2(36),9,31,34,35(6,8) 48(ए)आर/डब्ल्यू 51 के तहत मामला दर्ज किया गया था और जिसका मुकदमा अभी भी लंबित है।
उन्होंने कहा
“इतना लंबा समय क्यों लगा वन अपराध के निष्कर्ष में 16 साल क्यों लगते हैं, यही कारण है कि कार्यवाही में देरी को देखते हुए सभी आरोपी गर्व से घूमते हैं। अगर आपको किसी को सजा देनी है तो उसे जल्दी सजा दिलाइए। यह सही नहीं है कि आप 2008 में हिरण की हत्या के लिए वन अधिनियम के तहत मामला दर्ज करें और 2024 में भी इस पर मुकदमा चल रहा है। यह क्या है?”
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुए। रहमान और अन्य ने उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ताओं ने 30-11-2008 को बांदीपुर वन के परिसर में हिरण को मार डाला उसके दो पैर काट दिए। उसे सुल्तान बटेरी ले गए, जो केरल में आता है। कर्नाटक में पुलिस ने आरोपियों पर यहां मामला दर्ज किया, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने बांदीपुर के जंगल में हिरण को मारा था।
पुलिस ने बिना लाइसेंस के हथियार और 35 किलो मांस भी जब्त किया, जिसके लिए केरल पुलिस ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया। वकील ने दोहरे खतरे के आधार पर अपराध रद्द करने की मांग की।
पीठ ने कहा,
"मैं इसे स्वीकार करने से इनकार करता हूं, क्योंकि हिरण की हत्या कर्नाटक राज्य के भीतर हुई है। इसलिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम याचिकाकर्ताओं के खिलाफ़ आता है। इसे (हिरण) केरल राज्य में ले जाया जाता है, जहां मांस काटा जाता है। हिरण की खाल के साथ 35 किलोग्राम लाल मांस बरामद किया जाता है। इसलिए अपराध में इस्तेमाल किए गए सभी हथियार केरल में जब्त किए गए। इसलिए उन पर आर्म्स एक्ट के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाता है।"
इसके अलावा अदालत ने कहा,
"यह मुद्दा 2008 का है और हम 2024 में हैं और मामले की सुनवाई अभी भी संबंधित अदालत में चल रही है। मामला इस आधार पर लंबित है कि याचिकाकर्ता संबंधित अदालत के समक्ष पेश नहीं हुए हैं। उनके खिलाफ उद्घोषणा की गई। संबंधित अदालत के समक्ष पेश न होते हुए भी पुराने वकील इस अदालत में पेश हुए।"
इसमें यह भी कहा गया कि उपरोक्त तथ्यों और जिस तरह से याचिकाकर्ता मुकदमे से बच रहा है, उसे देखते हुए याचिकाकर्ता को कोई संरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसने संबंधित अदालत को 12 सप्ताह के भीतर मुकदमा पूरा करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल- अब्दुल रहमान और अन्य तथा कर्नाटक राज्य और अन्य