Proton Mail पर IT Act उल्लंघन का आरोप, केंद्र ने कहा- जवाबों का विश्लेषण जारी, 8 हफ्तों में निर्णय

Update: 2025-07-03 10:03 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट में आज प्रोटॉन एजी (Proton AG) की उस अपील पर सुनवाई जारी रही, जो स्विट्ज़रलैंड की एक ईमेल सेवा प्रदाता कंपनी है। प्रोटॉन ने एकल जज के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें इसकी सेवाओं को भारत में अवरुद्ध करने का निर्देश दिया गया था।

एक्टिंग चीफ जस्टिस वी. कामेश्वर राव और जस्टिस सी. एम. जोशी की खंडपीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश की गई दलीलों पर ध्यान दिया। केंद्र ने अदालत को बताया कि एकल जज द्वारा चिन्हित दो URL के अलावा Proton Mail द्वारा IT Act और उसके नियमों के कई अन्य उल्लंघन भी सामने आए। इसके लिए कंपनी को अलग से नोटिस जारी किए गए।

केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अरविंद कामथ ने यह भी स्पष्ट किया कि ये नए मामले स्वतंत्र रूप से निपटाए जा रहे हैं और इनका संबंध वर्तमान अपील से नहीं है।

यह मामला उस याचिका से जुड़ा है, जो एम मोसर डिजाइन एसोसिएट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर की गई थी। कंपनी ने आरोप लगाया कि उसकी महिला कर्मचारियों को Proton Mail से बार-बार ऐसे ईमेल भेजे जा रहे हैं, जिनमें अश्लील, अपमानजनक और अशोभनीय भाषा तथा यौन टिप्पणी की गई। इसी मामले में एकल जज ने केंद्र को IT Act की धारा 69A और सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा जानकारी की पहुंच को अवरुद्ध करने की प्रक्रिया और सुरक्षा) नियम, 2009 के नियम 10 के तहत कार्रवाई शुरू करने का आदेश दिया था। इसके अलावा तब तक विवादित URL तुरंत ब्लॉक करने का निर्देश भी दिया गया जब तक केंद्र की कार्यवाही पूरी न हो जाए। इसी आदेश के खिलाफ प्रोटॉन ने हाईकोर्ट में अपील की है।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने बताया कि Proton Mail के खिलाफ धारा 69A के तहत कार्यवाही शुरू कर दी गई और दो URL पहले ही ब्लॉक किए जा चुके हैं। केंद्र ने यह भी कहा कि अन्य उल्लंघनों पर भी नोटिस जारी किए गए, जिनका Proton ने जवाब दे दिया है और इन जवाबों का विश्लेषण किया जा रहा है। इस पर अंतिम निर्णय आठ हफ्तों के भीतर लिया जाएगा।

सुनवाई के दौरान एम मोसर डिजाइन की ओर से वकील जतिन सहगल ने तर्क दिया कि प्रोटॉन ने अपने सर्वर भारत से बाहर (रूस) स्थानांतरित कर दिए और भारतीय प्राधिकरणों को आवश्यक एक्सेस नहीं दे रहा है। उन्होंने कहा कि IT Act की धारा 75 के तहत जब कोई इंटरमीडियरी अपने सर्वर देश से बाहर ले जाता है और भारतीय प्राधिकरणों को सहयोग नहीं करता तो उसे भारत में काम करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कई देशों ने प्रोटॉन पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि यह जरूरी जानकारी मुहैया नहीं कराता। इसी वजह से इसकी सेवाओं का दुरुपयोग हो रहा है।

इस पर एक्टिंग चीफ जस्टिस ने प्रोटॉन की ओर से पेश वकील से पूछा कि यदि सर्वर भारत से बाहर हैं तो क्या Proton भारतीय न्यायिक क्षेत्र के अधीन नहीं आता। मोसर डिजाइन के वकील ने कहा कि प्रोटॉन IT Act का उल्लंघन कर रहा है, क्योंकि उसने सर्वर एक्सेस नहीं दिया है।

Proton की ओर से एडवोकेट मनु कुलकर्णी ने कहा कि कंपनी पूरी तरह से 69A की कार्यवाही में भाग ले रही है और उसने अपने जवाब भी जमा कर दिए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कानून में कहीं यह अनिवार्य नहीं किया गया कि सर्वर भारत में ही होना चाहिए ताकि कंपनी यहां सेवाएं दे सके। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सर्वर की लोकेशन का इस अपील की वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका से जुड़ा है।

जब कोर्ट ने पूछा कि क्या केंद्र ने सर्वर के स्थान को लेकर कोई विशेष नोटिस जारी किया तो प्रोटॉन के वकील ने कहा कि वह इसकी पुष्टि करेंगे, लेकिन फिलहाल उन्हें ऐसी किसी नोटिस की जानकारी नहीं है। केंद्र सरकार की ओर से एएसजी कामथ ने स्पष्ट किया कि सर्वर की लोकेशन और आईटी नियमों के अन्य पहलुओं पर जांच चल रही है और ये वर्तमान अपील के दायरे से बाहर के विषय हैं।

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